राष्ट्र का आधार हैं महिलाएं

सरकारी स्तर से बढक़र पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर सभी संस्थाओं के सक्रिय सहयोग से ही महिला उत्थान व महिला सम्मान को सुनिश्चित बनाया जा सकता है। बातें कहने भर से नारी सम्मानित नहीं होगी…

प्रत्येक वर्ष की भांति अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कल शुक्रवार 8 मार्च को मनाया जा रहा है। 1910 में क्लारा जेटकिन नाम की एक महिला ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बुनियाद रखी थी। वस्तुत: इस दिन को मनाने का उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देते हुए उनके प्रति सम्मान, विनम्रता और आदरभाव को प्रदर्शित करना है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का मकसद महिलाओं की विभिन्न क्षेत्रों यथा आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अर्जित उपलब्धियों को मान्यता देना भी है। हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस किसी न किसी थीम पर आधारित होता है और इस बार की थीम, ‘इंस्पायर इंक्लूजन’ है, जिसका अर्थ एक ऐसी दुनिया है, जहां हर किसी को बराबरी का हक और सम्मान मिले। भारत के संदर्भ में दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह भी है कि हमारी युवा शिक्षित बेटियां टेलीविजन/फिल्मों द्वारा परोसी जा रही अश्लीलता को नि:संकोच स्वीकार कर रही हैं एवं कई प्रकार के घटिया कार्यक्रमों के निर्माण, प्रचार एवं प्रसार में बढ़-चढक़र हिस्सा ले रही हैं। आजकल फेसबुक/इंस्टाग्राम पर स्वयं लड़कियां बढ़-चढक़र अश्लीलता का प्रदर्शन करती मिल जाएंगी। अतएव इंटरनेट का अंधाधुंध सदुपयोग-दुरुपयोग युवा पीढ़ी के स्वत: अनुशासन का मामला बन चुका है। भारत की महिला साक्षरता दर विश्व के औसत 79.7 प्रतिशत से कम है। देश की आजादी के बाद से महिला साक्षरता में तेजी से वृद्धि हुई है।

जहां 1947 में कुल महिला साक्षरता दर मात्र 18 प्रतिशत थी, वह 2011 में बढक़र 74.04 प्रतिशत हो गई थी। सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं के योगदान के मामले में वैश्विक औसत 37 प्रतिशत की तुलना में भारत में महिलाओं का योगदान मात्र 17 प्रतिशत है। यदि महिलाएं भी पुरुषों के समान अर्थव्यवस्था में भागीदारी करें तो इससे वर्ष 2025 तक भारत की वार्षिक जीडीपी में 2.9 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हो सकती है। इसी तरह भारत की विधायिकाओं में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या कुल सांसदों की दस प्रतिशत भी नहीं है और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5 प्रतिशत से भी कम है। यद्यपि भारतीय संविधान में हर महिला को गरिमा और शालीनता के साथ जीने का अधिकार मिला है, तथापि महिलाओं के प्रति अत्याचारों के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ताजातरीन मामला पश्चिम बंगाल से 100 किलोमीटर दूर संदेशखाली में महिलाओं के कथित रेप और उत्पीडऩ से जुड़ा हुआ है। महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो आप पाएंगे कि पिछले 65 वर्षों में बलात्कार, यौन शोषण, हत्या, दहेज, तेजाब फेंकने और जलाने जैसी घटनाओं में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई है। गृह मंत्रालय के एनसीआरबी विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2022 में महिलाओं के प्रति 445256 आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे जिनमें उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में सबसे अधिक 65743 एफआईआर दर्ज की गईं। इसके बाद महाराष्ट्र 45331, राजस्थान 45058, पश्चिम बंगाल 34738 और मध्य प्रदेश में 32765 एफआईआर दर्ज हुईं। भारत में दर्ज किए गए कुल मामलों में अकेले इन पांच राज्यों का योगदान ही 223635 अर्थात 50.2 प्रतिशत बनता है।

इस हिसाब से देखें तो हर घंटे लगभग 51 प्राथमिकी दर्ज की गईं। वहीं प्रति लाख आबादी पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर 66.4 थी। भारतीय दंड संहिता के तहत महिलाओं के खिलाफ अधिकांश अपराध पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा अंजाम दिए गए। जैसे महिलाओं के प्रति क्रूरता 31.4 प्रतिशत, महिलाओं का अपहरण 19.2 प्रतिशत, महिलाओं का शीलभंग करने के इरादे से हमला 18.7 प्रतिशत और बलात्कार 7.1 प्रतिशत मामले दर्ज हुए हैं। महिला सशक्तिकरण पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और प्राय: इस मुद्दे पर चर्चा भी होती रहती है, लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर महिलाओं को सशक्त नहीं बनाया जाता और उनकी सुरक्षा को यकीनी नहीं बनाया जाता, तब तक अपने दायरे में सिमटी आधी आबादी की सक्रिय भागीदारी के बिना एक सुदृढ़ विकसित और कल्याणकारी भारत की कल्पना करना बेमानी होगा। पारिवारिक, सामाजिक तथा विद्यालयों में बालिकाओं, महिलाओं के आदर-सम्मान के प्रति किशोरों/नवयुवकों को जागरूक करने की जरूरत है तो वहीं घर और विद्यालयों में संस्कारों और चरित्र निर्माण की शिक्षा दिए जाने की भी आवश्यकता है। सरकारों को चाहिए कि महिला पुलिस थानों/चौकियों की संख्या बढ़ाए, साथ ही देश के सभी थानों/चौकियों में महिला पुलिस कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए। ज्यादा जनसंख्या वाले गांव एवं कस्बों के अंदर पुलिस गश्त नियमित तौर पर होनी चाहिए। पंचायतों की मीटिंग तथा आम सभाओं में महिला पुलिस अधिकारियों की भागीदारी को भी सुनिश्चित बनाया जाना चाहिए ताकि महिला पुलिस अफसर ग्राम सभाओं की मीटिंग में आने वाली महिलाओं से वार्तालाप कर सकें और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हो। महिला शिक्षक कर्मचारियों को भी महिला अधिकारों की जागरूकता बढ़ाने हेतु इस काम में नियोजित किया जा सकता है। नारी अपराधों के दोषियों को कठोर से कठोरतम दंड (फांसी तक) तत्काल दिए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए।

संपूर्ण भारतवर्ष के स्कूलों के पाठ्यक्रम में बदलाव लाकर बच्चों को संस्कार आधारित संस्कृतिनिष्ठ शिक्षा-दीक्षा देकर सुसंस्कृत परिमार्जित किया जाना चाहिए ताकि यही बच्चे युवा बनकर मर्यादित, संयमित, व्यसनमुक्त, सुविचार/दुर्भावना मुक्त एवं पारिवारिक व सामाजिक मूल्यों पर आधारित नैतिकता से परिपूर्ण जीवन जीएं और स्वस्थ तथा सुंदर भारतीय समाज के सपने को साकार करें। सरकारी स्तर से बढक़र पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर सभी संस्थाओं के सक्रिय सहयोग से ही महिला उत्थान व महिला सम्मान को सुनिश्चित बनाया जा सकता है। याद रखें केवल बातें कहने भर से नारी सम्मानित नहीं होगी, हमको नारी के जीवन का सदा अलंकरण करना होगा, तभी नारी से नारायणी की परिकल्पना साकार होगी।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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