मन, मकसद और मंसूबे

By: Mar 8th, 2024 12:05 am

विकास के नए स्रोत पर खड़ी हिमाचल सरकार खुद को चिन्हित करती हुई, नागरिक आशाओं की पैरवी कर रही है। राजनीतिक घटनाक्रम के अतीत से निकल कर सुक्खू सरकार के पैगाम अपनी तीव्रता के केंद्र बिंदुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं। गारंटियों की इतिला के बाद विकास की गंगा के साथ मुख्यमंत्री के संदेश स्पष्ट हैं और इसी आधार पर कांगड़ा व हमीरपुर के नाम दर्ज 861 करोड़ अपनी कहानी बता रहे हैं। लाभान्वित विधानसभा क्षेत्र मुखातिब हैं, तो सरकार की प्राथमिकताएं भी चमत्कार कर रही हैं। वर्षों से एक नए बस स्टैंड की उम्मीद में हमीरपुर की करवटें बदल रही हैं। करीब 70 करोड़ की लागत से बनने जा रहे बस स्टैंड निर्माण का मुहूर्त आशाजनक है, तो इसी तरह पर्यटन राजधानी के ख्वाब कांगड़ा में मुख्यमंत्री के कदमों की आहट सुन रहे हैं। पहली फेहरिस्त में पर्यटन प्राथमिकताओं का आगाज बनखंडी के चिडिय़ाघर में चहक रहा है, तो नगरोटा बगवां के केंद्र में महक रहा है। छह सौ करोड़ की लागत से चिडिय़ाघर का स्वरूप वाकई पर्यटन के जंगल में मंगल करने का इरादा रखता है, तो नगरोटा में 241 करोड़ की पर्यटन परियोजनाओं का शृंगार आने वाले कल का महत्त्व बता रहा है। हो सकता है राजनीतिक समीकरणों की खिलखिलाहट में विकास के नक्शे भी नए अंदाज में गरज रहे हों, लेकिन उम्मीदों के गुलदस्ते लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अब मन, मकसद और मंसूबों की नई हाजिरी लगा रहे हैं।

कांगड़ा का सियासी चित्रण हर सरकार में देखा और समझा जाता है। इस बार भी बेदखल विधायकों के प्रकरण के दो छोर, दो इतिहास और दो नेताओं की युगलबंदी में राजनीतिक खनन कर गया। ऐसे में राज्यसभा चुनाव की गणना में कई भूगोल, तो कई दुर्ग बन गए हैं। सरकार से छह, लेकिन सत्ता से कुल नौ विधायक छिटके हैं, तो अब विकास के मायने भी बदल सकते हैं। इसलिए कांगड़ा की भूमि पर मुख्यमंत्री का आशीर्वाद नगरोटा बगवां में देखा गया। यहां संसदीय क्षेत्रों की परिपाटी में कांगड़ा का दूसरा भाग अब हमीरपुरी हवाओं का मूल्यांकन है, इसलिए बनखंडी की शोहरत का सदन अलग हो जाता है। इसी तरह केंद्रीय विश्वविद्यालय परिसर की देखरेख में, देहरा में गर्दन उठा रही इमारतें बताती है कि इस ताजपोशी का गणित कहां ठीक बैठता है। अब विकास के गलियारे एक तरह से सियासत के भी गलियारे हैं।

अत: विकास की शब्दावली सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, कई बार पथराव भी है। कांगड़ा के एक छोर में हमीरपुर संसदीय क्षेत्र पुष्पित हुआ, तो दूसरे छोर में नगरोटा बगवां पल्लवित हुआ। ऐसे में कांगड़ा की पर्यटन राजधानी कहीं आज की राजनीतिक राजधानी ही न हो जाए। यह इसलिए भी कि नगरोटा बगवां के साथ लगती कांगड़ा जिला की राजधानी यानी धर्मशाला में केंद्रीय विश्वविद्यालय का प्रस्तावित परिसर गहन उपेक्षा के बादलों से घिरा किससे फरियाद करे। इसी संघर्ष में नागरिक समाज वर्षों से जूझ रहा है और एक विधायक का सियासी सफर रूठ रहा है। कांगड़ा के नाम करोड़ों की राशि, लेकिन सीयू परिसर के ढाई सौ करोड़ बचाने के लिए तीस करोड़ भी उपलब्ध नहीं। प्रश्र अब यह है कि सरकार अगर बागी विधायकों को सबक सिखाते-सिखाते कहीं इन विधानसभा क्षेत्रों की जनता को भी सबक न सिखा दे। ऐसे में नौ बागी विधायकों के सियासी माजरे में हलकों की जनता को भी उपेक्षित किया जाता है, तो यह अन्याय है। कांगड़ा की पर्यटन राजधानी के होर्डिंग्ज अगर केवल नगरोटा बगवां से रू-ब-रू हैं, तो ऐसा क्यों न माना जाए कि अब इन फिजाओं का घर्षण ही नया सियासी पर्यटन है।


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