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लोकसभा चुनाव : कई चुनावों में थोड़े से वोट से मिली बड़ी जीत

By: Apr 10th, 2024 12:08 am

हिमाचल की सियासत मेंरोचक सबसे कम अंतर की जीत और हार

राकेश शर्मा — शिमला

लोकसभा चुनाव के इतिहास में दर्ज सांसें थामने वाले मुकाबलों में हार और जीत का फैसला महज कुछ वोटों के अंतर से हुआ है। सबसे करीबी मुकाबले को भाजपा ने महज 0.2 फीसदी के अंतर से जीता था। प्रदेश राजनीति के इतिहास में यह जीत अभी भी नजदीकी मुकाबले में दर्ज है और यह रिकॉर्ड बीते 20 सालों से कायम है। आज बात प्रदेश में अब तक के उन चार सबसे खास मुकाबलों की करेंगे जो बहुत करीबी मानें जाते हैं। इनमें से तीन मुकाबलों में परिणाम भाजपा के तो एक में कांग्रेस के हिस्से आया है। खास बात यह है इन मुकाबलों में फंसने वाले नेताओं में दो पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।

इनमें 1991 में हमीरपुर सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की अग्निपरीक्षा हुई थी, तो 2009 में मंडी संसदीय सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को कड़े मुकाबले में जीत मिल सकी थी। 1991 में एक मुकाबले में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल 3738 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। उनकी जीत और हार के बीच का अंतर 0.83 प्रतिशत था, जबकि वीरभद्र सिंह ने 1.96 प्रतिशत मतों के अंतर से महेश्वर सिंह को पटखनी दी थी।

1991 में हुई प्रेम कुमार धूमल 3738 वोट से जीते

हमीरपुर संसदीय सीट से 1991 में बेहद नजदीकी मुकाबले में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल महज 3738 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। उनकी जीत का मार्जन इस चुनाव में 0.83 प्रतिशत था। हमीरपुर संसदीय सीट पर इस चुनाव में सात लाख 99 हजार 292 मतदाता पंजीकृत थे, लेकिन इनमें से चार लाख 52 हजार 274 ने ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। प्रेम कुमार धूमल को दो लाख पांच हजार 970 वोट मिले थे, जबकि उनके मुकाबले में खड़े कांग्रेस के नारायण चंद पराशर को दो लाख दो हजार 232 वोट मिल पाए थे। प्रदेश की राजनीतिक इतिहास में यह दूसरा सबसे बड़ा करीबी मुकाबला है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को बड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा था।

वीरभद्र सिंह ने कम मार्जिन से हराए थे महेश्वर सिंह

2009 के लोकसभा चुनाव में मंडी संसदीय सीट से वीरभद्र सिंह महज 13 हजार 997 वोटों के अंतर से चुनाव जीत पाए थे। उनकी जीत का मार्जिन 1.96 प्रतिशत था। इस चुनाव में कुल पंजीकृत मतदाता 11 लाख 12 हजार 524 थे और इनमें से सात लाख 13026 ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। वीरभद्र को तीन लाख 40 हजार 973 वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी महेश्वर सिंह को तीन लाख 20 हजार 873 वोट मिले थे। वीरभद्र की यह अब तक की सबसे करीबी जीत है, जबकि लोस और विस चुनाव में जीत के कई रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हैं।

2004 में सिर्फ 1615 वोट के अंतर से हुआ फैसला

लोकसभा चुनाव में 2004 में हमीरपुर सीट पर पूर्व सांसद सुरेश चंदेल और रामलाल ठाकुर के बीच हुआ मुकाबला सबसे करीबी मुकाबलों में दर्ज है। इस चुनाव में सुरेश चंदेल को तीन लाख 13 हजार 243 वोट मिले थे। कुल वोट शेयर का यह 48.2 प्रतिशत था, जबकि कांग्रेस के रामलाल ठाकुर को तीन लाख 11 हजार 628 वोट मिले थे। कुल वोट शेयर 47.9 प्रतिशत था। दोनों के बीच जीत और हार का अंतर 1615 वोटों का था। हार और जीत का फैसला महज 0.2 प्रतिशत वोटों के अंतर से हुआ था। मतगणना के दौरान कभी कांग्रेस के रामलाल ठाकुर आगे निकल रहे थे, तो कभी बाजी पलट कर सुरेश चंदेल के खाते में आ रही थी। इस चुनाव में हमीरपुर ही इकलौती ऐसी सीट थी, जिसमें कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में रामलाल ठाकुर को सिर्फ 1615 वोट से हार का सामना करना पड़ा था। अन्य तीनों सीटों पर कांग्रेस के नेता अपना-अपना चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे थे। इस चुनाव में छह लाख 49 हजार 994 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। कुल 17 विधानसभा सीटों में से छह में कांग्रेस को और 11 में भाजपा को बढ़त मिली थी।

1991 में अढ़ाई फीसदी वोटों में हुआ था फैसला

लोकसभा चुनाव के दौरान 1991 में ही एक अन्य सीट पर बेहद रोमांचक मुकाबला हुआ था। कांगड़ा में भी बेहद रोमांचक मुकाबला देखने को मिला था। हालांकि इस सीट में जीत और हार का फैसला 10 हजार 716 वोटों से हुआ, लेकिन लोकसभा चुनाव में हार और जीत के बीच का यह अंतर सिर्फ 2.54 प्रतिशत वोटों का था। इस चुनाव में भाजपा के डीडी खनूरिया ने कांग्रेस की चंदे्रश कुमारी को मात दी थी। कांगड़ा में कुल मतदाता सात लाख 66 हजार 840 थे और इनमें से चार लाख 25 हजार 434 ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। डीडी खनूरिया को एक लाख 74 हजार 457 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी को एक लाख 63 हजार 741 वोट मिले थे।


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