रथ मेला वृंदावन का धार्मिक महत्व

By: Mar 30th, 2024 12:28 am

रथ का मेला वृंदावन, उत्तर प्रदेश में महत्त्वपूर्ण उत्सव है। होली समाप्त होते ही चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया से रंगजी, वृंदावन के मंदिर का प्रसिद्ध रथ मेला प्रारंभ हो जाता है। प्रतिदिन विभिन्न सोने-चांदी के वाहनों पर रंगजी की सवारी निकलती है। चैत्र कृष्ण नवमी को रथ का मेला तथा दसवीं को भव्य आतिशबाजी होती है। यह बहुत बड़ा मेला होता है…

रथयात्रा

वृंदावन में रंगनाथ जी मंदिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है। यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मंदिर से भगवान रथ में जाते हैं। सडक़ से चल कर रथ 690 गज रंगजी के बाग तक जाता है, जहां स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जुलूस के साथ संगीत, सुगंध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग में लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं। भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड़ कर खींचते हैं। लगभग ढाई घंटे के अंतराल में काफी जोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है। आगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाजी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आसपास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं। कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी कदम्ब तो कभी कल्पवृक्ष रहता है। कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है, जैसे सूरज, गरुड़, हनुमान या शेषनाग। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाए जाते हैं।

वृंदावन की अवस्थिति

मथुरा शहर में सम्मिलित वृंदावन मथुरा से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक नगर है। वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की लीला से जुड़ा हुआ है। यह स्थान श्री कृष्ण की कुछ अलौकिक बाल लीलाओं का केन्द्र माना जाता है। यहां विशाल संख्या में श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर हैं। बांके बिहारी जी का मंदिर, श्री गरुड़ गोविंद जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का, श्री पर्यावरण बिहारी जी का मंदिर बड़े प्राचीन हैं। इसके अतिरिक्त यहां श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, वैष्णो देवी मंदिर, निधि वन, श्री रामबाग मन्दिर आदि दर्शनीय स्थान भी हैं। यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है। इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों के अस्तित्व का भान होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन में निवास के लिए आए थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में भी वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। वर्तमान में टटिया स्थान, निधिवन, सेवाकुंज, मदनटेर, बिहारी जी की बगीची, लता भवन (प्राचीन नाम टेहरी वाला बगीचा) आरक्षित वनी के रूप में दर्शनीय हैं।


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