क्या केजरीवाल नैतिक आधार खो चुके हैं?

अन्य राज्यों में भी शराब पर उच्च उत्पाद शुल्क लगाया जाता है और इसका उद्देश्य कभी भी बड़ा राजस्व कमाना नहीं होता। बहरहाल यह ठीक नहीं कि केजरीवाल राजनीतिक प्रतिशोध के शिकार हैं…

21 मार्च, 2024 को दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आर्थिक अपराधों के लिए केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली सरकार की शराब नीति से संबंधित भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया था। उसके बाद केजरीवाल को उच्च न्यायालय सहित किसी भी न्यायिक कार्यालय से राहत नहीं मिली, और केजरीवाल ने सर्वोच्च न्यायालय से अपना आवेदन वापस लेने का फैसला किया, जिसके कारण वे ही जानते हैं। हालांकि, कांग्रेस पहले से केजरीवाल के कथित भ्रष्टाचार की आलोचना करती रही है, लेकिन अब उसने केजरीवाल का समर्थन करते हुए केजरीवाल की गिरफ्तारी को लोकतंत्र पर हमला बताया है। चूंकि चुनाव नजदीक हैं और केजरीवाल एक महत्वपूर्ण नेता हैं, और उनकी पार्टी दो महत्वपूर्ण राज्यों में सत्ता में है, इसलिए उनकी गिरफ्तारी का राजनीतिक महत्व बहुत बढ़ गया है। कुछ लोग उनकी गिरफ्तारी को अनुचित मान सकते हैं और कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि इसका उल्टा असर मौजूदा केंद्र सरकार पर पड़ सकता है, क्योंकि केजरीवाल लोगों की सहानुभूति भी बटोर सकते हैं। लेकिन पहला सवाल यह है कि क्या केजरीवाल की गिरफ्तारी सही है? दूसरा सवाल यह है कि आखिर यह शराब नीति क्या है? क्यों इसके कारण पहले केजरीवाल के सिपहसालार मनीष सिसोदिया तिहाड़ जेल पहुंचे और अब खुद केजरीवाल। तीसरा सवाल यह है कि शराब नीति और इसके संचालन में भ्रष्टाचार के आरोप क्या सही हैं? चौथा सवाल यह है कि केजरीवाल अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के भारी प्रयास के बावजूद आम जनता से सहानुभूति क्यों नहीं पा रहे हैं। इस लेख में केजरीवाल शराब नीति और इसके प्रभाव को समझने की कोशिश की जा रही है। सबसे पहले यह जानना दिलचस्प होगा कि उक्त शराब नीति को उसके अस्तित्व में आने के एक साल के भीतर ही न्यायपालिका या किसी केंद्रीय एजेंसी ने नहीं, बल्कि खुद केजरीवाल सरकार ने वापस ले लिया। तब से ही उक्त नीति की ईमानदारी पर संदेह हैं।

यह शराब नीति क्या है : केजरीवाल शराब नीति लागू होने से पहले, सरकारी और निजी दुकानों पर खुदरा शराब बेची जाती थी। बेची जाने वाली शराब पर उत्पाद शुल्क और मूल्य वर्धित कर (वैट) वसूला जाता था। उल्लेखनीय है कि चूंकि राज्य सरकारों के आग्रह पर पेट्रोलियम उत्पादों, शराब और प्रसाधन सामग्री को जीएसटी से बाहर रखा गया था, इसलिए शराब पर उत्पाद शुल्क राज्य सरकार, इस मामले में केजरीवाल सरकार का विषय है। केजरीवाल शराब नीति में, दिल्ली के क्षेत्रों को 32 क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया था, जिसमें 8-10 वार्ड शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक में लगभग 27 दुकानों का प्रावधान रखा गया। इसका मतलब यह था कि प्रत्येक वार्ड में 2-3 शराब विक्रेता होंगे। नई आबकारी व्यवस्था में शहर के 32 क्षेत्रों में समान रूप से वितरित 849 विशाल और वातानुकूलित शराब की दुकानों की परिकल्पना की गई थी। केजरीवाल की शराब नीति को लाने के पीछे एक महत्वपूर्ण तर्क यह था कि इससे उपभोक्ताओं को लंबी कतारों में खड़े होने के संघर्ष के बिना, वातानुकूलित दुकानों में आसानी से ‘शराब खरीदने का सुखद अनुभव’ मिलेगा। शराब नीति को 32 जोनों के लाइसेंस की नीलामी से लगभग 10000 करोड़ रुपए की कुल आय की उम्मीद थी। यह पिछले 3 वर्षों के औसत राजस्व 5500 करोड़ रुपए से लगभग दोगुना माना जा रहा था। उल्लेखनीय है कि केजरीवाल शराब नीति से पहले दिल्ली में 12 से 13 लाख बोतल शराब बिकती थी, जिस पर आबकारी शुल्क और वैट लगाया जाता था। जब केजरीवाल सरकार की शराब नीति पेश की गई तो आबकारी शुल्क और वैट घटाकर एक-एक प्रतिशत कर दिया गया और इसकी जगह लाइसेंस की नीलामी की गई और जिन विक्रेताओं को लाइसेंस दिए गए थे, वे शराब की कितनी भी बोतलें बेचने के लिए स्वतंत्र थे। इससे शराब की बिक्री में तेजी आने लगी और उपभोक्ताओं को सुखद अनुभव देने के लिए मॉल्स में अधिक दुकानें भी खोली जाने लगीं।

थोक विक्रेताओं का विवादास्पद लाइसेंस और कमीशन : केजरीवाल शराब नीति के साथ-साथ एक और नीति भी शुरू की गई, जो स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण और भ्रष्टाचार से ग्रस्त थी, जिसमें पूर्व में सिर्फ 5 प्रतिशत की तुलना में थोक विक्रेताओं को 12 प्रतिशत कमीशन की अनुमति दी गई। इससे खुदरा विक्रेताओं का मुनाफा कम हो गया, उन्हें अपने लाइसेंस सरेंडर करने और व्यवसाय से बाहर होने के लिए मजबूर होना पड़ा, और सरकार के खिलाफ कानूनी मामले भी शुरू हो गए। शायद, थोक विक्रेताओं की इस कमीशन नीति के कारण ही नए केजरीवाल शराब नीति विफल हुई और अंतत: मनीष सिसोदिया और केजरीवाल को जेल जाना पड़ा। आलोचकों का आरोप है कि नीति का मसौदा शराब बाजार में एकाधिकार बनाने की सुविधा के एकमात्र इरादे से तैयार किया गया था। यह केवल कुछ चुनिंदा थोक विक्रेताओं के लिए तैयार किया गया था, क्योंकि थोक विक्रेता के लाइसेंस के लिए बोली लगाने की पात्रता शर्तों में से एक, पिछले 3 वर्षों के दौरान 150 करोड़ रुपए की न्यूनतम वार्षिक बिक्री थी। छोटे खिलाडिय़ों को, जिनके पास पहले लाइसेंस था, को बोली प्रक्रिया से बाहर कर दिया। नई नीति ने ‘पेरनोड रिकार्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ और ‘डियाजियो इंडिया’ के ब्रांडों की पेशकश करने वाले मु_ी भर थोक विक्रेताओं को खुदरा विक्रेताओं को आपूर्ति और छूट की मात्रा पर महत्वपूर्ण नियंत्रण दिया था। उच्च निश्चित लाभ ने थोक विक्रेताओं के हितों की रक्षा की, लेकिन खुदरा विक्रेताओं को निचोड़ा।

थोक विक्रेताओं का यह अतार्किक और आश्चर्यजनक मार्जिन केजरीवाल शराब नीति का प्रमुख बिंदु बन गया और इसने खुदरा विक्रेताओं को भारी नुकसान पहुंचाया, जिससे उन्हें अपने लाइसेंस भी सरेंडर करने पड़े। इससे केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को भी बड़ा राजनीतिक झटका लगा। चूंकि थोक विक्रेताओं को 12 प्रतिशत कमीशन मिल रहा था, जो सामान्य 3 से 5 प्रतिशत से बहुत अधिक था, इससे खुदरा विक्रेताओं के मार्जिन काफी कम हो गए और उनमें से कई ने अपने लाइसेंस सरेंडर कर दिए और दुकानों को बंद कर दिया। सरकार को इससे राजस्व की भारी हानि हुई और इससे अंतत: केजरीवाल शराब नीति वापस लेने हेतु आवाजें उठने लगी। दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा इसकी जांच के आदेश दिए जाने के बाद, यह खुलासा हुआ कि सरकार से जुड़े लोगों ने थोक विक्रेताओं से उनके लाभ का एक बड़ा हिस्सा वापस लिया और उसके प्रमाण भी मिल गए। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कथित तौर पर धन के निशान पाए हैं, जो लगभग 100 करोड़ रुपए है। इतनी या इससे अधिक राशि को आम आदमी पार्टी से जुड़े लोगों को हस्तांतरित कर दिया गया।

नैतिक प्रश्न : भ्रष्टाचार के कानूनी प्रश्नों पर तो जांच एजेंसियां पहले से ही काम कर रही हैं, लेकिन नैतिकता के प्रश्न ऐसे हैं, जिनसे शायद केजरीवाल खुद को कभी मुक्त न कर पाएं। उनके गुरु गांधीवादी अन्ना हजारे पहले ही केजरीवाल शराब नीति के लिए उनकी आलोचना कर चुके हैं और उनकी गिरफ्तारी को उचित ठहरा चुके हैं। अरविंद केजरीवाल के लिए उनकी शिकायत यह है कि उनके शिष्य के रूप में उन्होंने शराब के खिलाफ आवाज उठाई और अब वही केजरीवाल शराब नीति के लिए गिरफ्तार हुए हैं और यह सही भी है। हमारे संविधान में शराबबंदी राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में से एक है। गुजरात और बिहार सहित कुछ राज्यों ने पूर्ण शराबबंदी भी लागू की है। बिहार में, सीएम नीतीश कुमार ने अच्छी प्रसिद्धि अर्जित की है, क्योंकि इस कदम ने परिवारों को शराब के अभिशाप से मुक्ति दिलाई है। अन्य राज्यों में भी शराब पर उच्च उत्पाद शुल्क लगाया जाता है और इसका उद्देश्य कभी भी बड़ा राजस्व कमाना नहीं होता। बहरहाल यह ठीक नहीं कि केजरीवाल राजनीतिक प्रतिशोध के शिकार हैं।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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