चलो नई गारंटी दी जाए…

By: Apr 27th, 2024 12:05 am

बाजारवाद का दौर है। पब्लिक एकदम नई चीज पसंद करती है। चाहे राजनीति हो, चाहे चाय पकौड़े की दुकान। राजनीति में कुछ नया दिखता है तो पब्लिक एकदम से दीवानी हो जाती है। पकौड़े की दुकान में कोई नई आइटम आ जाती है तो ग्राहक खिंचे चले आते हैं। अब चुनावों का मौसम है तो नई-नई गारंटियां दी जा रही हैं। पुरानी गारंटियां पब्लिक भूल रही हैं, इसलिए पुरानी गारंटियां कैंसिल हो रही हैं और नई गारंटियां ध्यान आकर्षित कर रही हैं। पब्लिक अब 10 गारंटियां भूल गई है। उसे इतना याद है कि गोबर खरीदने की बात हुई थी और गोबर के ढेर लगे हैं, लेकिन सरकार ने सत्ता में आने के बाद सब कुछ गुड गोबर कर दिया है। क्योंकि पार्टी के ही कुछ विधायक साथ छोड़ कर चले गए हैं और सरकार गुड़ बचाने में लगी है। गोबर की तरफ अभी ध्यान नहीं है। गोबर इक_ा वाले सरकार के खिलाफ कहीं मोर्चा न खोल दे, इसलिए नई गारंटियां चुनावी घोषणा पत्र में परोस दी गई हैं। इसमें रोजगार की बात नहीं है। महंगाई की बात नहीं है। पारदर्शी प्रशासन की बात नहीं है। स्वास्थ्य सुविधाओं की बात नहीं है। कानून व्यवस्था की बात नहीं है। सिर्फ एक ही वादा किया गया है कि जो बिक गए हैं, वह सलाखों के पीछे डाले जाएंगे। बिकने वाले क्यों बिक गए, इस पर घोषणा पत्र खामोश है। कुछ दल धर्म को भी घोषणा पत्र में घसीट कर ले आए हैं, ताकि पब्लिक को लगे कि अगर धर्म खतरे में हुआ तो देश भी खतरे में होगा। सबका अपना अपना एजेंडा है, लेकिन सबका एक ही फंडा है कि कैसे पब्लिक के वोट जुटाए जाएं और फिर कैसे पब्लिक को दरकिनार कर दिया जाए।

क्योंकि पब्लिक बीच में रहेगी तो सरकार को खतरा रहेगा। पब्लिक पूछती रहेगी कि वायदों का क्या हुआ और गारंटियां कहां गई। जो दूरदर्शी राजनीतिक दल होते हैं, वे पब्लिक को फालतू के मसलों में उलझा कर रखते हैं ताकि मतलब के मसले पर जनता का ध्यान न जाए। पब्लिक का ध्यान कहीं और होगा तो सत्तारूढ़ दल अपना ध्यान अपने निशाने पर केंद्रित कर सकेगा। लेकिन पब्लिक का ध्यान भटक गया तो सत्तारूढ़ दल का मिशन भी भटक जाएगा। खैर बात हो रही थी गारंटी की। इसलिए सत्तासीन दल ने डिसाइड किया था कि अब पुरानी गारंटियों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए नई गारंटियां दी जाएंगी। इनमें चरणबद्ध ढंग से लोगों को चांद की सैर कराने का वायदा किया जाएगा ताकि चांद पर पहुंच कर लोग जब अपनी धरती को देखेंगे तो उन्हें चांद के विकास और अपनी धरती के डेवलपमेंट कार्यों पर तुलनात्मक अध्ययन करने का मौका मिलेगा। निश्चित रूप से चांद विकास के मामले में पीछे जाएगा। वहां पानी नहीं होगा, बिजली नहीं होगी, सडक़ें नहीं होंगी। इससे सत्तारूढ़ दल के नेताओं को यह प्रचार करने का मौका मिल जाएगा कि हम चांद से भी आगे हैं। कुछ नेता पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का उदाहरण देकर कह सकेंगे कि हम उनसे आगे हैं।

पब्लिक इन बातों से बहुत खुश होती है। उन्हें लगता है कि चांद भी हमारी धरती के मुकाबले तरक्की में पीछे है और पाकिस्तान की तो लुटिया डूब रही है। इससे पब्लिक को गौरवान्वित होने का मौका मिलता है। पब्लिक गौरवान्वित होती रहे, इससे बढक़र चकाचक गारंटी और क्या हो सकती है। इसलिए यह गारंटी पब्लिक के बीच में आकर्षण का केंद्र बन रही है। चुनाव में कौन कितने में बिका, इस बारे पब्लिक फालतू में सोच कर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहती। पब्लिक को लगता है कि बाजारवाद का दौर है। इसमें हाईकमान भी खरीदा जा सकता है। हाईकमान का मु_ी में होना किसी भी दल के नेता जी के लिए अपने करियर में आगे बढ़ाने की सबसे बड़ी गारंटी है। यही गारंटी सर्वोपरि है। नेताजी यही गारंटी दे रहे हैं। इसलिए उनका डंका बज रहा है। पब्लिक के बीच में यही मैसेज जा रहा है कि नेताजी की गारंटी पत्थर पर खींची लकीर होती है। नेताजी मानते हैं कि पब्लिक लकीर की फकीर होती है।

क्वगुरमीत बेदी

साहित्यकार


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