प्रदूषण का देश भारत

By: Mar 22nd, 2024 12:05 am

भारत तीसरा सबसे अधिक प्रदूषित देश है, जिसकी राजधानी दिल्ली दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित राजधानी है। भारत की करीब 96 फीसदी आबादी जहरीली हवा में जीने को विवश है। प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सूक्ष्मतम कण पीएम 2.5 होना चाहिए, लेकिन दिल्ली का पीएम 92.7 है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका पीएम 80.2 के साथ दूसरे स्थान पर है। भारत के 7800 शहरों में से मात्र 9 फीसदी ही ऐसे हैं, जो मानकों पर खरे उतरते हैं। सिर्फ यही नहीं, सबसे प्रदूषित 50 शहरों में से 42 शहर भारत के हैं। प्रदूषण का यह स्तर भारत के लिए चुनौती ही नहीं, बल्कि संकट का रूप धारण करता जा रहा है। संकट इसलिए भी गहरा है, क्योंकि बिहार के बेगुसराय, पटना, असम के गुवाहाटी, अपेक्षाकृत छोटे शहर-रोहतक (हरियाणा) और मेरठ (उप्र)-भी प्रदूषित होते जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, पीएम 2.5 का सालाना औसत 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन बेगुसराय का यह स्तर बीते साल 118.9 था। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 23 गुना अधिक था। भारत में प्रदूषण के हालात का खुलासा स्विस एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग संस्था ‘आईक्यूएयर’ की हालिया रपट में किया गया है। यह डाटा खुद भारत की सरकारों द्वारा दिया गया है, स्विस संस्था ने विश्व-संदर्भ में उन्हें संकलित किया है, लिहाजा संस्था पर आरोप लगाना ‘आत्मघाती’ होगा। विडंबना है कि हवा, पानी, मिट्टी और जंगल सरीखे मुद्दों पर राजनीति नहीं की जाती। वे चुनाव में गौण ही रहते हैं। हमारी सत्ताओं की प्राथमिकता गरीबी हटाओ और औद्योगिक प्रगति ही रही है। औद्योगिक क्रांति के 200 सालों के दौरान औद्योगिक औजारों ने प्रदूषण को इतना बढ़ा दिया है कि सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। पहले संकट दिल्ली समेत कुछ महानगरों तक ही सीमित समझा जाता था, लेकिन स्विस संस्था की रपट ने पूरे भारत के संकट को बेनकाब किया है।

भारत की 130 करोड़ से अधिक आबादी ‘जहरीली हवा’ के शहरों में बसी है। यदि भारत का सच यही है, तो भारत को ‘प्रदूषण का देश’ करार देना गलत नहीं होगा। दरअसल जिस गति से भारत का शहरीकरण हुआ है या सरकार स्मार्ट सिटी बनाने की परियोजना पर काम कर रही है, उसमें प्रदूषण प्राथमिकता पर नहीं है। उस गति से प्रदूषण के कारकों का डाटा भी उपलब्ध नहीं है। यदि बेगुसराय, गुवाहाटी, रोहतक, मेरठ आदि अपेक्षाकृत छोटे शहरों में प्रदूषण के खतरनाक कारक सामने आए हैं, तो उस लिहाज से राजधानी दिल्ली ‘जानलेवा गैस चैंबर’ कही जा सकती है। अक्तूबर से फरवरी के दौरान दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक 400-500 रहता है। उसका औसत भी 250-300 तक रहता है, जो ‘बहुत खराब श्रेणी’ में आता है। भारत के जो 83 शहर ‘आईक्यूएयर’ की सूची में हैं, वहां प्रदूषण के स्रोतों और कारकों को लेकर शायद ही कोई अधिकृत सूचना उपलब्ध है। बेगुसराय का ही उदाहरण लें। वहां 2022 में पीएम 2.5 का स्तर 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। एक ही साल में 6 गुना प्रदूषण कैसे बढ़ गया, उसके मद्देनजर कोई अधिकृत बयान, जवाबदेही या रपट नहीं है। संभव है कि स्विस रपट के बाद नेताओं और नौकरशाहों के कान पर कोई जूं रेंगने लगे। भारत के वायु प्रदूषण का यथार्थ यह है कि आधा प्रदूषण तो हानिकारक गैसों के कॉकटेल की वजह से है। कृषि, उद्योग, बिजली के प्लांट, परिवहन और घरेलू श्रेणी में जो प्रदूषण के कारक हैं, वे एक शहर से दूसरे शहर और राज्य-दर-राज्य यात्रा करते हैं। लिहाजा नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत विभिन्न इलाकों, शहरों, छोटे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों पर एक लक्ष्यबद्ध हस्तक्षेप किया जाता है। हमारे यहां पर्यावरण मंत्रालय हैं, लेकिन फिर भी नकारापन है।


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