उपभोक्ता अधिकारों के प्रति सचेत होने की जरूरत

By: Mar 13th, 2024 12:05 am

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 अन्य कानूनों की अपेक्षा उपभोक्ताओं को अधिक संरक्षण प्रदान करता है। उपभोक्ताओं के विवादों का शीघ्र और उचित निपटारा करने के लिए अर्ध-न्यायिक पद्धति को बनाया गया है। इसमें जिला फोरम, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग शामिल हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है…

खाद्य पदार्थों में मिलावट आज विश्वव्यापी समस्या है। बहुत से देशों में इसने भयावह रूप धारण कर लिया है। अधिकांश लोग यह जाने बिना कि उसमें मिलावट है, खाद्य पदार्थों का सेवन कर लेते हैं जिससे उपभोक्ता विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। जनसंख्या में वृद्धि, शहरीकरण, भोजन की कमी और अनुचित लाभ की लालसा के कारण मिलावट ने भयंकर रूप धारण कर लिया है। इस तरह के कदाचार का अंतिम लक्ष्य ज्यादातर उपभोक्ता होते हैं जो अनजाने में इन खाद्य पदार्थों को खरीदते और खाते हैं तथा विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीडि़त हो जाते हैं। मिलावटी भोजन से उपजी बीमारियों के उपचार के लिए बाजार में दूषित दवाओं से या तो मौत हो जाती है या उपचार ताउम्र ही चलता रहता है जिससे उस परिवार की माली हालत खराब हो जाती है। दूषित दवाइयों से सारी दुनिया ही ग्रसित है और ये मौत का कारण भी हैं। 2006 में पनामा में कम से कम 366 लोगों की मौत का कारण बना दूषित कफ सिरप। भारत में बने कफ सिरप पीने से गाम्बिया में 66 बच्चों की मौतें, जम्मू-कश्मीर में खांसी/जुकाम की दवा से 10 बच्चों की मौतें, उज्बेकिस्तान में इंडियन कफ सिरप से 18 बच्चों की मौतें भी उल्लेखनीय हैं। इसी तरह 1998 में दिल्ली में 33 मौतें, 1986 में मुंबई में 14 मौतें और 1973 में चेन्नई में 14 मौतें हुई थी। दूषित दवाओं से ऐसी और बहुत सी मौतें हुई हैं और हो रही हैं। ये सब दवाइयों में गुणवत्ता की उपेक्षा के कारण हैं। पूरे विश्व में दूषित दवाओं की पूर्ति के लिए चीन और भारत की छवि खराब है।

दूषित दवाओं को बनाने में हिमाचल प्रदेश भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। हिमाचल में बीबीएन एशिया का सबसे बड़ा फार्मा हब माना जाता है। यहां 380 से ज्यादा फार्मा उद्योग हैं। प्रदेश में 675 फार्मा उद्योग कार्यरत हैं। देश में दवाइयों की खपत के बाद करीब 183 अन्य देशों में दवाइयां निर्यात की जाती हैं। 25-30 हजार करोड़ रुपए का सालाना व्यवसाय यहां होता है। प्रदेश के फार्मा उद्योग में करीब 2 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। पिछले 5 सालों में दवाइयों के 8000 सैंपल फेल हुए। जिन दवाइयों के सैंपल फेल हुए उनमें शुगर, संक्रमण, एंटीबायोटिक, एलर्जी, ब्लड क्लोट व दर्द निवारक दवाइयां शामिल हैं। विश्व भर में हिमाचल की छवि को नुकसान पहुंचा है। हिमाचल को इस संदर्भ में नीति बनाने की आवश्यकता है, जिसमें उच्च गुणवत्ता की टेस्टिंग लैब बने और दवाओं की गुणवत्ता चैक होने के बाद ही बाजार में भेजें। प्रमुख खाद्य पदार्थों में भी मिलावट होती है। इनमें गेहूं-चावल में कंकड़/मिट्टी, सरसों तेल में सस्ता पाम आयल, हल्दी में लैड क्रोमेट और पीली मिट्टी, दूध में यूरिया व डिटर्जेंट, मिर्च में लाल ईंट पत्थर पाउडर, फल-सब्जी में कृत्रिम रंग, रेलवे स्टेशनों एवं बस अड्डों पर मिलावटी दूध की चाय आदि शामिल हैं जिनसे विभिन्न बीमारियां होती हैं, जैसे हृदय रोग, गुर्दों पर दुष्प्रभाव, लीवर-मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव, पेट रोग आदि। बहुत से लोग इन बीमारियों से ग्रसित हैं। खाद्य सुरक्षा कानूनों के ढीले कार्यान्वयन और उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता की कमी के कारण ही खाद्य पदार्थों में मिलावट बड़े पैमाने पर हो रही है। उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों एवं जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करने, बाजार में होने वाली ग्राहक जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावटी चीजों का वितरण, तय मूल्य से ज्यादा दाम वसूलना, बिना मानक चीजों की बिक्री, ठगी, नापतोल में अनियमितताएं, गारंटी के बाद सर्विस नहीं देने के अलावा उपभोक्ताओं के प्रति होने वाले अपराधों को देखते हुए हर साल 15 मार्च को नए थीम के साथ विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता है।

उपभोक्ता आंदोलन के जनक अमरीकी राजनीतिक कार्यकर्ता और लेखक राल्फ नादर थे। उपभोक्ता अधिकारों को बनाए रखने के लिए 1962 में अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी द्वारा अमरीकी कांग्रेस में दिए गए ऐतिहासिक भाषण की याद में 15 मार्च को चुना गया था। 15 मार्च 1983 को उपभोक्ता समूहों के लिए एक संघ ‘कंज्यूमर्स इंटरनेशनल’ द्वारा मनाया गया था। कंज्यूमर इंटरनेशनल दुनिया भर के उपभोक्ता समूहों के लिए सदस्यता संगठन है। 1 अप्रैल 1960 को स्थापित, इसके 120 देशों में 250 से अधिक सदस्य संगठन हैं। इसका मुख्य कार्यालय लंदन में है। भारत में पहला राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस 24 दिसंबर 1986 को मनाया गया था। उपभोक्ता के छह अधिकार हैं : सुरक्षा, सूचना, चुनने, सुने जाने, निवारण और उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार। इन अधिकारों के अलावा शोषण से बचने के लिए हमारे कुछ कत्र्तव्य हैं। वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता कुछ मानकों द्वारा तय की जाती है। इसमें कोई भी सामान खरीदने से पहले उन मानकों को देख-समझ कर ही वस्तु क्रय करनी चाहिए।

भारत में स्वास्थ्य का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसे राष्ट्रीय संविधान और वैधानिक कानूनों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कानूनों में भी वैधता दी गई है। इसी के दृष्टिगत भारत सरकार और राज्य सरकारों ने बहुत से कानूनों और अधिनियमों को पारित कर दूषित दवाओं और खाद्य पदार्थोंं में मिलावट को रोकने के कदम उठाए हैं, जैसे सुरक्षित भोजन के संबंध में मुख्य कानून है 1954 का खाद्य पदार्थ अपमिश्रण निषेध अधिनियम। यह कानून 65 खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों या मिलावट का नियमन करता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 अन्य कानूनों की अपेक्षा उपभोक्ताओं को अधिक संरक्षण प्रदान करता है। उपभोक्ताओं के विवादों का शीघ्र और उचित निपटारा करने के लिए अर्ध-न्यायिक पद्धति को बनाया गया है। इसमें जिला फोरम, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग शामिल हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है। कुल मिलाकर देखें तो कई कानून होने के बावजूद भारत में उपभोक्ता अभी जागरूक नहीं हैं। उन्हें इस संबंध में जागरूक करने की जरूरत है।

सत्यपाल वशिष्ठ

स्वतंत्र लेखक


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