विरोधी की मदद कर खुद हार गए थे ‘रीवा के महाराज’

By: Apr 11th, 2024 12:06 am

जो था सियासी दुश्मन; उसे दिए एक लाख, प्रचार के लिए गाड़ी भी

देशभर में चुनावी खुमार चरम पर है। सभी पार्टियां अपने-अपने तरीके से जनता को साधने में जुट गई हैंञ इसी बीच बहुत से ऐसे लोकसभा चुनाव के किस्से भी हैं, जो चुनाव दर चुनाव अपनी अलग कहानी के लिए याद किए जाते हैं। ऐसा ही एक किस्सा रीवा लोकसभा क्षेत्र से साल 1977 के चुनाव से जुड़ा है। बघेलखंड की चर्चित रीवा लोकसभा सीट से ‘महाराज’ मार्तंड सिंह चुनाव मैदान में थे। मार्तंड सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में भारतीय लोकदल पार्टी के पंडित यमुना प्रसाद शास्त्री थे। पंडित यमुना प्रसाद शास्त्री दृष्टिहीन थे और आर्थिक रूप से भी काफी कमजोर थे, वह 1975 आपातकाल के दौरान 19 महीने की जेल काटकर बाहर आए ही थे और फिर लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने चुनाव मैदान में उतर गए। साल 1977 के लोकसभा चुनाव में महाराज मार्तंड सिंह निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर गए थे।

वह रीवा राजघराने से थे, तो किसी तरह की कोई सुविधा और साधन की कमी नहीं थी। उनके चुनाव प्रचार के दौरान पूरा एक काफिला साथ-साथ चलता था। समर्थकों का पूरा हुजूम उनके पीछे होता था। इसके पीछे प्रमुख कारण था रीवा राजपरिवार का वहां के लोगों के बीच लोकप्रिय होना। मार्तंड सिंह को इस चुनाव में परदे के पीछे से कांग्रेस का भी साथ मिला था। महाराज मार्तंड सिंह को जब दिव्यांग यमुना प्रसाद शास्त्री की कहानी पता लगी थी, तो उन्होंने, दृष्ट्रिहीन यमुना प्रसाद शास्त्री को उस समय नकद लगभग एक लाख रुपए और एक जीप प्रचार-प्रसार के लिए दी थी, जब चुनाव परिणाम आए, तो आम लोगों से लेकर राजनीतिक पंडित तक सबके दावे गलत साबित हुए। यमुना प्रसाद ने मदद करने वाले रीवा राजघराने के महाराज और लोकसभा चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी मार्तंड सिंह को ही 6695 वोटों के बड़े अंतर से मात दे दी थी।

आपने जितवाया है…

रीवा के पूर्व महाराज मार्तंड सिंह उनके ही जरिए की गई सहायता के कारण लोकसभा चुनाव हार गए थे, पर हार के बावजूद महाराज खुद यमुना प्रसाद शास्त्री के घर बधाई देने पहुंच गए थे। तभी यमुना प्रसाद शास्त्री ने अपनी जीत का श्रेय महाराज मार्तंड सिंह को दिया था। उन्होंने कहा था कि, हम नहीं जीते हैं, बल्कि आपने मुझे जितवाया है। इस बात को अब 47 साल होने वाले हैं, पर बघेलखंड और रीवा वालों की जुबान से साल दर साल यह दिलचस्प किस्सा सुनाई देता है।

रिक्शा से प्रचार करते थे ‘पंडित यमुना प्रसाद’

भारतीय लोकदल पार्टी प्रत्याशी यमुना प्रसाद शास्त्री आर्थिक रूप से कमजोर थे। उनके पास न तो चुनाव प्रचार के लिए गाड़ी थी और न ही लंबा-चौड़ा काफिला। वह अकेले ही रिक्शे पर बैठ लोकसभा क्षेत्र में प्रचार करने निकल जाते थे। यमुना प्रसाद शास्त्री बस किसान-मजदूर, अनुसूचित जनजाति के मुद्दों के सहारे मतदाताओं के बीच पैठ बना रहे थे। एक तो दिव्यांग और ऊपर से कोई सुविधा नहीं, इस वजह से वह पूरे लोकसभा क्षेत्र में प्रचार करने भी नहीं पहुंच पाते थे। यमुना प्रसाद महाराज मार्तंड सिंह को अन्नदाता कहा करते थे।


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