हुसैनीवाला बॉर्डर पर श्रद्धांजलि समारोह कल, शहीद-ए-आजम भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव की कुर्बानियां करेंगे याद

By: Mar 22nd, 2024 12:06 am

निजी संवाददाता—फिरोजपुर

फिरोजपुर शहीदों की चिताओं पर हर वर्ष मेले लगेंगे। वतन पर मर मिटने वालों का बाकी यही एक निशां होगा। देश को आजाद करवाने के लिए सैकड़ों ऐसी कुर्बानियां इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। देश को आजाद करवाने में अहम भूमिका निभाने के साथ-साथ देश की भावी पीढ़ी को वीरता देशभक्ति व आपसी भाईचारे का संदेश देने वाले ऐसे ही देश के महान युवा क्रांतिकारियों में से एक हैं शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह राजगुरु व सुखदेव, जिन्होंने देश को आजाद करवाने के लिए युवा अवस्था में ही अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। 23 मार्च 1931 की वह काली रात जब अंग्रेज हुकूमत ने उक्त आजादी के मतवाले क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाकर उनकी हत्या कर दी और उनकी लाशों को बोरे में बंद करके सतलुज दरिया हुसैनीवाला बॉर्डर फिरोजपुर के किनारे पर लाकर जलाने का प्रयास किया। फांसी के दूसरे दिन तीनों शहीदों की अधजली लाशों को सतलुज दरिया के किनारे स्थानीय निवासियों ने पहचान लिया, यह खबर पूरे देश में फैल गई। आज उसी जगह पर हुसैनीवाला बॉर्डर उक्त तीनों शहीदों की समाधि स्थल बनी हुई है, जहां पर हर वर्ष राष्ट्रीय स्तर का श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाता है। राष्ट्रीय स्तर व राष्ट्रीय स्तर के मंत्री गण व अधिकारीगण शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने फिरोजपुर समाधि स्थल पर पहुंचते हैं।

शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह राजगुरु व सुखदेव ने अपने क्रांतिकारी युवा देश भक्ति के विचारों से देश के युवाओं में आजादी को लेकर ऐसी प्रेरणा पैदा की कि अंग्रेज सरकार के पांव उखडऩे शुरू हो गए। जिस आयु में युवा अपने भविष्य व शादी की सोचता है, उस आयु में इन आजादी के मतवालों ने अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवाने का प्रण लिया और अपने परिवार को कह दिया कि हमारी शादी तो अब मौत से ही होगी। देश को आजाद करवाना ही हमारी मंजिल है, वह तीनों युवा क्रांतिकारियों पर चंद्रशेखर आजाद के विचारों का भी काफी प्रभाव था। उन्होंने क्रांतिकारी दल में शामिल होकर सेवा और त्याग की भावना मन को और अधिक बढ़ावा दिया। इस समय आजादी की लहर काफी तेज चल रही थी और राष्ट्रीय स्तर के क्रांतिकारी देशभक्त अंग्रेजों को भारत से भगाने में लगे हुए थे। लाला लाजपत राय उन्हीं महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिनकी मौत अंग्रेजी हुकूमत के विरोध के दौरान लाठियां खाने से हो गई थी, जिसकी मौत का बदला लेने के लिए 18 दिसंबर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने अंग्रेज अधिकारी सांढस पर गोलियां चलाई और उसे मौत के घाट उतारा। इसके बाद क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाते हुए आठ अप्रैल 1929 में केंद्रीय असेंबली में ऐसी जगह बम फेंका जहां पर किसी को कोई जानी नुकसान न हो सके।

ऐसा उन्होंने सिर्फ अंग्रेज हुकूमत को डराने और यह बताने के लिए किया कि हम न तो डरते हैं और न ही खून खराबा चाहते हैं, हमारा एक ही मकसद है हमारा देश आजाद कर हो। भगत सिंह चाहते तो बम फेंकने के बाद वहां से भाग सकते थे, लेकिन वह वहां से भागे नहीं बल्कि अपने आप को गिरफ्तार करवाकर इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए। उन्होंने देश को एक संदेश दिया कि वह एक ऐसे देश की निर्माण चाहते हैं, जहां पर सभी को समानता का अधिकार हो और उसकी मेहनत उसे पूरा मेहनताना प्राप्त हो। उन्होंने संदेश दिया स्वतंत्रता प्रत्येक नागरिक का प्रथम अधिकार है, वह उसे मिलना ही चाहिए। जेल के दौरान शहीद-ए-आजम सरदार भगत भगत सिंह सुखदेव वाह राजगुरु की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि अंग्रेज हुकूमत को उन से डर लगने लगा, यहां तक कि उनकी फांसी का दिन 24 मार्च 1931 तय किया गया था, पर अंग्रेज हुकूमत को यह डर था कि कहीं लोग भडक़ न जाए और दंगे फसाद न हो जाए, जिसके कारण उन्हें 23 मार्च 1931 की रात को गुप्त रूप से फांसी दे दी गई।


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