कुल्लू के मंदिरों में बीठ उत्सव की धूम

By: Apr 29th, 2024 12:10 am

बुरांस के फूलों के लिए हारियानों में खींचतान

स्टाफ रिपोर्टर-भुंतर
देवभूमि कुल्लू की रूपी घाटी देवालयों में हो रहे बीठ पर्व से देवमयी बनी हुई है। घाटी के देवालयों में हर रोज देव कार्यक्रम हो रहे हैं, जिसमें देव रस्में निभाकर बुरांस के फूलों से बने बीठ तैयार कर हारियान नृत्य भी कर रहे हैं। घाटी के पालगी में दुर्वासा ऋषि के दरबार के बाद लक्ष्मी नारायण मंदिर में भी बीठ का आयोजन किया गया। लिहाजा, देवोत्सव में हारियानों की भीड़ भी खूब उमड़ रही है। जानकारी के अनुसार श्रेष्ठ मास माने जाने वाले बैशाख में घाटी के देवता अपनी दैविक शक्तियों को अर्जित करने के लिए पहाड़ों पर अपने दैविक स्थलों पर जाते हैं और देवशक्तियों को अर्जित करते हैं। इसके अलावा दैविक शक्तियों के जरिए देवता अपने हारियान क्षेत्र को एक साल तक ओलों और अतिवृष्टि के कहर से भी बचाते हैं। वहीं इस दौरान कई जगह पर जोगनी पूजन का कार्यक्रम भी होता है।

जिला कुल्लू की रूपी घाटी के दर्जनों देवालयों में इस प्रक्रिया को पूरा किया जाता है। पिछले दो सप्ताह में घाटी के सचाणी, हुरला-थरास, नीणू, दियार, कोटकंढी, नरोल, माहुल, पालगी, भलाण सहित अन्य स्थानों पर इस उत्सव को मनाया जा चुका है। इस दौरान देव दरबार में हारियान देवाशीष लेने के लिए जुटे तो इसके बाद ढोल-नगाड़ों की थाप पर घाटी की चोटियों पर स्थित देवस्थानों पर पहुंच यहां जोगनी पूजन की प्रक्रिया को पूरा किया तो इसके बाद बुरांस के फूलों का देवता जिसे बिठ कहा जाता है, उसे तैयार किया गया। इसे कारकूनों द्वारा सिर पर उठाकर देवताओं के मंदिरों तक पहुंचाया गया, जहां अन्य कारकूनों द्वारा उनका स्वागत किया गया। यहां पर देवलुओं ने देवनृत्य किया तो बुरांस के फूलों को देवता के शेष के तौर पर हारियानों ने एकत्रित किया। यही खींचतान दैविक उत्सव में आकर्षण का केंद्र रहती है।

भाग्यशाली को मिलते हैं फूल, पूरी होती है मुराद
मान्यता है कि उक्त फूलों को जो भी प्राप्त करता है वह भाग्यशाली होता है और उसकी मनोकामना भी पूरी होती है। इसके अलावा देवता के दरबार में पारंपरिक कुल्लवी नाटी भी आयोजित की गई। पालगी के बाद भलाण में भारी बारिश के बीच देव गतिविधियों को पूरा किया गया। घाटी के देव समाज के प्रतिनिधियों राजन शर्मा, धनवीर सिंह, टहल सिंह राणा, यशपाल, पराशर शर्मा आदि के अनुसार हर साल घाटी के देवता अपनी शक्तियों को अर्जित करने पहाड़ों पर जाते है और इसी के सम्मान में यह कार्यक्रम होते हैं।


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