कर करनी, कर जोड़ कर

By: Mar 28th, 2024 12:05 am

भजन-कीर्तन करते हों तो करें। माला जपते हों तो जपें। उसमें कुछ भी बदलने की आवश्यकता नहीं है। समझना सिर्फ ये है कि ये सब अध्यात्म की शुरुआती सीढिय़ां हैं। अध्यात्म में आगे तब बढ़ेंगे जब हम खुद भगवान हो जाएंगे, तो हमारा हर काम खुद-ब-खुद परमात्मा को समर्पित होता चला जाएगा। जीवन सिर्फ स्वस्थ ही नहीं होगा, खुशनुमा भी होगा और खुशहाल भी होगा। स्पिरिचुअल हीलिंग, यानी आध्यात्मिक उपचार इस मामले में हमारे लिए सबसे उपयुक्त साधन है, जो हमें हमारी मानसिकता बदलने, मन के अशुद्ध विचारों को बदलने की शक्ति देता है…

ईशा फाउंडेशन के मुखिया सद्गुरु के नाम से प्रसिद्ध श्री जग्गी वासुदेव इन दिनों दिल्ली के अपोलो अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। अपोलो अस्पताल द्वारा बीस मार्च को जारी किए गए प्रेस नोट के मुताबिक वे पिछले एक माह से तीव्र सिर दर्द से पीडि़त रहे हैं। पंद्रह मार्च को यह सिर दर्द जब हद से बढ़ गया तो सद्गुरु ने अपोलो अस्पताल के डॉक्टर विनीत सूरी से संपर्क किया। एमआरआई के बाद पता चला कि उनके मस्तिष्क में रक्तस्राव हो रहा है। उन्हें तुरंत अस्पताल में दाखिल होने की सलाह दी गई, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियों में उनकी शिरकत के चलते ऐसा संभव न हो सका। स्थिति ऐसी थी कि उनके जीवन को भी खतरा था, इसलिए अंतत: 17 मार्च को वे अस्पताल में दाखिल कर लिए गए और उनका आपरेशन हुआ। बीस मार्च के इस प्रेस नोट के मुताबिक आपरेशन के बाद उनकी हालत में सुधार हो रहा है, लेकिन जो महत्वपूर्ण बात इस प्रेस नोट में कही गई है, वह यह है कि दवाइयों और डॉक्टरों की देखभाल के अतिरिक्त सद्गुरु अपनी इच्छाशक्ति से खुद भी अपना इलाज कर रहे हैं। हमारा यह शरीर एक अद्भुत अस्पताल है जो अपना इलाज खुद ही कर पाने में समर्थ है, बशर्ते कि हम इसे अपना इलाज करने की इजाजत दें।

‘ओन योर बॉडी’ (अपने शरीर के मालिक खुद बनिए) पुस्तक के लेखक और इंस्टीट्यूट ऑव लिवर एंड बेलियारी सांइसिज के फाउंडिंग डायरेक्टर डा. शिव कुमार सरीन स्पष्ट रूप से कहते हैं कि किसी भी बीमारी की स्थिति में दवाई तभी लेनी चाहिए जब और कोई चारा न हो, क्योंकि हमारे शरीर में वो सब गुण और साधन मौजूद हैं जो शरीर को खुद ही ठीक कर सकते हैं। आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि हम धीरज रखें और प्राकृतिक जीवन जिएं। हम इतने सुविधाभोगी और नाजुक हो गए हैं कि जरा सी तकलीफ पर पेन किलर लेना, एंटी-बॉयोटिक्स लेना हमारी आदत में शुमार हो गया है, जबकि यह हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है। कोई भी दर्द या आम बुखार एक संदेशवाहक मात्र है जो हमें बताता है कि हमारे शरीर में कहीं कोई गड़बड़ है और इस गड़बड़ को ठीक किया जाना चाहिए, लेकिन गड़बड़ को ठीक करने के बजाय हम संदेशवाहक के इलाज में जुट जाते हैं। हम सब चाहते हैं कि हम स्वस्थ और खुशहाल जीवन जिएं। इस संबंध में चिकित्सा विज्ञान कहता है कि हमें स्वास्थ्यकर भोजन लेना चाहिए और नियमित व्यायाम करना चाहिए। मनोविज्ञान कहता है कि स्वस्थ रहने के लिए खुश रहना जरूरी है और खुश रहने के लिए हमारे मजबूत रिश्ते होने चाहिएं, हमें दोस्तों के साथ रहना चाहिए और हमारे कुछ अच्छे शौक होने चाहिएं। अध्यात्म कहता है कि रिश्ते मजबूत तभी होंगे अगर हमारे विचार धनात्मक हों। धनात्मक विचारों के लिए हमें हमेशा परमात्मा का शुक्रगुजार होना चाहिए। अध्यात्म हमें हमेशा ‘ऐटीट्यूड ऑव ग्रैटीट्यूड’, यानी हमेशा शुक्रगुजार होने की सीख देता है। निष्काम कर्म का नजरिया शुक्रगुजार रहने का सबसे बढिय़ा तरीका है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने निष्काम कर्म की महत्ता पर जोर देते हुए कहा है कि हम साक्षी भाव से अपना फर्ज निभाते चलें। कत्र्तव्य निष्पादन की राह में अगर युद्ध आवश्यक है तो वह भी यह मान कर करें कि हम परमात्मा के हाथों के औजार हैं। ‘तेरा तुझको सौंपते, क्या लागत है मोर’ की भावना से किया गया हर कार्य परमात्मा की स्तुति बन जाता है।

‘सहज संन्यास’ में रहते हुए मैंने यह सीखा है कि हम अगर निष्काम कर्म की सही व्याख्या को समझ लें तो हमारा हर काम परमात्मा की भक्ति हो सकता है। निष्काम कर्म की साधना बहुत आसान है। मैं जब वस्त्र पहनूं तो ये समझूं कि परमात्मा को वस्त्र पहना रहा हूं, तो मैं खुद अपने शरीर की सफाई रखूंगा और साफ-सुथरे कपड़े पहनूंगा। भोजन करते वक्त अगर मैं यह समझूं कि यह भोजन परमात्मा को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जा रहा है तो मैं पेड़-पौधों से मिलने वाला भोजन ही लूंगा, ताजा भोजन ही लूंगा और भोजन को इस हद तक चबाऊंगा कि वह तरल बन जाए, पानी सरीखा बन जाए, उसमें मेरी लार मिल जाए, भोजन की प्रकृति क्षारीय हो जाए और भोजन ही शरीर के लिए दवा का काम करे। सहज संन्यास की धारणा है कि हमारा शरीर ही मंदिर है, हमारा कत्र्तव्य ही पूजा है और चढ़ावा चढ़ाने के लिए किसी पूजा स्थल पर जाने की आवश्यकता नहीं है। मैं जो कुछ करूं, वह परमात्मा को अर्पण करके करूं। ‘कर करनी, कर जोड़ कर’ को इसी भाव में समझना चाहिए। कर करनी, यानी जो भी करें, कर जोड़ कर करें, हाथ जोड़ कर करें, परमात्मा को नमस्कार करके करें। संत रविदास जी ने क्या खूब ही कहा है कि ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’, मन शुद्ध हो आपके बर्तन में पड़ा पानी भी साधारण नहीं रह जाता, वह गंगाजल जितना निर्मल और पवित्र हो जाता है। दिन भर काम करते हुए हम इधर-उधर जाते हैं, वही परमात्मा की परिक्रमा है, मेरा हर काम परमात्मा की पूजा है। मैं ही परमात्मा हूं, और इस जगत का हर जीव-जंतु परमात्मा का ही अंश है। अब जब हर कोई परमात्मा का अंश है और मेरा हर काम परमात्मा की पूजा है तो मैं झूठ कैसे बोल सकता हूं, किसी को धोखा कैसे दे सकता हूं, फरेब कैसे कर सकता हूं? यही निष्काम कर्म है, यही सहज संन्यास है। वस्तुत: निष्काम कर्म ही सहज संन्यास है।

सहज संन्यास की खासियत ही यही है कि इसके लिए हमें अपना धर्म बदलने की आवश्यकता नहीं है। हम किसी भी धर्म, संप्रदाय, मत को मानते हों, हमारे इष्ट देव कोई भी हों, उसे बदलने की जरूरत नहीं है। बदलना है सिर्फ अपना नजरिया, अपना जीवन, अपना लाइफस्टाइल। इससे ही सब बदल जाएगा। ‘कर करनी, कर जोड़ कर’ दरअसल स्वस्थ और खुशहाल जीवन की कुंजी है। हम मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि किसी भी पूजा-स्थल पर जाते हों तो जाएं। भजन-कीर्तन करते हों तो करें। माला जपते हों तो जपें। उसमें कुछ भी बदलने की आवश्यकता नहीं है। समझना सिर्फ ये है कि ये सब अध्यात्म की शुरुआती सीढिय़ां हैं। अध्यात्म में आगे तब बढ़ेंगे जब हम खुद भगवान हो जाएंगे, तो हमारा हर काम खुद-ब-खुद परमात्मा को समर्पित होता चला जाएगा। जीवन सिर्फ स्वस्थ ही नहीं होगा, खुशनुमा भी होगा और खुशहाल भी होगा। स्पिरिचुअल हीलिंग, यानी आध्यात्मिक उपचार इस मामले में हमारे लिए सबसे उपयुक्त साधन है, जो हमें हमारी मानसिकता बदलने, मन के अशुद्ध विचारों को बदलने की शक्ति देता है। एक अनुभवी स्पिरिचुअल हीलर हमें केवल आधे घंटे में समाधि की अवस्था में ले जाकर वह सिखा सकता है जो अक्सर हम जीवन भर के प्रयत्नों से भी नहीं सीख पाते। एक स्पिरिचुअल हीलर और सहज संन्यासी के रूप में मैं यही बताने की कोशिश करता हूं कि निष्काम कर्म ही हमारा धर्म है। हम केवल निष्काम कर्म के धर्म को अपना लें तो फिर और कुछ बदलने की आवश्यकता नहीं रह जाती, क्योंकि निष्काम कर्म को जीवन में उतार लें तो जीवन ही बदल जाता है, और यही तो करना है। इतना ही करना है, बस।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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