सियासी उत्कंठा में उत्पीडऩ

By: Apr 8th, 2024 12:05 am

सवाल उपचुनावों में फिर हिमाचल के कद और सामथ्र्य से कहीं बड़े हो जाएंगे। हर चुनाव की अमानत में जनता के सरोकार खोटे हो जाते हैं या चलते हुए नेता खोटे सिक्के हो जाते हैं। भाजपा हो या कांग्रेस चुनावों की फेहरिस्त ने नेताओं के बोल छोटे कर दिए। भाव-भंगिमाओं के चुनाव में हिमाचल अब रहता ही कहां है। हम एक चुनावी कबीला कब बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता, लेकिन किसी को परिवारवाद, किसी को जातिवाद, किसी को क्षेत्रवाद और किसी को अब आलाकमान की सरकार बनानी है। नेता अब धरती पर कम पार्टियों की छाती पर मूंग दलते अधिक मिलते, लेकिन राजनीति के गुनाहों ने मित्रों की टोलियां बनाकर पलटवार शुरू कर दिए। हिमाचल की सियासत में विरासत का दर्द झलकता है, तो वाईएस परमार, वीरभद्र सिंह, शांता कुमार, प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर का संसार दिखाई देता है। बदल गई है राज्य की संवेदना, सरोकार और दृष्टि। अब छोटे से हिमाचल के कई छोटे टुकड़े भटक रहे हैं, इसलिए कद में सियासत नहीं, पद में विरासत देखी जा रही है। परिदृश्य से कुछ नेताओं की कहानियां बार-बार याद दिलाती हैं कि स्वार्थ सिद्धि के चलते प्रदेश कदमों में नहीं, घुटनों के बल चलने की कोशिश कर रहा है। संभावना अगर अतीत में श्यामा शर्मा के कालखंड में राजनीतिक विदाई को अवसर दे रही थी, तो याद करें वह दौर जब पंडित सालिग राम की पगड़ी पर प्रहार हुआ था। ठाकुर कर्म सिंह बनाम वाईएस परमार या वीरभद्र सिंह बनाम पंडित सुखराम के दौर से निकली राजनीतिक उत्कंठा में उत्पीडऩ बढ़ता रहा है।

उत्पीडऩ के शिलालेख इतनी बेदर्दी से लिखे जा रहे हैं कि हिमाचल का राजनीतिक इतिहास एक तरह के गुरिल्ला युद्ध में फंस कर रह गया है। अब बात ऊपरी और निचले हिमाचल की नहीं रही, नेताओं के व्यक्तिगत पंथ पर आधारित सियासत चलने लगी है। प्रेम कुमार धूमल सरकार की फांस बने विधायक आज अगर चकनाचूर हुए, तो सुक्खू सरकार के दरपेश फिर इसी तरह के मुकाबले के अवतार इस बार उपचुनाव बने हैं। राख हुए थे महल जहां सिंहासन रखे थे, आज के महाराजा अब कुर्सी के साथ नत्थी हैं। सत्ता के चुंबक ने सारा चरित्र खींच लिया, अब तो मंसूबों के द्वंद्व बिकते हैं। राजनीतिक हत्याओं के अंबार में दो नाम पूरी सियासत की कनपटी पर रखी बंदूक की तरह सदा सचेत करेंगे। भाजपा के डा. राजन सुशांत और कांग्रेस के मेजर विजय सिंह मनकोटिया के इर्द-गिर्द रहा राजनीतिक उफान बताता है कि कितने सिरकटे मजमून आहें भरते हैं। कभी जनता की निगाहों में ये नेता नायक बनकर उभरे, लेकिन सत्ता की राहों ने इन्हें खलनायक बना दिया। ये नेता हमने चुने, तो सत्ता के चुनाव में क्यों फनां हुए। रमेश धवाला भी हादसे का शिकार हुए तो इसलिए कि राजनीति का कर्मकांड अब चढ़ती सीढिय़ों को उल्टा करने में माहिर है। ऐसे में उपचुनावों के फलक महज नतीजे नहीं, भविष्य की राजनीतिक फांस हैं।

वर्तमान सत्ता के कुल नौ दोषी हैं, जिनमें छह कांग्रेस के विधायक रहे हैं। इनमें दो बड़े नाम राजेंद्र राणा व सुधीर शर्मा हैं, तो उनके लिए अतीत के एहसास को जीना आसान नहीं। हिमाचल के चुनावों में कई समीकरण और कई उबाल हैं, लेकिन राजनीति का शीर्षासन अगर कहीं हो रहा है, तो धर्मशाला और सुजानपुर के विधानसभा हलके हमेशा याद किए जाएंगे। यह भाजपा की बढ़त से कहीं अधिक दो नेताओं की कुंडली में घुसे शैतान से मुकाबला है। उस फितरत से पुन: जंग है जो इससे पहले ठाकुर कर्म सिंह, पंडित सुखराम, सालिग राम, डा. राजन सुशांत और मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने लड़ी थी। यह बाघ-बकरी का मुकाबला नहीं, बल्कि अग्नि और बारूद का युद्ध है। सुलगते मसले बारूदी चुनाव की छाती पर किस तरह युद्ध क्षेत्र को हथियाते हैं, यह आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन धर्मशाला-सुजानपुर के मैदान पर राजनीति अपने सबसे कठिन मोर्चे पर महाभारत लिख रही है। फिर महाभारत के पात्र कोसे जाएंगे, लेकिन अभिशप्त तो यह धरती ही होगी।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App