विकास दर के मायने

By: Mar 2nd, 2024 12:04 am

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद सुखद और सकारात्मक संकेत हैं। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर, 2023) में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 8.4 फीसदी रही है। बीते साल इसी अवधि के दौरान यह दर लगभग आधी, अर्थात 4.3 फीसदी थी। इस डाटा का स्पष्ट संकेत है कि 2023-24 के दौरान आर्थिक विकास दर 7.6 फीसदी रहेगी। पहले यही अनुमान 7.3 फीसदी था। अर्थशास्त्री यह आकलन भी कर रहे हैं कि जीडीपी की विकास दर आखिरी तिमाही (जनवरी-मार्च, 2024) के दौरान कुछ कम भी हो सकती है। चौथी तिमाही में विकास दर 5.9 फीसदी हो सकती है। फिर भी हमारी अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी दर चीन, अमरीका, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी सरीखे बड़े देशों से अधिक रहेगी। यह आकलन अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का है। कुछ विदेशी अर्थशास्त्री यह आकलन कर रहे हैं कि 2024-25 के दौरान विकास दर 5 फीसदी भी रही, तो गनीमत समझें। भारत की अर्थव्यवस्था फिर भी दुनिया में सबसे आगे रहेगी। बहरहाल अर्थशास्त्री ही 8.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर देखकर हैरान हैं, क्योंकि 30 से अधिक अर्थशास्त्रियों के अनुमान थे कि दिसंबर तिमाही में बढ़ोतरी दर 6 से 7.2 फीसदी के बीच रह सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी तीसरी तिमाही में विकास दर 6.5 फीसदी का अनुमान लगाया था, लेकिन आंकड़े तमाम अपेक्षाओं और अनुमानों को पीछे छोड़ गए हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने यह पूरा डाटा जारी किया है। सभी अनिवार्य मानदंडों और क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था की गति धावक वाली है, लेकिन कृषि की अनुमानित बढ़ोतरी दर 2023-24 में 0.7 फीसदी ही रहेगी। 2022-23 में यह दर 4.7 फीसदी थी। दिसंबर तिमाही में भी कृषि की यह दर -0.8 फीसदी आंकी गई है। यह नकारात्मक और निराशाजनक संकेत है। अलबत्ता औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े खनन, उत्पादन, बिजली, गैस, निर्माण, जल आपूर्ति आदि क्षेत्रों ने खूब गति पकड़ी है और उनकी औसतन विकास दर 9 फीसदी रहेगी। ऐसी विकास दर का सबसे बड़ा कारण यह है कि अर्थव्यवस्था में 17 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी रखने वाले उत्पादन क्षेत्र में 11.6 फीसदी की वृद्धि हुई है।

यही दर बीती दिसंबर तिमाही के दौरान -4.8 फीसदी, यानी नकारात्मक, थी। उत्पादन के बाद निर्माण और बिजली क्षेत्रों की वृद्धि दर क्रमश: 9.5 फीसदी और 9 फीसदी रही है। नतीजा यह है कि देश में उत्पादन और निर्माण क्षेत्रों का विकास टिकाऊ और गतिशील रहा है। सेवा क्षेत्रों-व्यापार, होटल, परिवहन, संचार, वित्तीय, रियल एस्टेट, पेशेवर सेवाएं आदि-में आर्थिक विकास दर अपेक्षाकृत धीमी है, लेकिन फिर भी उनका औसत विकास 7 फीसदी रहा है। डाटा के मुताबिक, जीडीपी का आकार 43.55 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है, जो बीते साल की समान तिमाही में 40.35 लाख करोड़ रुपए था। बेशक जीडीपी बढ़ी है, विकास दर अप्रत्याशित रही है, गति निरंतर है, उसके बावजूद उपभोग, खपत के स्तर पर अब भी निराशा है। मजबूत अर्थव्यवस्था का सही फायदा तभी मिलेगा, जब खपत और निजी निवेश में बढ़ोतरी होगी। निजी व्यय सिर्फ 3.5 फीसदी की दर से बढ़ा है। पूरे वित्त वर्ष में यह दर घटकर 3 फीसदी तक लुढक़ सकती है। हालांकि निवेश गतिविधियां 10.2 फीसदी से बढ़ती दिख रही हैं, लेकिन अर्थशास्त्री इसकी गति तेज चाहते हैं। उससे निजी उपभोग के आसार बढ़ेंगे। 2023-24 में अप्रैल-जनवरी, 2024 के दौरान देश का कर-राजस्व 18.8 लाख करोड़ रुपए रहा है, जो पिछले साल इसी अवधि में 16.9 लाख करोड़ रुपए था। सबसिडी खाद्य, उर्वरक, यूरिया, पोषाहार और पेट्रोलियम को लेकर केंद्र सरकार की सबसिडी आगामी वर्ष 6.02 लाख करोड़ रुपए से घट कर 5.43 लाख करोड़ रुपए रह जाएगी। यानी सबसिडी पर लगातार अंकुश रखा जा रहा है। इससे भी जीडीपी में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। गौरतलब यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में यह अप्रत्याशित बढ़ोतरी और गति तब सामने आई है, जब चीन और यूरोजोन आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। जर्मनी में आर्थिक विकास दर -0.5 फीसदी नकारात्मक है। बहरहाल हमारी विकास दर से देश पर भरोसा अधिक बढ़ेगा।


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