हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा 51

By: Apr 13th, 2024 7:44 pm

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-51

हिमाचल का कहानी संसार

विमर्श के बिंदु
1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष

लेखक का परिचय

नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता। पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।

डा. हेमराज कौशिक
अतिथि संपादक
मो.-9418010646

-(पिछले अंक का शेष भाग)
‘आत्म सम्मान’ में मानवीय रिश्तों की तरलता के भाव का अहंकार और झूठी शान के कारण निरंतर सूखते जाने का चित्रण है। ‘दोषी कौन’ यह चित्रित करती है कि न्याय प्रक्रिया में कई बार दोषी व्यक्ति सफाई से बच निकलता है और निर्दोष व्यक्ति दोषी सिद्ध होकर सजा भोगता है। ‘दीपावली का उपहार’ में कहानीकार ने रामू और धनी की निर्धनता का चित्रण किया है जिन्हें परिश्रम करने के बाद भी दो जून की रोटी मयस्सर नहीं होती। ‘गुरु दक्षिणा’ में माता-पिता के प्रति पुत्र और पुत्रवधू के अमानवीय व्यवहार का चित्रण है। ‘भाग्य’ कहानी उन युवकों पर केंद्रित है जो विदेशों में रोजी-रोटी की तलाश में जाते हैं और वहीं के होकर रह जाते हैं। ऐसे युवकों के माता-पिता, पत्नी और बच्चे उनकी राह देखते जिंदगी गुजार देते हैं। जीवनपर्यंत एकाकी जीवनयापन करने के लिए विवश होते हैं। भानु प्रताप कुठियाला की कहानियां उद्देश्यपूर्ण हैं। कहानियों की विषय वस्तु का वैविध्य पाठक को आकर्षित करता है, किंतु कहानियों को जीवंत और विश्वसनीय बनाने के लिए सूक्ष्म डिटेल्स की जरूरत होती है और उससे कहानी का परिवेश मुखर होता है और पात्रों का अंतद्र्वंद्व अधिक मुखर होकर सामने आता है। ‘मारिया’ शीर्षक संग्रह की कहानियों में भी इसी संवेदना भूमि का विकास परिलक्षित होता है। ‘मारिया’ शीर्षक कहानी संग्रह में उनकी ग्यारह कहानियां- मारिया, बाबूजी, स्वाति, एहसास, बड़ी बहन, अपना-अपना दर्द, जीने की राह, प्रायश्चित, लाजबंती, कचहरी के चक्कर और ‘क्या यही जिंदगी है’ संग्रहीत हैं। ‘मारिया’ प्रस्तुत संग्रह की शीर्षक कहानी है। इसमें एक स्त्री के जीवन संघर्ष, जिजीविषा और साहस को निरूपित किया गया है।

मारिया को एक फादर आश्रय देता है। जीवन के अंधकार में एक नाटकीय मोड़ के कारण जीवन यापन की राह उसे मिलती है। पति के अपमान से पीडि़त होकर लिया गया उसका निर्णय उसे उच्च भूमि पर अवस्थित करता है। ‘बाबूजी’ युवा पीढ़ी के वैभव के साथ पालन पोषण होने से विकसित हुई मानसिकता से दिग्भ्रमित जीवन और वृद्धों के प्रति उपेक्षा भाव और अपमान को रेखांकित करती है। कहानी बाबूजी की चरित्र सृष्टि के माध्यम से आदर्श की स्थापना करती है और बाबूजी का समाज सेवक रूप मुखर करती है। ‘स्वाति’ शीर्षक कहानी में स्वाति की एक सशक्त चरित्र के रूप में सृष्टि की गई है, जिसमें पति के प्रति उदारता और सेवा भाव है, परंतु विक्रांत जैसा विकृत मानसिकता का चरित्र उनकी बेटी से विवाह करने के लिए उसके पति को फ्लैट बनाकर देने का लालच देता है, तो वह एक विद्रोहिणी स्त्री के रूप में उसे जिंदा जलाने का उद्घोष करती है, ‘तू जानता नहीं नारी शक्ति क्या होती है।’ कहानी यह स्थापित करती है कि संबंधों में पैसे, धन-संपत्ति का लालच, स्वार्थ, अविश्वास और धोखे का प्रवेश हुआ है। ‘एहसास’ भी संबंधों में रागात्मक सूत्रों के क्षीण होने या टूटने को लेकर सृजित कहानी है। संबंधों की परिधि इतनी संकुचित हो गई है कि पति-पत्नी और बच्चों तक सीमित है। यही कारण है कि वृद्ध माता-पिता संतति के असंवेदनशील, उपेक्षित और अपमानजनक व्यवहार के कारण कुंठित और दुखी हैं। ‘बड़ी बहन’ भी संबंधों के ताने-बाने में विन्यस्त मार्मिक कहानी है। ‘लाजबंती’ शीर्षक कहानी में भी लाजवंती संघर्षशील चरित्र है जो तारा सिंह की जमीन हथियाने की महत्वाकांक्षा को सफल नहीं होने देती। वैधव्य जीवन की त्रासदीय स्थितियों में भी वह निर्भीक और अडिग होकर सामना करती है। ठेकेदार के षड्यंत्रों के विरुद्ध निर्भीक होकर खड़ी होती है। ‘जीवन की राह’ में एक बालक के माध्यम से जीने का मार्ग प्रशस्त किया गया है, जो एक वृद्ध में आशा का संचार करती है। ‘प्रायश्चित’ में यह उद्घाटित है कि धन-संपत्ति के अहंकार के कारण आज मानवीय मूल्य तिरोहित हो गए हैं। ‘क्या यही जिंदगी है’ ट्रक ड्राइवर की जीवनचर्या पर केंद्रित है। एक ट्रक ड्राइवर दिन-रात ट्रक चलाते हुए अपने घर-परिवार, पत्नी और बच्चों से दूर रह कर ट्रक मालिक की प्रताडऩा का शिकार होता है।

समाज की दृष्टि में उसका सम्मानजनक स्थान नहीं है। कहानीकार ने शोभा सिंह के माध्यम से ट्रक ड्राइवर के प्रति समाज के उपेक्षा भाव और असंवेदनशीलता को निरूपित किया है। कहानीकार भानु प्रताप कुठियाला ने इन कहानियों में प्रमुख रूप में अनेक स्त्रियों की सशक्त चरित्रों के रूप में सृष्टि की है। ‘मारिया’ की मारिया, ‘स्वाति’ की स्वाति, ‘एहसास’ की अनुराधा और सुनैना, ‘बाबूजी’ की राधा और ‘लाजवंती’ आदि नारियों की सकारात्मक भूमिका चित्रित है। प्रस्तुत संग्रह की कहानियां निकट परिवेश के यथार्थ को सहज, सरल शैली में अभिव्यांजित करती हैं। कहानीकार की संवेदना भूमि के केंद्र में पारिवारिक परिवेश में संबंधों और जीवन मूल्यों के विघटन को रूपायित किया है। आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता की दौड़ में सामाजिक संबंध निरर्थक हो गए हैं, क्योंकि व्यक्ति आत्म केंद्रित हो गया है। कहानीकार ने जीवन के कटु यथार्थ को पहाड़ी जीवन के परिवेश के संदर्भ में विभिन्न कहानियों में विन्यस्त किया है। कहानियों में मानवीय और सामाजिक सरोकार विविध आयामों में मूर्तिमान हुए हैं।

श्रीनिवास श्रीकांत ने कथा में पहाड़ (2009) शीर्षक से कहानी संग्रह का संपादन किया है। प्रस्तुत संपादित संग्रह पर्वतीय अंचल के जनजीवन पर केंद्रित कहानियों का ऐसा संचयन है जिसमें उत्तर भारत के हिमालय पर्वत के अंचल के जनजीवन को उद्घाटित करने वाली ये कहानियां हिंदी कथा साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती हैं। भारत के पर्वतीय क्षेत्र के प्रमुख कहानीकारों के पर्वतीय जीवन पर आधारित उन्तालीस कहानियां पहाड़ी जीवन के सौंदर्य, संघर्ष, सुख-दुख, मानवीय संबंध और प्रकृति की गहरी झलक प्रस्तुत करती हैं। ‘पहाड़ बरक्स कहानी : एक नजर’ शीर्षक विस्तृत भूमिका में संपादक ने देश के भूगोल और विशेष रूप में हिमालय की दुर्गम घाटियों के विस्तार के साथ किस प्रकार सामाजिकार्थिक और सांस्कृतिक विकास हुआ और सभ्यता और संस्कृति का परिष्कार हुआ, इसका गहन विवेचन परिलक्षित होता है। उन्तालीस कहानीकारों में हिमाचल प्रदेश के कहानीकारों की चर्चित कहानियों को इसमें सम्मिलित किया गया है। संदर्भित संग्रह में हिमाचल प्रदेश के कहानीकारों की कहानियां- मंगला (यशपाल), बिल्लियां बतियाती हैं (एसआर हरनोट), प्रेत संवाद (बद्री सिंह भाटिया), गाची (तुलसी रमण), घराटी माम (आत्माराम रंजन), मंगलाचारी (सुंदर लोहिया), छिदरा (मुरारी शर्मा), भिरटी (राजकुमार राकेश), फूलों की घाटी में राक्षस (सुदर्शन वशिष्ठ), कुछ नहीं देखा (केशव), मेमना (सुशील कुमार फुल्ल), पियानो (रेखा), मुआवजा (राजेंद्र राजन) संगृहीत हैं। ‘कथा में पहाड़’ में श्रीनिवास श्रीकांत से पर्वतीय अंचल के जनजीवन पर आधारित कहानियों का संचयन करते हुए उनका सर्वाधिक ध्यान उन कहानियों पर केंद्रित रहा है जिनमें पर्वतीय जीवन का सुख-दुख, दुश्वारियां और समस्याएं अधिक मुखर होकर सामने आई हैं। संपादक का इस संदर्भ में कहना है, ‘कथा में पहाड़’ का मूल लक्ष्य है पर्वतांचल के लिखित कथा साहित्य को प्रकाश में लाना, उसे एक अलग पीठिका में प्रस्तुत करना ताकि कथा रसिक यहां के ग्राम्य जीवन एवं सामाजिक परिवेश को उसके विभिन्न आयामों में देख सकें और एक पाठक के रूप में यहां के लोगों के सुख-दुख को जान सकें। हमारा लक्ष्य है पहाड़ के प्रतिनिधि और प्रतिदर्श कथा संसार को हाशिए से बाहर लाना और हिंदी गल्प के मंच पर उसकी अलग से प्रतीति करना।’ संपादक ने भारतीय हिमालय के तीन भू-राज्यों जम्मू कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के कहानीकारों द्वारा रचित कहानियों के माध्यम से पहाड़ी जीवन के यथार्थ को सामने लाने का प्रयास किया है। कथा संचयन के प्रत्येक खंड के अंतर्गत प्रत्येक कहानी के प्रारंभ में कहानी की संवेदना भूमि, शिल्प और भाषा का भी संपादक ने समीक्षात्मक अध्ययन किया है। कहानी के प्रारंभ में प्रस्तुत की गई यह भूमिकाएं पाठक को कहानी समझने में ही सहायक नहीं हैं, अपितु इन्हें यदि एक स्थान पर संपादित किया जाए तो कथा में पहाड़ की कहानियों पर एक विस्तृत लेख बन जाता है। कहानी संबंधी संपादक की टिप्पणियां संपादक की आलोचना दृष्टि की गहराई का परिचय देती हैं।

विवेच्य अवधि में हंसराज भारती का ‘लाल सुर्ख गुलाब’ (2010) शीर्षक से कहानी संग्रह प्रकाशित है। संदर्भित कहानी संग्रह में उनकी चौदह कहानियां- एक याद भूली सी, के बाद, इंतजार, जमाना बदल गया, एक अधूरी साध, बनक्कशे के फूल, काला महीना, ऊंची धार की धूप, हादसा, लीखणु, बाल्हा री घुग्गी, उड़ान, जंगली चिडिय़ा, लाल सुर्ख गुलाब संगृहीत हैं। प्रस्तुत संग्रह की कहानियां वंचितों, सामान्य जन के सुख-दुख, सामाजिक परंपराओं और विसंगतियों में पिसती नारी के संघर्ष, पुरुष वर्चस्ववादी समाज में नारी की निरीहता, बेबसी और निर्णय स्वतंत्रता से वंचित होने की विविध स्थितियों से संबंध रखती हैं। ये कहानियां प्रमुख रूप में पर्वतीय अंचल में जीवन यापन करने वाली नारी के संघर्ष को उद्घाटित करती हैं। ‘एक याद भूली सी’ कहानी में यह प्रतिपादित किया है कि वय: संधि काल की प्रणयानुभूतियां और प्रेम का एहसास सुदीर्घ अंतराल के अनंतर परिस्थितियों के वशीभूत धुंधला अवश्य हो जाता है, परंतु वह स्मृति पटल से लुप्त नहीं होता। ‘के बाद’ शीर्षक कहानी में संबंधों की अर्थहीनता, औपचारिकता और मध्यवर्गीय समाज की प्रदर्शन वृत्ति को चित्रित किया है। भौतिकता की दौड़ में पारिवारिक संबंधों के स्नेह सूत्र क्षीण हो गए हैं। कहानी में हरनाम सिंह प्रमुख चरित्र है जिसके इर्द गिर्द कथ्य का वितान निर्मित किया गया है। ‘जमाना बदल गया’ में हरिया के घराट के इर्द-गिर्द कहानी का तंतु विन्यास निर्मित है। गांव में भौतिक विकास के साथ घराट (पनचक्की) की जगह बिजली से चलने वाली चक्की ही नहीं आती, बहुत सी विडंबनाएं भी साथ आती हैं। मशीनीकरण से मानव संबंधों में संवेदनशून्यता आई है और स्नेह के स्रोत सूख गए हैं।

‘एक अधूरी साध’ में कृषक जीवन की पीड़ा का चित्रण है। गांव में पहले सेठ साहूकार किसानों को शोषण करते थे, उनकी विपन्नता का लाभ उठाकर उन्हें अधिक विपन्न और असहाय बनाकर धनार्जन करते थे। नई व्यवस्था के उदय से शोषण के नए तरीके सामने आए हैं। बैंक नई आर्थिक व्यवस्था में सामान्य जन को सहयोग के उद्देश्य से स्थापित हैं। वहां की नौकरशाही, बैंक प्रबंधक और पटवारी मिलकर उनका शोषण करते हैं। ‘काला महीना’ में कहानीकार ने पहाड़ी क्षेत्र की उस परंपरा को सामने लाया है जिसमें नववधू विवाह के प्रथम वर्ष के भादो मास में सास का मुंह नहीं देखती। सास को अनिष्ट से बचाने के लिए मायके रहती है। इस महीने में नववधू का पति फौज से एक सप्ताह के अवकाश पर आता है। मां बेटी से मन की भावनाओं के दमन का आग्रह करती है। लिंग भेद को लेकर कहानी में अनेक सवाल हैं।

-(शेष भाग अगले अंक में)

पुस्तक समीक्षा : ‘रावी पार जाना है’

में विविध भावों की सरिता
राकेश कुमार ठाकुर का कविता संग्रह ‘रावी पार जाना है’ में विविध भावों की सरिता बह रही है। बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित इस संग्रह की कीमत 200 रुपए है। इसमें सामाजिक-साहित्यिक विषयों पर 60 कविताएं संकलित हैं। कविताएं छोटी-छोटी हैं और पाठक ऊबता नहीं है। कविता लेखन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कवि कहता है कि जो भी मैंने सीखा या महसूस किया या किसी से अनुकरण किया, कभी-कभी लिख देता हूं कागज के पन्नों पर एक कलम से उन भावों को जो एकाएक उमड़ जाते हैं मन में क्षणिक झोंकें की तरह, तो कहते हैं वो कविता हो जाती है। बस इसी सिलसिले में मैंने ये सभी कविताएं लिखी हैं। इन सभी कविताओं को मैं अपने माता-पिता के चरणों में समर्पित करता हूं जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा। ‘मैं हिमाचल हूं’ नामक कविता का सुंदर भाव देखिए, ‘मैं हिमाचल हूं/मैं हिमालय का बेटा हूं/हिमालय के पश्चिमी छोर/और ऊंचे शिखर पर लेटा हूं/यहां आसमान मेरे निकट है/और ऊंचे पहाड़ मेरे मुकुट हैं/जाड़ों की ठंड में/सफेद चादर ओढ़ता हूं/इन आंधियों की अकड़ तो/हवाओं का रुख मोड़ता हूं/लाखों प्रजातियां यहां रहती हैं/असंख्य नदियां मेरे हृदय के ऊपर बहती हैं/इनको अपनी गति और निरंतरता से बहना है/घने जंगलों की संपदा एकमात्र मेरा गहना है।’ इस कविता में सुंदर प्रदेश हिमाचल सजीव हो उठा है। इसी तरह ‘कितना कठिन है कवि बनना’ में व्यंग्य का पुट है, ‘कवि बनना कितना कठिन है/जो मैं बन गया/बनना तो डाक्टर था/पर समय और धन के/असंतुलन ने/न बनने दिया/फिर सोचा एक कलेक्टर बनूं/अरे! जब डाक्टर न बन सका तो/कलेक्टर बनना डाक्टर से भी/कठिन हो गया/डाक्टर और कलेक्टर शब्द जैसे/एक दूसरे के पूरक हों/मेरी असफलताओं के/इसके बाद इनसान/कुछ बनता है/तो फिर बनता है कवि…।’ इसी तरह संग्रह की अन्य कविताएं भी काफी रोचक हैं। यह कविता संग्रह पाठकों को जरूर पसंद आएगा। -फीचर डेस्क

सम्भावनाओं के मौसम में सतीश धर की फुहारें

सतीश धर के नवीनतम कविता संग्रह, ‘सम्भावनाओं के मौसम में’, अनेक बिंदुओं पर आकर सहसा ठिठक जाते हैं विचार, कौंध जाती हैं मानव स्मृतियां, अनुभवों के सागर में उछल जाता है विवेक, टूट जाते हैं वर्षों से सहेजे आईने, तब छवियों के साथ हजारों संघर्ष प्रतिबिंबित होते हैं, ‘ये चेहरे जो उदास बैठे हैं, थक कर इक आस बैठे हैं।’ समय के गहरे दाग उस जुबां पे कैसे खोजूं, जो कहने के वक्त भी दांतों तले दबी रही। कुछ इसी तरह के एहसास को ‘चुप्पियों के इतिहास’ को अनावृत्त करने के प्रयास में कवि पूछते हैं, ‘बात करने का यह सलीका/तुमने कहां से सीखा/जो कुछ बोलते हो/इतना नपा तुला कि/बंद कमरों की दीवारें/उदास रहती हैं।’ सतीश धर बिंब से प्रतिबिंब तक, निराशा से आशा तक, भय के साहस तक, सपनों से हकीकत तक पाठक के मन में चिकोटी काटते हैं, ‘तुम अगर जाना चाहो तो उजाले में जाना, अंधेरी रात बहुत देर तक परेशान करती है।’ पाठक से बहस के सुर छेड़ती हुईं कई कविताएं मानवीय जीवन की जटिलताओं के जवाब परोस देती हैं।

सतीश धर अपने ही दर्शन के कवि हैं। कविताओं को जीवन के सांचे में अपनी ही तड़प की आंच में सुर्खरु करते हुए हादसा, वक्त खूबसूरत नहीं होता, दुनिया उदास है, थोड़ा जियेंगे, अच्छा लगता है, क्या फर्क पड़ता है, तपस्वी की संतान, जब जलमग्न हो जाते हैं गांव, सम्भावनाओं के मौसम में, चुप्पियों का इतिहास, अधूरेपन का एहसास, पिता की डायरी से, कुआं और बस्ती और पुल जैसी रचनाओं में परिष्कृत विषय हमारे आसपास की शिकायत कर जाते या पाठक को विचारों के संगम तक छोड़ आते हैं। कविताएं अपना स्रोत तलाशती हुईं पाठक के कान में हालचाल पूछ जातीं या सामने अकल्पनीय आसमाम से मुट्ठी भर कर सौंप देतीं। यादों के कई झरोखे कविताओं की आंखें खोलते हैं। वहां अकेलापन सालता है, स्मृतियों से रूबरू होती संवेदनाएं बार-बार पूछती हैं, ‘भूलने और याद करने की/इस कशमकश में/विपदाओं से बनता है आदमी।’ यादों का एक दूसरा पक्ष भी है, जो अचानक गुनगुनी सी धूप में ले जाता है और संगीतमयी फुहारों के बीच कह उठता है, ‘तुम्हारी इबादत जैसा ही/कुछ है गुमसुम रहना/हर ख्वाब को आंखों के करीब देखना और/जीने के लिए कुछ सांसें तुम्हीं से मांग लेना/असलियत है जो आंखों से होकर/दिल में घर कर जाती है/जब तुम्हारी याद आती है।’ सतीश धर समय को अपने सचेत पन्ने और समाज को जागरूक वातावरण सौंपते हुए कहते हैं, ‘इन गुनाहों की अगर सिलसिलेवार/चर्चा करें तो उतर जाएंगे मुखौटे/लहूलुहान हो जाएंगे भरोसेमंद हाथ।’ कविताएं उस मिट्टी को भी कुरेदती हैं जहां हम भरभरा कर खड़े हैं। समूची कायनात के प्रश्न ढोती हुई कविता समाज से पूछने का साहस करती है, ‘पहले ईमान मरता है/फिर इंसान/और एक दिन उम्रभर की/जद्दोजहद के बाद पता चलता है/दोनों ही इस धरती से कूच कर गए।’ कवि के दायरे निरंतर बढ़ते हैं, फिर भी महीन सलाखों पर चढ़े शब्द अपना दायित्व नहीं भूलते। सफलता की भीड़ में जब देश की राजधानी चीखती है, तो हम अनहोनी के बियाबान में बर्फ हो जाते हैं, ‘यह अलाव कह रहा है, मां ने संभाल कर रखी है आग, पिता ने घर के किसी कोने में आस, हर बरस यही होता है।’ कुछ भूख बचाकर रखती हैं कविताएं, कुछ मंजिल पर आकर भी प्यासी हैं, ‘पिता की डायरी में घर भी होता था/परिवार और गांव भी/पाई-पाई का हिसाब और दवाई का हिसाब भी।’ सच की परीक्षा में जज्बात उतरते हैं, तेरे करीब आते ही इंकलाब निकलते हैं। कवि महज कल्पना के सागर में नहीं उतर रहा, बल्कि जिंदगी के सवालों में इनसानी फितरत का तर्जुमा भी भारी शिद्दत से कर रहा है। इसलिए वह कविता में खुद को कुछ यूं सुन रहा है, ‘सब के पास/अपना-अपना सच है/सच कहूं तो कहां कहूं/मेरा सच भी किसी से कम नहीं/एक सा सत्य है मेरा/एक सी बात है मेरी/सच भी बोलूं और वह भी मीठा।’       -निर्मल असो

कविता संग्रह : सम्भावनाओं के मौसम में
कवि : सतीश धर
प्रकाशक : बिम्ब-प्रतिबिम्ब प्रकाशन, फगवाड़ा, पंजाब
मूल्य : 275 रुपए

कविता

चमत्कार
एक शहर से दूसरे शहर
कई बरसों बाद जाते हुए
हतप्रभ हैरान ढूंढता गया
चिरपरिचित कस्बे गांवों के चेहरे
रेहडिय़ां चाय चने कुलचे समोसे
मकान दुकानों की मटमैली पहचान

कुछ भी देखा हुआ
कुछ भी तो न दिखा

सडक़ कहीं बड़ी चौड़ी खुली खुली
दौड़ती ही जाती है अनजानी सडक़
कहीं रास्ता भटक गए या
रास्ते ही बदल गए सारे ही

दूरी वही और समय कितना कम हुआ
नई सडक़ से कस्बे दूर जाकर बस गए

जाने पहचाने रास्ते अनजाने से हो गए
डिवेलपमेंट का
चमत्कार है यह।।

-ललित मोहन शर्मा


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