कर्मों के अनुसार जीवन

By: Mar 16th, 2024 12:20 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

भावना अंत:करण की एक वृत्ति है। संकल्प, चिंतन, मनन आदि इसी के नाम हैं। भावना तीन प्रकार की होती है सात्विक, राजसी और तामसी। आत्मा का कल्याण करने वाली जो ईश्वर विषयक भावना है वह सात्विकी है। सांसारिक विषय भोगों की राजसी एवं अज्ञान से भरी हुई हिंसात्मक भावना तामसी है। संसार के बंधन छुड़ाने वाली होने के कारण सात्विकी भावना के अनुसार इच्छा, इच्छा के अनुसार कर्म, कर्म के अनुसार संस्कार, संस्कारों के अनुसार ही मनष्य के स्वभाव बनते हैं। कर्मों के अनुसार जीवन बनता है। भावनाएं मानव जीवन को दिशा देती हैं। फिर मानव कर्म करता है। इस प्रकार सद्गुरु की शरण प्राप्त करने वाला मनुष्य संतों, महात्माओं से सद्विचार प्राप्त करता है। मनुष्य की पहले की भावनाएं और विचार परिवर्तित होते हैं। सद्गुरु सद्कर्म और सद्भावना प्रदान करते हैं ताकि मनुष्य का जीवन सद्कर्म करने में श्रेष्ठ बने और वह आनंदपूर्वक जीवन जी सके। इसलिए सद्गुरु की शरणागत उत्तम होती है। मनुष्य की वृत्ति को बदलने वाला सद्गुरु ही होता है। नहीं तो कोई भी मनुष्य अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। आज का मनुष्य बड़ा दु:खी है विषय-विकारों का बड़ा ही प्रभाव है। मनुष्य लालसाओं में फंसा हुआ है। बुरे कर्म किए जा रहा है। इसलिए मनुष्य को शुभकर्मों की ओर मोडऩे की आवश्यकता है।

मनुष्य का हर कदम श्रेष्ठता की ओर बढ़े। सद्कर्मों से मनुष्य औरों को भी सुख पहुंचाता है। मनुष्य को सद्विचार जहां से भी प्राप्त हों, वहां जाकर अवश्य प्राप्त करने चाहिएं। संतों, महात्माओं का संग सद्विचार प्रदान करता है। कूड़े के ढेर से दुर्गंध आती है जबकि फूलों के बागीचे से सुगंध आती है। अब मानव के हाथ में है कि वो किसकी इच्छा करता है। भक्त प्रह्लाद को संतों का संग मिला तो उसके जीवन में सत्य का प्रवेश हुआ। संत ने भक्त प्रह्लाद को पावन पवित्र प्रभु नाम से जोड़ दिया। भक्त प्रह्लाद ने यह बात प्रत्यक्ष दिखला दी कि विष भी अमृत हो गया, अग्रि शीतल हो गई, अस्त्र-शस्त्र निरर्थक हो गए। सर्पों के विष का कुछ भी असर नहीं हुआ। यहां तक कि जड़ स्तंभ में भी चेतनामय, सर्वशक्तिमान भगवान नरसिंह के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट हो गए। प्रह्लाद भगवान के भक्त थे।

यह सब उत्तम भावना का फल है। संतों के उपदेशों को ग्रहण करने व अपने जीवन में अपनाने का फल है। मनुष्य जैसे विचार करता रहता है उसका प्रभाव उसके कर्मों पर पड़ता है। मनुष्य को सदैव निरीक्षण करते रहना चाहिए कि वो क्या सोच रहा है और क्या कर्म करने जा रहा है। उस कर्म का परिणाम कैसा होगा। कभी भी बुरा न सोचो क्योंकि बार-बार बुरा सोचने से मनुष्य एक दिन बुरा कर बैठता है। मन से किसी का भी बुरा सोचना पाप है। जो बुरा कर्म कर बैठता है वो पापी बन जाता है। बुरा सोचने वाला पकड़ा नहीं जाता और बुरा करने वाला एक दिन पकड़ में आ जाता है और अपराधी कहलाता है। चाहे बुरा करने वाला पकड़ में न भी आए परंतु उसकी आत्मा तो उसे कहती है कि तूने गलत किया है, ठीक नहीं किया। हमारे मन में बुरे विचार उत्पन्न न हों, इसका एक ही उपाय है कि संतों, महात्माओं का संग करें, अच्छा साहित्य पढ़ें और बुरे का संग त्यागें। आप चाहते हैं कि आपको मिलने वाले अपने आपको बदलें, उनका व्यवहार बदले, बोली बदले और इसके लिए आप जोर लगाते हैं, आप दुनिया को नहीं बदल सकते। उससे झगड़ा करने से क्या लाभ? -क्रमश:


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