सिंथेटिक ट्रैक्स को तबाह मत करो

By: Apr 12th, 2024 12:06 am

अभी भी समय है कि सरकार को चाहिए कि इन खेल मैदानों का रखरखाव ठीक ढंग से करवाए, ताकि हिमाचल प्रदेश के खिलाड़ी इन सुविधाओं का लंबे समय तक लाभ उठा सकें…

आज हिमाचल प्रदेश में बहुत संघर्ष के बाद बहुत अधिक धन व श्रम खर्च करके एथलेटिक्स के लिए विश्वस्तरीय प्ले फील्ड उपलब्ध है, मगर प्रशासन की खेलों के प्रति बेरुखी व अज्ञानता के कारण सब बरबाद होता जा रहा है। राज्य में तीन जगह सिंथेटिक ट्रैक बन कर तैयार हैं, मगर उन पर कहीं तो पार्क की तरह लोग सैर कर रहे हैं और कहीं पर जिला खेल अधिकारी व उपायुक्त फौज के हवाले कर कई दिनों के लिए भर्ती की स्वीकृति दे देते हैं। हमीरपुर का ट्रैक अब भारतीय खेल प्राधिकरण के पास है, मगर वहां भी हालत ठीक नहीं है। आजकल वहां मनोरंजन के लिए क्रिकेट देखने वालों के लिए बीच मैदान में स्क्रीन लगा दी है। जब क्रिकेट वाले अपने मैदानों में किसी को एक कदम भी नहीं रखने देते हैं, अच्छी बात है, मगर दूसरे की अंतरराष्ट्रीय प्ले फील्ड को बरबाद करना कहां तक सही है। सोचो राष्ट्रीय स्तर पर भाग लेने वाले हिमाचल के एथलीट पंद्रह दिन कहां ट्रेनिंग करेंगे। हिमाचल प्रदेश में खेल के साथ इस तरह की बदतमीजी आम बात हो गई है। करोड़ों रुपयों से बने सिंथेटिक ट्रैकों को हिमाचल प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारी बरबाद करने पर क्यों आमादा हैं। क्या हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री व खेल मंत्री इस बात का संज्ञान लेंगे, ताकि इन अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल सुविधाओं को बचाया जा सके। प्रदेश के पास आज से दो दशक पहले तक खेल ढांचे के नाम पर सैंकड़ों साल पहले राजा-महाराजाओं द्वारा मेले व उत्सवों के लिए बनाए गए चंद, मगर बेहतरीन मैदान चंबा, मंडी, नादौन, सुजानपुर, जयसिंहपुर, कुल्लू, अनाडेल, रोहडू, रामपुर, सोलन, चैल, नाहन आदि जगहों पर थे।

इन मैदानों पर हिमाचल प्रदेश की खेल गतिविधियां कई दशकों से मेलों, उत्सवों व राजनीतिक रैलियों से बचे समय में चलती रही हैंं। इन पुराने व ऐतिहासिक मैदानों का हाल कुछ ठीक नहीं है। कहीं अतिक्रमण व कहीं पर अव्यवस्था का बोलबाला साफ नजर आता है। वैसे तो हिमाचल प्रदेश की तरक्की में विभिन्न सरकारों का योगदान रहा है, मगर हिमाचल प्रदेश में पहली बार नई सदी के शुरुआती वर्षों में प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने राज्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल ढांचे को खड़ा करने की शुरुआत की और आज हिमाचल प्रदेश में कई खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड एथलेटिक्स, क्रिकेट, हाकी, तैराकी व इंडोर खेलों के लिए उपलब्ध है। क्रिकेट में अनुराग ठाकुर की सोच ने हिमाचल प्रदेश को क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर लाकर खड़ा कर दिया है जो काबिले तारीफ है। लुहणू का खेल परिसर पूर्व मंत्री ठाकुर रामलाल के प्रयत्नों से बिलासपुर में सामने आया है। एथलेटिक्स सभी खेलों की जननी है। इसी से सब खेल निकले हैं और इसके प्रशिक्षण के बिना किसी खेल में दक्षता नहीं मिल सकती है। हिमाचल प्रदेश में आज हमीरपुर, बिलासपुर व धर्मशाला में तीन सिंथेटिक ट्रैक बन कर तैयार हैं। शिलारू के साई सैंटर में दो सौ मीटर का प्रैक्टिस ट्रैक बन कर तैयार है। सरस्वतीनगर में काम हो रहा है। किसी किसी राज्य के पास अभी तक एक भी ट्रैक नहीं है। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर व धर्मशाला सिंथेटिक ट्रैकों पर लोग टहलते नजर आते हैं। भर्ती के लिए बाहर कच्चे पर केवल ट्रायल के लिए स्वीकृत किया जा सकता है। शेष ट्रेनिंग बाहर के अन्य मैदानों व सडक़ों पर हो सकती है। सिंथेटिक ट्रैक पार्क बन चुके हैं। वहां आम लोगों का प्रवेश वर्जित कर देना चाहिए, केवल एथलीट के लिए ही प्रवेश रखना चाहिए।

तभी इन प्ले फील्ड को लंबे समय तक खिलाडिय़ों के लिए उपलब्ध करवाया जा सकता है। कल जब हिमाचल प्रदेश के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर के एथलीट होंगे और प्रशिक्षण के लिए उखड़ा हुआ ट्रैक होगा तो फिर पहाड़ की संतान को पिछडऩे का दंश झेलना पड़ेगा। इसलिए इस बरबादी को अभी से रोकना होगा। तभी हम अपनी आने वाली पीढिय़ों से न्याय कर सकेंगे। इस कॉलम के माध्यम से इस विषय पर कई बार लिखने के बाद भी हिमाचल सरकार इन विश्व स्तरीय खेल सुविधाओं पर ध्यान नहीं दे रही है। हिमाचल में ट्रेनिंग कर पहाड़ की संतानें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए कुछ लोगों के जुनून ने बिना सुविधाओं के मिट्टी पर ट्रेनिंग कर राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दस्तक दी थी, तभी यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा आने वालों को मिल पाई हैं। हिमाचल प्रदेश में इस समय हर जिला स्तर सहित कई जगह उपमंडल स्तर पर भी इंडोर स्टेडियम बन कर तैयार हैं, मगर उन स्टेडियमों में बनी प्ले फील्ड का उपयोग प्रशिक्षण के लिए खिलाडिय़ों को ठीक से करना नहीं मिल रहा है। वहां पर अधिकतर शहर के लाला व अधिकारी अपनी फिटनेस करते हैं। ऊना व मंडी में तरणताल बने हैं, मगर वहां पर भी कोई प्रशिक्षण कार्यक्रम आज तक शुरू नहीं हो पाया है। हिमाचल प्रदेश में तैराक ही नहीं हैं। यहां पर भी प्रशिक्षण न होकर गर्मियों में मस्ती जरूर हो जाती है। ऊना में हाकी के लिए एस्ट्रोटर्फ बिछी हुई है, मगर उसकी तो पहले ही दुर्गति हो गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार का युवा सेवाएं एवं खेल विभाग अभी तक करोड़ों रुपए से बने इस खेल ढांचे के रखरखाव में नाकामयाब रहा है। उसके पास न तो चौकीदार हैं और न ही मैदान कर्मचारी, पर्याप्त प्रशिक्षकों की बात तो बहुत दूर की बात है।

नई खेल नीति में लिखा है कि सरकार विभिन्न खेल संघों, पूर्व खिलाडिय़ों व प्रशिक्षकों से इन सुविधाओं का उपयोग कराने के लिए खेल अकादमियों का गठन कराएगी। अच्छे प्रशिक्षकों को खेल विभाग में कम से कम पांच वर्षों के लिए अनुबंधित करेगा या अन्य विभागों में नौकरी लगे पूर्व खिलाडिय़ों व प्रशिक्षकों को प्रतिनियुक्ति पर लाकर या उन्हीं के विभाग में उन्हें खेल प्रबंधन व प्रशिक्षण देने का अधिकार देकर हिमाचल प्रदेश सरकार करोड़ों रुपए से बनी खेल सुविधाओं का सदुपयोग कर राज्य में खेलों को क्या गति नहीं दे सकती है? अभी भी समय है कि सरकार को चाहिए कि इन खेल मैदानों का रखरखाव ठीक ढंग से करवाए, ताकि हिमाचल प्रदेश के खिलाड़ी इन सुविधाओं का लंबे समय तक लाभ उठा सकें। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रेनिंग के लिए सिंथेटिक ट्रैक्स ही जरूरी हैं, मगर भर्ती व सैर के लिए और बहुत जगह हंै, इस बात को हमारे लोगों को समझना होगा। तभी खिलाडिय़ों का कल्याण होगा।

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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