एकाकी महिलाओं की व्यथा

आप उन लोगों की लिस्ट तैयार करें जिनके साथ आपको हमेशा एक सहारा मिलता रहा है, जिनके पास आप अपना सुख-दुख बांट पाती हों या जिनके पास आप खुलकर हर बात बोल पाती हों। अकेलेपन की भले ही आप शिकार हों, लेकिन यह हमेशा खुद सोचें कि आपको जहां तक हो सके, सोशल बनना है। इसके लिए आप खुद को कहें कि आप इंट्रेस्टिंग हैं और आपको लोग पसंद करते हैं। कभी भी रिजेक्शन से डरे नहीं। एकाकी लोग सोशल वर्क करें, भले ही आप किसी भिखारी को अच्छा खाना दें या किसी बूढ़े पड़ोसी की मदद करें या कभी-कभी नर्सिंग होम जाकर सर्विस करें। आप अपनी तरफ से कुछ न कुछ अपने समाज के लिए काम करें। घर में खुद को बंद न रखें और जहां तक हो सके, आउटडोर रहें…

इस समय एकाकीपन से परेशान महिलाओं में आत्महत्याओं में वृद्धि की खबरें आ रही हैं। यह एक बड़ी सामाजिक समस्या है। कहते हैं कि हर कामयाब व्यक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ होता है, परंतु एक अध्ययन से पता चला है कि महिलाओं पर यह बात लागू नहीं होती। कुछ समय पहले के एक अनुमान के मुताबिक भारत में तीन करोड़ 98 लाख महिलाएं एकल जीवन व्यतीत करने को बाध्य हैं जिनमें से आधी से अधिक गरीब हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार इनमें विधवा महिलाओं की संख्या तीन करोड़ 41 लाख 62 हजार 051, तलाकशुदा एवं परित्यक्ता महिलाएं 22 लाख 86 हजार 788 तथा अविवाहित महिलाएं या 30 वर्ष या उससे अधिक उम्र की 33 लाख 17 हजार 719 महिलाएं हैं। इनमें से अधिकांश महिलाएं बिखरे घर, टूटे संबंधों, वैधव्य, बीमारी, बच्चों की परवरिश, अशिक्षा, सामाजिक बंधनों, शोषण, अत्याचार, दोहन, एकाकीपन, आजीविका कमाने आदि चुनौतियों से अकेली जूझ रही हैं।

कटु सत्य है कि अकेली और एकाकी महिलाओं का हमारे समाज में जीना दूभर है, चाहे वह कितनी ही समृद्ध और आत्मनिर्भर क्यों न हों। अविवाहित होकर एकाकी जीवन वाली महिलाएं भी बहुत संख्या में हैं। योग्य वर की तलाश में तो अनेक युवतियां प्रौढ़ हो जाती हैं। एकाकी जीवन महिलाओं के लिए बहुत मुश्किल है। कुछ महिलाएं समय रहते विवाह बंधन में नहीं बंध पाती। कुछ महिलाएं अपने कैरियर को संवारने में ही इतना व्यस्त रहती हैं कि उन्हें विवाह का ख्याल ही नहीं आता और जब इस बारे में वे सोचती हैं तब इतना वक्त निकल चुका होता है कि उन्हें मनपसंद वर की प्राप्ति नहीं होती और वे अविवाहित रहने को मजबूर हो जाती हैं। कुछ युवतियां पारिवारिक दायित्वों को निभाने में ही अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी बिता देती हैं। आज युवा वर्ग की सोच में परिवर्तन आया है। हर कोई अपने ढंग से जिंदगी जीना चाहता है। स्त्रियों को अपनी कल्पना का साथी नहीं मिल पाता, घरवालों को अपनी बेटी के लिए योग्य वर नहीं मिल पाता, फलत: विवाह का वक्त निकलता जाता है और धीरे-धीरे उम्र खिसकने के साथ-साथ उन्हें मन मसोस कर रह जाना पड़ता है। कहीं-कहीं दहेज जैसी कुप्रथा भी आड़े आ जाती है। युवावस्था तो किसी तरह निकल जाती है, पर ढलती उम्र में यह अकेलापन खटकने लगता है। किसी भी काम में मन नहीं लगता। किसके लिए और क्यों जी रही हैं, यह सवाल बार-बार मन को कचोटता है। जिन भाई-बहनों और घर-परिवार की जिम्मेदारी को निभाने में वे अपनी जवानी अर्पित कर देती हैं, वही भाई-बहन अपना स्थायित्व पा लेने के बाद उनसे दूर होने लगते हैं और यही अकेलापन उनके जीने की इच्छा को कम करता चला जाता है। कभी-कभी उन्हें लगता है कि यह जिंदगी बेमतलब, बेकार है। जिंदगी को वे व्यर्थ ही ढो रही हैं और यही अहसास उनके अंदर एक अवसाद-सा भर देता है और वे मानसिक रूप से बीमार होती चली जाती हैं।

वाटरलू विश्वविद्यालय में शेली बर्सिल द्वारा किए गए शोध के अनुसार महिलाएं पुरुषों की तुलना में अकेलेपन को अधिक व्यक्त करती हैं। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि वे आमतौर पर पुरुषों की तुलना में अधिक अकेलेपन की प्रवृत्ति रखती हैं, बल्कि महिलाएं कम प्रतिकूल परिणामों के कारण ऐसा महसूस करने लगती हैं। पुरुष और महिलाएं दोनों अपने मस्तिष्क की संरचनाओं के बाद भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाते हैं, लेकिन पुरुष आम तौर पर महिलाओं की तुलना में अकेलेपन और नकारात्मकता की भावनाओं को छिपाने की अधिक कोशिश करते हैं। पुरुष इस भावना से पार पाने के लिए आम तौर पर अधिक लोगों से बात करने और अपना अलग ग्रुप बनाने की कोशिश करते हैं। दूसरी ओर महिलाएं ज्यादातर जान-पहचान वाले लोगों का ग्रुप बनाने पर विश्वास नहीं करती हैं, बल्कि वे अधिक गुणात्मक संबंधों का रुख करती हैं। इस प्रकार उन्हें पुरुषों की तुलना में अन्य लोगों से जुडऩे में अधिक समय लगता है। टूटे रिश्तों या विवाह के मामलों में, महिलाएं शुरुआत में अकेलापन महसूस करती हैं, जबकि पुरुषों को बाद में इसका अहसास होने लगता है। यह महिलाओं की भावनात्मक प्रकृति के कारण है, जबकि पुरुष अपनी भावनाओं को तब तक छिपाने की कोशिश करते हैं जब तक वे इसे दूर करने में सफल न हो जाएं। तन्हा रहना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है, खासकर जब आप महिला हों। संयुक्त परिवार में भरोसा होता है कि कोई परेशानी आएगी, तो सब मिलकर उसका सामना करेंगे। लेकिन अकेले रहने पर समझ नहीं आता कि मुसीबत में किससे सहारा मांगें, किससे अपना सुख-दुख कहें। 2011 की जनगणना बताती है कि 2001 से 2011 के बीच सिंगल विमन की तादाद 5 करोड़ से बढक़र 7 करोड़ से अधिक हो गई, यानी इसमें तकरीबन 39 फीसदी का इजाफा हुआ। सरकारी डेटा से यह भी पता चलता है कि महिला प्रधान परिवारों की संख्या बढ़ रही है। 2011 की जनगणना के मुताबिक करीब 20 फीसदी घरों की मुखिया महिलाएं हैं।

एकाकीपन किसी के लिए भी जानलेवा साबित हो सकता है, बेहतर है कि इस एकाकीपन पर काबू पाने के लिए आप खुद को व्यस्त करें और अपने लिए एक एक्टिविटी लिस्ट बनाएं और जहां तक हो सके खुद को बिजी रखें। इसके लिए आप अपनी पसंद की चीजों को करने की ठानें और उन्हें पूरा करने की डेडलाइन डिसाइड करें। मसलन इंडोर या आउटडोर गेम, वर्कआउट, डांस क्लास, आर्ट क्लास, ट्रैवलिंग आदि। कोशिश करें कि आप मित्रों के बीच में हों। इसके लिए आप उन हॉबीज पर काम करें जिसमें बिगनर्स को ग्रुप में लिया जाता हो। इसके लिए आप हाइकिंग, पेंटिंग, फोटोग्राफी क्लास आदि ज्वाइन कर सकती हैं। आप उन लोगों की लिस्ट तैयार करें जिनके साथ आपको हमेशा एक सहारा मिलता रहा है, जिनके पास आप अपना सुख-दुख बांट पाती हों या जिनके पास आप खुलकर हर बात बोल पाती हों। अकेलेपन की भले ही आप शिकार हों, लेकिन यह हमेशा खुद सोचें कि आपको जहां तक हो सके सोशल बनना है। इसके लिए आप खुद को कहें कि आप इंट्रेस्टिंग हैं और आपको लोग पसंद करते हैं। कभी भी रिजेक्शन से डरे नहीं। एकाकी लोग सोशल वर्क करें, भले ही आप किसी भिखारी को अच्छा खाना दें या किसी बूढ़े पड़ोसी की मदद करें या कभी कभी नर्सिंग होम जाकर सर्विस करें। आप अपनी तरफ से कुछ न कुछ अपने समाज के लिए काम करें। घर में खुद को बंद न रखें और जहां तक हो सके आउटडोर रहें। ऐसा करने से आप अधिक बेहतर महसूस करेंगी और आपका मेंटल हेल्थ भी अच्छा रहेगा। एकाकी महिलाओं के लिए संपूर्ण सेहत के यही उपाय हैं।

डा. वरिंद्र भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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