विकसित भारत की दरकार है खुशहाली

हमें यह ध्यान रखना होगा कि वर्ष 2047 तक देश को विकसित देश बनाने के लिए सरकार के द्वारा आम आदमी की प्रति व्यक्ति आय और खुशहाली बढ़ाने के लिए जो व्यय किए जाते हैं, वे उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जिस तरह सरकार के द्वारा बुनियादी ढांचे पर भारी निवेश लाभप्रद होता है। उम्मीद है सरकार रणनीतिक रूप से कारगर प्रयासों की राह पर आगे बढ़ेगी…

यद्यपि जून 2024 में गठित होने वाली नई सरकार के मूर्त रूप लेने में दो माह बाकी हैं, लेकिन 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य के तहत आम आदमी की खुशहाली बढ़ाने की जरूरत के मद्देनजर अभी से प्रशासनिक स्तर पर रणनीति बनाई जाना शुरू हो गई है। देश के आम आदमी के जीवन स्तर में वृद्धि, गरीबी में कमी, रोजगार के मौके बढ़ाने जैसे विभिन्न मुद्दों पर अधिक प्रयासों से ही देश खुशहाली के उस स्तर पर पहुंच सकता है, जोकि विकसित भारत की महत्वपूर्ण दरकार है। इस परिप्रेक्ष्य में हाल ही में 21 मार्च को प्रकाशित विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2024 को भी ध्यान में रखा जाना जरूरी है, जिसमें 143 देशों में भारत को 126वां स्थान दिया गया है। गौरतलब है कि विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2024 के तहत सामाजिक सहयोग, आय, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण जैसे कारकों के आधार पर विश्व भर के देशों का आकलन कर रैंकिंग तैयार की गई है। पिछले वर्ष भी इस रैंकिंग में भारत 126वें स्थान पर था। इस रैंकिंग में फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल देश है।

नॉर्डिक देश खुशहाली सूची में शीर्ष पर बने हुए हैं। इनमें डेनमार्क और आइसलैंड ने क्रमश: दूसरा और तीसरा स्थान हासिल किया है। स्वीडन चौथे नंबर पर है। यद्यपि इस वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद दुनिया के कोने-कोने से लोग इसे अतार्किक और अविश्वसीय बनाते हुए टिप्पणियां कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि यूरोपीय विद्वानों के द्वारा निर्धारित विभिन्न मापदण्डों पर आधारित खुशहाली की रैंकिंग देने वाली यह सूची भ्रमित करने वाली है। इस रैंकिंग पर भरोसा नहीं होता है। इस खुशहाली की रंैकिंग में भारत से चार पायदान ऊपर 122वें पर स्थित पाकिस्तान दुनियाभर में महंगाई, ऋणग्रस्तता, धार्मिक आजादी व लोकतांत्रिक चुनौती से ग्रस्त ऐसे देश के रूप में चर्चित है जिस देश की सत्ता में सांप्रदायिक कट्टरपंथी जमात अग्रिम पंक्ति में है। कदम-कदम पर धार्मिक पाबंदियों वाला कुवैत दुनिया का 13वां सबसे खुशहाल देश है। इतना ही नहीं, फिलिस्तीन के साथ निर्मित युद्ध से जिस देश के हजारों लोगों के चेहरों पर निराशाएं दी हैं, उस इजराइल को दुनिया का पांचवां सबसे खुशहाल देश बताया गया है। इतना ही नहीं, युद्ध से पीडि़त क्षतिग्रस्त, हजारों मौतों का सामना कर रहा रूस 72वें, फिलस्तीन 103वें तथा यूक्रेन 105वें क्रम पर है। ये देश पीड़ाओं, निराशाओं व युद्ध के बावजूद भारत से अधिक खुशहाली की रैंकिंग दर्शा रहे हैं। इस विश्व खुशहाली रिपोर्ट में बेमेल गणनाएं की गई हैं। इस सूची के तहत दुनिया की सबसे अधिक आबादी रखने वाले भारत और भारत की आबादी से एक फीसदी से भी बहुत कम आबादी रखने वाले देशों की जनसंख्या चुनौतियों व समस्याओं के मद्देनजर तुलनाएं करते हुए भी खुशहाली की गणना की गई है। प्रश्न यह है कि भारत जैसे दुनिया की बड़ी आबादी के साथ दुनिया के सातवें सबसे बड़े भूभाग रखने वाले भारत की तुलना दुनिया के छोटे-छोटे कम आबादी व कम चुनौतियां रखने वाले देशों से कैसे की जा सकती है? खुशहाली को महज आर्थिक प्रगति और संसाधनों की अधिकता के मद्देनजर देखा जाना उपयुक्त नहीं है।

जिन कई देशों को दुनिया के अधिक खुशहाल देश बताया गया है, वहां आबादी बहुत कम है, चुनौतियां भी बहुत कम हैं तथा धार्मिक विद्वेष भी नहीं हैं। ऐसे कई छोटे देशों की सरकारों को किसी समस्या को सुलझाने में ज्यादा समय नहीं लगता है। ऐसे देशों की तुलना बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना कर रहे विशाल देशों से कैसे की जा सकती है? इस वैश्विक खुशहाली सूची में भारत के संबंध में कुछ ऐसे विश्व स्तर पर चमकीले परिदृश्य को ध्यान में नहीं रखा गया है जिनके लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक सहित दुनिया के कई आर्थिक-सामाजिक संगठन अपने शोध पत्रों के आधार पर भारत में नए प्रयासों की सराहना करते हुए दिखाई दे रहे हैं। भारत में मानव विकास के तहत गरीबी में कमी लाने के प्रयास को भारी सफलता मिली है। पिछले एक दशक में भारत में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हंै। पूरी दुनिया में रेखांकित हो रहा है कि भारत आम आदमी को डिजिटल दुनिया से जोडऩे वाला दुनिया का प्रमुखतम देश है। भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है। भारत में सरकार के द्वारा गरीबों व किसानों के बैंक खातों में सीधे 32 लाख करोड़ से अधिक धनराशि भेजकर उनका सशक्तिकरण किया गया है। चाहे खुशहाली की सूची में विभिन्न देशों की रैंकिंग अनुचित और अन्यायपूर्ण ढंग से की गई है, लेकिन हमें भारत में आम आदमी के आर्थिक कल्याण, आम आदमी की आमदनी बढ़ाने तथा खुशहाली के विभिन्न पैमानों पर बहुत आगे बढऩे के लिए अभी मीलों चलना है। हमें भारत में खुशहाली बढ़ाने व आय असमानता के बड़े अंतर को कम करने के लिए बड़े प्रयास करने हैं। 21 मार्च को प्रकाशित न्यूयार्क यूनिवर्सिटी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 में भारत की कुल आय का 22.6 फीसदी हिस्सा सबसे अमीर एक फीसदी लोगों के पास गया। वर्ष 2022-23 में देश की सबसे अमीर एक फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 39.5 फीसदी हिस्सा था, जबकि सबसे गरीब 50 फीसदी आबादी के पास केवल 6.5 फीसदी हिस्सा था। यह परिदृश्य बताता है कि भारत में असमानता बढ़ी है। स्टडी में कहा गया है कि भारत में संपत्ति टैक्स सिस्टम प्रतिगामी है, जिसका अर्थ है कि अमीर लोग अपनी संपत्ति के अनुपात में कम टैक्स दे रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में बड़े निवेशों को फंड करने के लिए टैक्स शेड्यूल में बदलाव करके आय और धन दोनों को टैक्स योग्य बनाया जाना होगा। हमें देश में मानव विकास के विभिन्न पैमानों पर तेजी से आगे बढऩे पर ध्यान देना होगा। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रिपोर्ट 2022 में भारत 193 में से 134वें स्थान पर है। यद्यपि भारत की रैंकिंग में पिछले वर्ष की एचडीआई-2021 रिपोर्ट के मुकाबले एक पायदान का सुधार हुआ है।

भारत पिछले 34 वर्षों से 131 से 135वें स्थान पर झूल रहा है। एचडीआई का तात्पर्य मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों- लंबा और स्वस्थ जीवन, शिक्षा तक पहुंच और सभ्य जीवन स्तर में औसत उपलब्धियों के आकलन से है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने नए मानव विकास सूचकांक में भारत की औसत बढ़त को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कहा है। पिछले एक वर्ष में भारतीयों की औसत आमदनी में 6.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत में जीवन प्रत्याशा में शानदार वृद्धि हुई है। एक वर्ष पहले भारत में जीवन प्रत्याशा का औसत 62.2 था जो अब बढक़र 67.7 हो गया है। भारत ने लैंगिक असमानता को कम करने में भी प्रगति प्रदर्शित की है। भारत में लिंग असमानता सूचकांक वैश्विक औसत से बेहतर है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि वर्ष 2047 तक देश को विकसित देश बनाने के लिए सरकार के द्वारा आम आदमी की प्रतिव्यक्ति आय और खुशहाली बढ़ाने के लिए जो व्यय किए जाते हैं, वे उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जिस तरह सरकार के द्वारा बुनियादी ढांचे पर भारी निवेश लाभप्रद होता है। हम उम्मीद करें कि देश में करोड़ों लोगों की गरीबी, भूख, कुपोषण, डिजिटल शिक्षा, रोजगार, उद्यमिता, ग्रामीण युवाओं के तकनीकी प्रशिक्षण और स्वास्थ्य की चुनौतियों को कम करने के लिए सरकार रणनीतिक रूप से, हरसंभव तरीके से कारगर प्रयासों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App