कांग्रेस में सियासी भगदड़ क्यों?

By: Mar 2nd, 2024 12:04 am

दरअसल भाजपा के ताकतवर होने के बाद कांग्रेस ने कभी भी पार्टी के लगातार कमजोर पड़ते जाने को लेकर आत्ममंथन नहीं किया। कांग्रेस अपनी किसी भी नीति और सिद्धांत पर कायम नहीं रह सकी। ऐसे में भाजपा ने कांग्रेस के ढहते किले में तोडफ़ोड़ करने में कसर बाकी नहीं रखी…

भाजपा के बढ़ते प्रभाव और कांग्रेस की कमजोर पड़ती सत्ता से कांग्रेसियों में भगदड़ मची हुई है। दरअसल कांग्रेस के राजनीतिक जहाज में सवार नेताओं को अपना भविष्य डूबने का खतरा सता रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस की हालत आयाराम-गयाराम जैसी हो गई है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोडऩे वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त सामने आ चुकी है। यह सिलसिला लोकसभा चुनाव तक जारी रहने की उम्मीद है। कांग्रेस में बदहवासी का आलम यह है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरते-गिरते बची है। राज्यसभा के निर्वाचन में हुई क्रास वोटिंग का सर्वाधिक खामियाजा कांग्रेस ने भुगता है। क्रास वोटिंग करने वाले नेताओं को इस बात का अंदाजा लग गया कि इस राजनीतिक पार्टी में भविष्य सुरक्षित नहीं है। यही वजह रही कि बहती गंगा में हाथ धोने से कांग्रेस के नेता बाज नहीं आए। आश्चर्य की बात यह है कि एक तरफ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पहले देश में एकता यात्रा और उसके बाद अब न्याय यात्रा निकाल रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता कांग्रेस में व्याप्त हताशा को रोकने के लिए कोई मजबूत उपाय नहीं कर सके। पार्टी से एक के बाद एक वरिष्ठ नेता कांग्रेस का दामन छोडऩे में लगे हुए हैं। कांग्रेस की बात करें तो पांच बड़े नेताओं ने पिछले एक महीने के अंदर पार्टी छोड़ी है।

कमलनाथ इस सूची में छठा नाम हो सकते हैं। चुनाव की तारीख का ऐलान होने में एक महीने से भी कम समय बचा है। ऐसे में कांग्रेस के लिए नई रणनीति बनाना और जीत हासिल करना बेहद मुश्किल होगा। बड़े नेताओं के दल बदलने से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है, लेकिन बीजेपी भी इससे नहीं बच पाई है। सत्ताधारी पार्टी के तीन बड़े नेता पाला बदल चुके हैं। खास बात यह है कि तीनों नेता कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के अशोक तंवर भी बीजेपी का हिस्सा बन चुके हैं। हालांकि, बीजेपी का साथ छोडक़र कांग्रेस में जाने वाले आखिरी बड़े नेता जी विवेक थे, जिन्होंने नवंबर 2023 में ऐसा किया था। इसके बाद से पार्टी अपने नेताओं को बांधकर रखने में सफल रही है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पार्टी के हाईकमान से नाराज हैं और बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। अगर कमलनाथ कांग्रेस छोड़ते हैं तो वह ऐसा करने वाले कांग्रेस के पहले पूर्व मुख्यमंत्री नहीं होंगे। उनसे पहले 12 नेता ऐसा कर चुके हैं। खास बात यह है कि कमलनाथ की वजह से कांग्रेस छोडऩे वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले ही बीजेपी का हिस्सा हैं। कुछ नेताओं ने अपनी पार्टी बनाई तो वहीं कुछ नेता दूसरी पार्टी में शामिल हो गए। इस सूची में सबसे ज्यादा तीन पूर्व मुख्यमंत्री गोवा के हैं। गोवा के दिगंबर कामत, रवि नाइक और लुइजिन्हो फलेरियो ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे, लेकिन बाद में पार्टी छोड़ दी। इनमें से दिगंबर और रवि ने तो अंत में बीजेपी का दामन थामा, लेकिन फलेरियो पहले टीएमसी में रहे, फिर इस पार्टी से भी अलग हो गए। अगले कुछ महीनों में लोकसभा के चुनाव हैं। इससे ठीक पहले जिस तरह कांग्रेस से दिग्गज नेता अलग हो रहे हैं, वो चौंकाने वाला है। कांग्रेस को झटके पर झटका उनकी पार्टी के नेता ही दे रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले ही कांग्रेस के नेता पार्टी को छोडऩा शुरू कर देते हैं। कांग्रेस के कई पूर्व सीएम जैसे कि कैप्टन अमरिंदर सिंह, गुलाम नबी आजाद, एन. बीरेन सिंह, नारायण राणे, एसएम कृष्णा, शंकर सिंह वाघेला, पेमा खांडू और अशोक चव्हाण जैसे नेताओं का भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से भरोसा समाप्त होता नजर आया। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता एक तरफ तो पार्टी छोड़ चुके हैं, वहीं दूसरी तरफ कई बड़े नेताओं के पार्टी छोडऩे की अटकलें लगाई जा रही हैं। महाराष्ट्र में तो कांग्रेस को एक के बाद एक प्रदेश के तीन दिग्गज नेताओं ने झटका दिया है। सबसे पहले पार्टी से एक महीने पहले मिलिंद देवड़ा ने इस्तीफा दिया। इसके बाद 8 फरवरी को बाबा सिद्दीकी ने पार्टी छोडऩे का ऐलान कर दिया और अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी कांग्रेस की नाव से उतर चुके हैं। कांग्रेस के अंदर की अंतर्कलह आज से जारी नहीं है। राहुल गांधी के सबसे नजदीकी नेताओं में शामिल रहे दिग्गज भी अब बीजेपी के साथ हैं तो वहीं कांग्रेस में सोनिया गांधी के करीबी माने जाने वाले नेताओं में से रीता बहुगुणा जोशी, कैप्टन अमरिंदर सिंह और गुलाम नबी आजाद भी पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं।

कांग्रेस से युवा नेताओं का भी मोहभंग होता जा रहा है। इसका उदाहरण मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी, आरपीएन सिंह, अशोक तंवर जैसे नेता हैं, जो कांग्रेस से अलग हो चुके हैं। बिहार में अशोक चौधरी, असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा, सुनील जाखड़ के साथ अश्वनी कुमार जैसे भी नेता हैं जो पार्टी के काम करने के तरीके से नाखुश होकर पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं। कांग्रेस ने पूरे देश में विपक्ष को एनडीए के खिलाफ इकट्ठा करने के लिए इंडिया गठबंधन तैयार किया, तब उसे लगा था कि देश की सत्ता तक पहुंचने के लिए यह रास्ता आसान होगा। लेकिन, एक-एक कर इंडिया गठबंधन से पार्टियां अलग होती चली गईं। सबसे पहले नीतीश कुमार, जिन्होंने इस गठबंधन के लिए सबको इकट्ठा किया था, बीजेपी के साथ हो लिए। फिर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को भी कांग्रेस का साथ रास नहीं आ रहा। ममता कांग्रेस पर निशाना साध रही हैं तो अरविंद केजरीवाल जिस तरह से लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा कर रहे हैं, उससे साफ हो गया है कि वह ‘एकला चलो रे’ की राह पर बढ़ रहे हैं। एनसीपी और शिवसेना टूटी और उनका नेतृत्व जिनके हाथ में है, वह कांग्रेस का विरोध करते रहे हैं। कांग्रेस के 10 साल के समय को देखें तो पता चल जाएगा कि एक तरफ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से पार्टी की जमीन देश में मजबूत करने की कोशिश हो रही है, दूसरी तरफ पार्टी के दिग्गज और युवा नेताओं ने एक-एक कर पार्टी का साथ छोड़ दिया है। कांग्रेस को छोड़ते समय इनमें से ज्यादातर नेताओं ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और खासकर राहुल गांधी पर उनकी अनदेखी के आरोप लगाए।

इनमें से जिन्होंने भी बीजेपी का दामन थामा, उन्हें पार्टी ने जगह भी दी। कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को बाहर का रास्ता दिखाया तो अब उनके भी बीजेपी में शामिल होने की बात कही जा रही है। पार्टी के नेताओं के असंतोष पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि बड़े-छोटे देशभर के हर प्रदेश से कुल मिलाकर 400 से ज्यादा की संख्या में अलग-अलग स्तर के नेता कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं। जर्जर होती कांग्रेस की इसी हालत का फायदा इंडिया गठबंधन के क्षेत्रीय दलों ने उठाया है। क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ लोकसभा की सीटों के मोलभाव अपनी सुविधा के हिसाब से कर रहे हैं। लाचार कांग्रेस के पास क्षेत्रीय दलों की शर्तें मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है। यही वजह है कि कांग्रेस ने पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में मजबूरी में समझौते किए हैं। यह बात दीगर है कि कभी इन राज्यों में कांग्रेस की दुदुंभि बजती थी। दरअसल भाजपा के ताकतवर होने के बाद कांग्रेस ने कभी भी पार्टी के लगातार कमजोर पड़ते जाने को लेकर आत्ममंथन नहीं किया। कांग्रेस अपनी किसी भी नीति और सिद्धांत पर कायम नहीं रह सकी। ऐसे में भाजपा ने कांग्रेस के ढहते किले में तोडफ़ोड़ करने में कसर बाकी नहीं रखी। भाजपा ने दो तरफ से कांग्रेस का घेराव किया। एक तरफ कांग्रेस शासन के भ्रष्टाचार को उजागर किया, दूसरी ओर कांग्रेस में सेंधमारी करके उसे हाशिए पर लाने में कसर बाकी नहीं रखी।

योगेंद्र योगी

स्वतंत्र लेखक


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