परिसर में हिंसक भीड़

By: Mar 20th, 2024 12:05 am

आज एक ऐसा मुद्दा उठा रहे हैं, जो हमारे शिक्षण-संस्थानों के भीतर हिंसक भीड़ और उनके हमलों से जुड़ा है। यह भीड़ हमारी संस्कृति और हमारे मूल्यों से जुड़ी नहीं है, बल्कि एक देश के तौर पर हमें कलंकित करती है। जब मामला विदेशी छात्रों पर हिंसक हमले का सामने आता है, तब हमारे चिंता और सरोकार बढ़ जाते हैं। चूंकि दुनिया एक कुटुम्ब की तरह, आपस में अंतरंग रूप से, जुड़ रही है, लिहाजा यह उच्च शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों की बुनियादी जिम्मेदारी बन जाती है कि वे अधिक शांतिपूर्ण, सहिष्णु, समावेशी, सुरक्षित और स्थिर समाज के कारक और प्रोत्साहक बनें। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) का सिद्धांत और ब्रह्मवाक्य भी है। बीते शनिवार को गुजरात यूनिवर्सिटी के अहमदाबाद परिसर में एक भीड़ ने 5 विदेशी छात्रों पर तब हमला किया, जब वे रमजान के पाक महीने में नमाज पढ़ रहे थे। ऐसे हमले हमारी शिक्षा नीति के सिद्धांत, उसकी प्रतिबद्धता और आश्वासन को खंडित करते हैं। वीडियो में करीब 25 युवा छात्र विदेशी छात्रों पर हमले करते दिख रहे थे। श्रीलंका, अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के 1-1 घायल छात्र को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यकीनन यह आपराधिक घटना थी और विश्वविद्यालय के परिसर में कानून-व्यवस्था का सरासर उल्लंघन किया गया। फिर भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने कानून को हाथ में लेकर लीपापोती की कोशिश की।

हालांकि दो आरोपितों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने सिर्फ यह बयान दिया कि वह गुजरात सरकार के संपर्क में है। वह और कर भी क्या सकता था? दूसरी आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया यह सामने आई कि हिंसक हमले के पीडि़तों को ही ‘दोषी’ करार देने की कोशिश की गई। मुद्दा यह है कि ऐसा हमला विदेश में भारतीय छात्रों के साथ भी हो सकता था। ऐसी घटनाएं होती भी रही हैं। तब हम कैसा महसूस करते हैं? हम तसल्ली देते रहे हैं कि ऐसी घटनाएं परंपरा और सिलसिलेवार नहीं हैं। ये अपवाद के तौर पर होती हैं। बेशक ये कानून का कठोर उल्लंघन हैं। ऐसी ही तसल्ली हमें विदेशी छात्रों को देनी चाहिए। हालांकि हमले के तुरंत बाद कुलपति नीरजा गुप्ता ने विदेशी छात्रों को आश्वस्त किया कि वह उन्हें एक अलग होस्टल में शिफ्ट कर देंगी। विदेशी छात्रों की सुरक्षा के लिए यह बेहद जरूरी है। यह भी कोई सौहार्द का कदम नहीं है। छात्रों को आपस में घुल-मिल कर रहना और पढऩा सीखना चाहिए, लेकिन कुलपति ने यह आत्ममंथन नहीं किया कि विदेशी छात्रों पर हमले क्यों और कैसे किए गए? विदेशी छात्र कोई भी हों, उन्हें सांस्कृतिक तौर पर संवेदनशील होना ही चाहिए। इस घटना ने साबित कर दिया है कि हमें अब भी सांस्कृतिक अनुकूलन की जरूरत है। क्या यह दायित्व विदेशी छात्रों का है?

हमारे संविधान में धार्मिक आजादी का मौलिक अधिकार बहुत महत्वपूर्ण है, लिहाजा नमाज पढऩे वालों की स्वतंत्रता और गरिमा का भी सम्मान किया जाना चाहिए था। सवाल तो यह भी है कि विश्वविद्यालय परिसर में भीड़ कहां से आई, हथियार कहां से आए? यदि भीड़ वाले भी वहीं के छात्र थे, तो उन पर क्या कार्रवाई की गई? भीड़ घटनास्थल से आराम से चली कैसे गई? भारत के बहुत कम विश्वविद्यालय वैश्विक स्तर पर ‘सर्वश्रेष्ठ’ आंके गए हैं। कमोबेश गुजरात यूनिवर्सिटी उनमें से एक नहीं है। सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय वही हो सकते हैं, जो विचारों की स्वतंत्रता और बहस की आजादी पर आधारित शिक्षा परोसने की बात करते हैं और उन कसौटियों पर खरे भी उतरते हैं। भीड़ और उसकी हिंसा विचारों की अभिव्यक्ति और उसके विस्तार में विश्वविद्यालय के विचार को ही खत्म कर देती है। यदि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सार्थक साबित करना है, तो हमें अपने व्यवहार, मुक्ति, जिम्मेदारी, बहुवाद, समानता और न्याय के भावों को सुनिश्चित करना होगा। करीब 50,000 विदेशी छात्र भारत में पढ़ रहे हैं। ‘विकसित भारत’ का सपना साकार करना है, तो हमें आर्थिक तौर पर ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आधार पर भी बदलना होगा।


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