चेतना की उच्चतम अवस्था

By: Apr 13th, 2024 12:14 am

श्रीश्री रवि शंकर

राम हमारी चेतना हैं। हमारे दिल में जो प्रकाश है, वही राम है। ऐसी कथा प्रचलित है कि चैत्र नवमी के दिन ही अयोध्या में, राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र के रूप में भगवान राम का जन्म हुआ था। इसीलिए भारत में प्रत्येक वर्ष, चैत्र नवमी को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है। अयोध्या माने जो वध करने योग्य नहीं है। हमारा शरीर अयोध्या है। दशरथ माने पंच ज्ञानेन्द्रिय और पंच कर्मेन्द्रिय रूपी दस रथों के राजा और कौशल्या माने कुशलता। तो पंच ज्ञानेन्द्रिय और पंच कर्मेन्द्रिय रूपी दस रथों के राजा के यहां राम का जन्म हुआ।

चेतना की अवस्थाएं- हमारी चेतना की तीन अवस्थाएं हैं जाग्रत, स्वप्न और निद्रा। चेतना की जाग्रत अवस्था में हम संसार को अपनी पांच इंद्रियों से अनुभव करते हैं। हम इंद्रियों से आनंद पाना चाहते हैं। यदि हमारी पांचों इंद्रियों में से कोई भी एक ठीक से काम नहीं करती, तो उस इंद्रिय का पूरा का पूरा आयाम खत्म हो जाता है। जो व्यक्ति सुन नहीं सकता, वह ध्वनि के संसार से वंचित हो जाता है। इसी तरह जो देख नहीं सकता, वह सुंदर दृश्यों और रंगों से वंचित हो जाता है। तो इंद्रियां ‘इंद्रिय विषयों’ से कहीं अधिक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण हैं।

चेतना, मन और इंद्रियों में क्या संबंध है-
मन इंद्रियों से बड़ा है। मन अनंत है, इसकी बहुत सी इच्छाएं हैं लेकिन इच्छाओं का आनंद लेने की मन की क्षमता बहुत सीमित है। इंद्रिय विषयों की और अधिक पाने की चाह लोभ है। एक व्यक्ति एक जीवन काल में इच्छाओं का सीमित आनंद ही ले सकता है, लेकिन फिर भी वह संसार के सभी धन का आनंद लेना चाहता है। इंद्रिय विषयों को आवश्यकता से अधिक महत्त्व देना, लोभ को बढ़ाता है। इंद्रियों को बहुत अधिक महत्त्व देना वासना को बढ़ाता है, मन और इसकी इच्छाओं को बहुत अधिक महत्त्व देना माया की ओर ले जाता है। हम मन की अवधारणाओं को पकड़ कर रखते हैं और चाहते हैं कि घटनाएं एक विशेष तरीके से हों। इस तरह से, हमारे मन की अवधारणाएं हमें उस अनंत चेतना को समझने से रोकती हैं जो हमारा ही एक हिस्सा है।

चेतना की अवस्थाओं के प्रति सजगता क्यों आवश्यक है -चेतना की जाग्रत अवस्था में व्यक्ति हमेशा देखने, खाने, काम आदि करने में लगा रहता है। निद्रा अवस्था इसकी एकदम विपरीत है, जहां व्यक्ति पूरी तरह से इंद्रियों से कट जाता है और सुस्त हो जाता है। व्यक्ति जितना अधिक सोता है, उतना ही अधिक सुस्त अनुभव करता है, क्योंकि नींद में बहुत अधिक ऊर्जा खर्च होती है। और फिर चेतना की स्वप्न अवस्था है जहां आप न तो विश्राम अनुभव करते हैं और न ही आसपास के वातावरण के प्रति सजग रहते हैं। मन और इंद्रियां बुरी नहीं हैं। लेकिन हमें चीजों के अंतर को समझने और जो कुछ भी हो रहा है,उसके प्रति सजग होने की आवश्यकता है। यह चेतना की उच्चतम अवस्था की ओर पहला कदम है।

चेतना की उच्चतम अवस्था क्या है- चेतना की उच्चतम अवस्था जाग्रत, निद्रा और स्वप्न की अवस्था के बीच में कहीं है। इस अवस्था में हम यह तो जानते हैं कि हम हैं, पर यह नहीं जानते कि हम कहां हैं! यह अवस्था व्यक्ति को संभवत: सबसे गहरा विश्राम देती है और इसे ध्यान के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है। चेतना की उच्च अवस्था को ऐसे ही नहीं पाया जा सकता। चेतना का पौधा आपके भीतर है, ‘ध्यान’ जैसे आध्यात्मिक अभ्यास से इसको पोषित करने की आवश्यकता है। ज्ञान, समझ और अभ्यास का मिलन जीवन को पूर्ण करता है। जब आप चेतना की उच्च अवस्था में पहुंच जाते हैं तब आप अलग-अलग परिस्थितियों और समस्याओं से परेशान नहीं होते।


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