सो क्यों मंदा आखिए…

By: Mar 14th, 2024 12:06 am

बेटी के जन्म पर दुखी होने वालों को समझना होगा कि हम बेटों को बुढ़ापे का सहारा मानते हैं तो समाज में ऐसे बेटों की भी कमी नहीं है जिन्होंने मां-बाप के जीवन को नर्क बना दिया और ऐसी बेटियों की भी कमी नहीं है जिन्होंने अपने मां-बाप में से किसी एक के अकेले रह जाने पर उनको सहारा दिया, साथ दिया, प्यार दिया, बेटी के बजाय मां बनकर देखभाल की। गुरु नानक देव जी ने बहुत ही सटीक बात कही है – ‘सो क्यों मंदा आखिए, जिन जम्मे राजे’, यानी हम महिलाओं को नीची नजर से कैसे देख सकते हैं जबकि उन्होंने ही महान राजाओं, फकीरों और दार्शनिकों को जन्म दिया, पाला और समाज को कुछ दे पाने के काबिल बनाया। गुरु नानक देव जी की यह सीख हमारा आदर्श वाक्य होना चाहिए, होना ही चाहिए…

हर साल जब कैलेंडर बदलता है। हर साल फरवरी के बाद मार्च आता है। हर साल के मार्च महीने में आठ तारीख आती है और हर साल इस तारीख को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। वो एक दिन का जुनून, वो एक दिन के कार्यक्रम, वो एक दिन की गहमागहमी, अक्सर उस एक ही दिन तक ही सीमित रहती है और 9 मार्च को सब कुछ पहले जैसा हो जाता है। भ्रूण हत्या, लड़कियों से छेड़छाड़, घरेलू हिंसा जैसे पहले थे, वैसे ही बरकरार रहते हैं। एक समाज के रूप में हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को एक फैशनेबल परंपरा के रूप में मनाते हैं और अगले ही दिन भूल भी जाते हैं। सोडावॉटर की बोतल खोलें तो अक्सर उसमें भरी गैस के कारण सोडा बड़े वेग से बोतल से बाहर आ जाता है, लेकिन जितना सोडा बाहर आता है, उतनी ही बोतल खाली हो जाती है। हमारा सारा उत्साह, सारा जोश, सारा निश्चय भी इतना ही खोखला है। सवाल है कि क्या हम इस स्थिति को बदल सकते हैं? पर उससे पहले का आवश्यक सवाल है कि क्या हम इस स्थिति को बदलना चाहते हैं? अगर हां, तो समस्या का हल तो है, और हल कारगर भी है, बशर्ते कि इसे खुले मन से स्वीकार किया जाए। मेरे मित्र जोसेफ जूड हर पंद्रह दिन में एक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं जिसमें हर बार किसी पुस्तक की समीक्षा होती है, उसकी शिक्षाओं पर चर्चा होती है और उन शिक्षाओं को हम अपने जीवन में कैसे उतार सकें, इस पर मंथन होता है। इस बार जिस पुस्तक की बारी थी उसका नाम है ‘ईक्वल, येट डिफरेंट’, और इस नायाब पुस्तक की जीवंत समीक्षा की एक अन्य मित्र प्रिया शर्मा ने। ईक्वल येट डिफरेंट, यानी बराबर, फिर भी अलग। बराबर हैं, पर एक जैसे नहीं हैं, कुछ अलग भी है। सम्मान उस बराबरी का भी और उस अलग होने का भी। यही संदेश है इस शानदार पुस्तक का जिसे प्रसिद्ध क्रिकेट कमेंटेटर हर्षा भोगले की धर्मपत्नी अनीता भोगले ने लिखा है।

हम जानते हैं कि हर बड़े मॉल की पार्किंग वाले हिस्से में बने खंभों पर नंबर लिखा होता है ताकि जब आपने अपनी गाड़ी पार्किंग से बाहर निकालनी हो तो आपको गाड़ी ढूंढने में परेशानी न हो। प्रिया शर्मा ने अपने जीवन में घटी एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि एक मॉल में पार्किंग करते समय उन्होंने देखा कि कुछ खंभे गुलाबी रंग से रंगे हुए हैं जबकि शेष सारे खंभों पर सफेद पेंट किया गया था। उन्होंने इसके बारे में दरयाफ्त किया तो पता चला कि ये खंभे इसलिए गुलाबी रंग से रंगे गए हैं ताकि अकेली आने वाली महिला ड्राइवर अपनी गाड़ी वहां पार्क कर सकें। ये जानकर उन्हें आश्चर्य भी हुआ और दुख भी कि आज भी महिला ड्राइवरों को इतना असहाय माना जा रहा है कि उनके लिए पार्किंग भी अलग बनानी पड़ गई है। उनका कहना था कि महिलाएं वो हर काम बखूबी कर सकती हैं और कर भी रही हैं, जो कोई पुरुष कर सकता है या कर रहा है, फिर महिलाओं को इतना असहाय मानना दरअसल उनका अपमान ही है। यह सच है कि कोई महिला नेत्री नहीं होती। नेता अच्छे या बुरे हो सकते हैं, होते ही हैं, पर उन्हें पुरुष या स्त्री होने के कारण अच्छा या बुरा नहीं माना जा सकता। अगर हम इस कथन की गहराई को समझें तो स्पष्ट हो जाता है कि महिलाओं को किसी अलग दृष्टि से देखने की आवश्यकता नहीं है। एक समान पद पर काम करने वाले दो पुरुषों से भी अलग-अलग व्यवहार किया जाता है ताकि उनकी काबीलियत का भरपूर लाभ लिया जा सके। महिला और पुरुष के साथ व्यवहार में भी बस इतना सा ही भेद होना चाहिए। शारीरिक-प्राकृतिक आवश्यकताओं के कारण वे अलग हैं, पर इससे आगे और कुछ नहीं।

शेष व्यवहार एक सरीखा ही होना चाहिए। न इससे कम, न इससे ज्यादा। ‘ईक्वल, येट डिफरेंट’ पुस्तक की खासियत यह है कि यह सिर्फ समस्या की ही बात नहीं करती, महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव की ही बात नहीं करती, बल्कि इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं, या हमें क्या करना चाहिए, इसकी भी बात करती है। हम अपने परिवार में क्या करें, विभिन्न संस्थाओं में कामकाजी महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए, पुरुष होने के नाते हम क्या करें, समाज में रहते हुए एक सामाजिक प्राणी के रूप में हम क्या करें, महिलाएं अन्य महिलाओं के साथ कैसे पेश आएं और खुद महिलाएं अपने लिए क्या कर सकती हैं। अगर हम सब इस नजरिये से सोचना शुरू करें और उस पर अमल करना शुरू कर दें तो धीरे-धीरे समाज में बदलाव आएगा और समस्या हल हो जाएगी। अक्सर देखा गया है कि पारिवारिक आवश्यकताओं के कारण अगर पति-पत्नी में से किसी एक को जॉब छोडऩा पड़े तो यह बलिदान महिला ही करती है। पुरुष अपनी सफलता अपने काम में देखता है जबकि महिला अपनी सफलता अपने परिवार में देखती है। इसके साथ ही यह समझना भी आवश्यक है कि शादी टूट जाने की स्थिति में महिला की आर्थिक स्वतंत्रता उसका बहुत बड़ा संबल है, इसलिए महिलाओं को अपनी आर्थिक स्वतंत्रता बनाए रखने की आवश्यकता को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हमें यह भी समझना है कि इंटरनेट के इस जमाने में बच्चों पर सोशल मीडिया का प्रभाव बहुत अधिक है। हम सूचनाओं के ओवरलोड से ही परेशान नहीं हैं बल्कि अलग-अलग विचारों और विचारधाराओं का भी हम पर बहुत प्रभाव है और हमारी स्वतंत्र सोच को दूषित करना बहुत आसान हो गया है।

कच्ची उम्र की बच्चियों को गुमराह करके उनका शोषण करने वालों की कमी नहीं है, इसलिए अपनी बच्चियों को सही शिक्षा और सही संस्कार देना आज और भी आवश्यक हो गया है। इन सावधानियों के साथ अपनी बच्चियों और अपने घर की महिलाओं को अपेक्षित स्वतंत्रता देने में ही हमारा भला है। इसी से समाज में संतुलन कायम होगा। महिलाओं से भेदभाव, उनका निरादर, उन पर अनावश्यक बंदिशें गलत हैं। बेटा वंश-वृद्धि का साधन है तो बेटियां दो परिवारों का गौरव हैं। बेटी के जन्म पर दुखी होने वालों को समझना होगा कि हम बेटों को बुढ़ापे का सहारा मानते हैं तो समाज में ऐसे बेटों की भी कमी नहीं है जिन्होंने मां-बाप के जीवन को नर्क बना दिया और ऐसी बेटियों की भी कमी नहीं है जिन्होंने अपने मां-बाप में से किसी एक के अकेले रह जाने पर उनको सहारा दिया, साथ दिया, प्यार दिया, बेटी के बजाय मां बनकर देखभाल की। गुरु नानक देव जी ने बहुत ही सटीक बात कही है – ‘सो क्यों मंदा आखिए, जिन जम्मे राजे’, यानी हम महिलाओं को नीची नजर से कैसे देख सकते हैं जबकि उन्होंने ही महान राजाओं, फकीरों और दार्शनिकों को जन्म दिया, पाला और समाज को कुछ दे पाने के काबिल बनाया। गुरु नानक देव जी की यह सीख हमारा आदर्श वाक्य होना चाहिए, होना ही चाहिए।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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