थोपे गए चुनावों पर रायशुमारी

By: Apr 11th, 2024 12:05 am

जागरूक मतदाताओं को ऐसे नेताओं के चरित्र एवं इरादों को परखना होगा जिनमें दूरदृष्टि, विजन और सकारात्मक नजरिए की घोर कमी होती है और जिनका एकमात्र लक्ष्य जीतना भर होता है। ऐसे नेता चुनावी प्रबंधन की बैसाखियों के बलबूते सत्तासुख भोगते हैं…

हिमाचल प्रदेश में 27 फरवरी 2024 को राज्यसभा चुनाव में हुए उलटफेर और क्रॉस वोटिंग के बाद से प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। हिमाचल प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव हुए जुम्मा जुम्मा 15 महीने ही बीते थे कि कुर्सी की चाहत के चलते कांग्रेस के छह विधायकों द्वारा राज्यसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी से बगावत करते हुए और भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान से उपजी परिस्थितियों के कारण विधायक पद से अयोग्य ठहराए जाने के बाद केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा इन 6 विधानसभा सीटों पर चुनाव करवाने की घोषणा और इन बागी अयोग्य कांग्रेसी विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद हिमाचल के सत्ता समीकरण तो प्रभावित हुए ही हैं, अपितु पुन: उपचुनाव की नौबत आन पड़ी है। हाल फिलहाल इस शिक्षित मतदाताओं वाले राज्य में नैतिकता पर आधारित राजनीति पर भी बहस मुहाबिस जारी है और एक प्रकार से इन पूर्व विधायकों के आचरण की वजह से बेवजह थोपे गए उपचुनावों पर जनता जनार्दन की रायशुमारी महत्वपूर्ण रहेगी।

लोकतंत्र में जनता के मत को महत्वहीन समझ कर मात्र वोट बटोरने के बाद न केवल अपनी पार्टी के साथ विश्वासघात करने और दलबदल कर पुन: चुनावों की नौबत पैदा कर अपने क्षेत्रों की आम जनता की विकास की चाहत को भी ठेंगा दिखाने का मामला कोई नई घटना नहीं है। इन पूर्व हो चुके विधायकों के अपने अपने क्षेत्रों में स्वागत समारोहों के आयोजनों के साथ ही मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र का दौरा कर माहौल को गरमाया है और आरोपों प्रत्यारोपों और मानहानि नोटिस भेजने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। हिमाचल प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों के सम्भावित प्रत्याशियों ने अपनी अपनी मुश्कें कस ली हैं। इन छह विधानसभा सीटों के अलावा पूरे भारतवर्ष में लोकसभा चुनाव के तहत आम चुनावों की भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा विधिवत चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही राज्य में चुनावी आचार संहिता लागू हो गई है। जिन विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने जा रहे हैं, वहां धर्मशाला में 83 हजार 718, लाहौल स्पीति में 25 हजार 724, सुजानपुर में 76 हजार 830, बड़सर में 88 हजार 432, गगरेट में 84 हजार 887 और कुटलैहड़ के 87 हजार 857 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। वहीं हिमाचल में उपचुनाव के मतदान तारीख 01.06.2024 (शनिवार) को और मतगणना की तारीख 04.06.2024 (मंगलवार) रखी गई है। इसी प्रकार लोकसभा की चार सीटों के लिए कुल 5638422 मतदाताओं द्वारा 7990 मतदान केंद्रों में वोट डाले जाएंगे। हम सभी जानते हैं कि विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है और आधुनिक संचार तकनीकी के जमाने में दूसरे विकसित देशों की तुलना में मिलने वाली सुविधाओं के दृष्टिगत अब भारतीय नागरिकों की उम्मीदें और अपेक्षाएं भी परवान चढ़ रही हैं।

2022 के विधानसभा चुनाव में भी हिमाचल के प्रबुद्ध एवं जागरूक मतदाताओं ने भाई भतीजावाद और भ्रष्टाचार से छुटकारा मिले तथा विकास कार्य धरातल पर दिखलाई दें, की चाहत में मतदान किया था और उम्मीद लगाई थी कि कांग्रेस सरकार और विपक्षी दल के विधायक अपने अपने विधानसभा क्षेत्रों में विकास का अलख जगाएंगे, लेकिन सत्तारूढ़ दल के कुछ विधायकों की महत्वाकांक्षाओं के चलते प्रदेश के इन छह विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं को पुन: उपचुनावों में वोटिंग करनी पड़ जाएगी, यह किसने सोचा था? अब तो जनता को वाकई जनार्दन की भूमिका में उतर कर दूध का दूध और पानी का पानी करना होगा। आम तौर पर देखा जाता है कि जब भी लोकसभा अथवा विधानसभाओं के चुनाव होते हैं तो पक्ष-विपक्ष के नेतागण विकास सम्बन्धी मुख्य मुद्दों से आम जनता का ध्यान भटकाकर व्यक्तिगत छींटाकशी और धर्म आधारित राजनीति पर उतर आते हैं और जनता जनार्दन से जुड़े हुए मुद्दे गौण होकर रह जाते हैं। अयोग्य ठहराय गए विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में दोबारा उपचुनावों के कारण आंशिक अस्थिरता का संकट झेल रही कांग्रेस सरकार द्वारा अंशदायी पेंशन योजना (एनपीएस) के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों के लिए बहाल की गई पुरानी पेंशन प्रणाली के बने रहने पर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने तो विधानसभा में ललकारते हुए कर्मचारियों को चुनाव लड़ लेने की भी सलाह दे डाली थी। माननीयों द्वारा खुद के लिए पेंशन और कर्मचारियों के लिए मामूली पेंशन की वकालत के मुद्दे पर कर्मचारियों का इन छह सीटों के उपचुनाव में क्या रवैया रहता है, यह भी एक विचारणीय विषय रहेगा। क्या कर्मचारी वर्ग इन छह सीटों को पुन: कांग्रेस की झोली में डालकर अपनी पुरानी पेंशन को सुरक्षित करने की दिशा में एकजुट रहेंगे?

आम नागरिकों के पास पांच वर्षों के बाद मौका आता है जब वे नाकाबिल जनप्रतिनिधियों को बाहर का रास्ता दिखाकर ईमानदार, सुयोग्य, कर्मठ, मेहनती और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को विजेता बना सकते हैं, लेकिन इस बार हिमाचल में हो रहे उपचुनाव की वजह से यह मौका जल्दी ही आन पड़ा है। लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत आज जरूरत इस बात की भी है कि सरकारें एक नए राष्ट्रीय एजेंडे को सामने लाएं और अपने नागरिकों में एक राष्ट्रीय चरित्र को विकसित करने की चुनौती को स्वीकार करें जहां विकसित भारत की अवधारणा सर्वोपरि हो। चरित्र निर्माण की भावना चुने हुए जनप्रतिनिधियों पर भी लागू होती है। ऐसे जनप्रतिनिधि किस काम के जो जनसेवा के बजाय महज अपने फायदे के लिए मतदाताओं पर पुन: चुनाव लाद दें, मतदाताओं को इसका भी संज्ञान लेना चाहिए। जागरूक मतदाताओं को ऐसे नेताओं के चरित्र एवं इरादों को परखना होगा जिनमें दूरदृष्टि, विजन और सकारात्मक नजरिए की घोर कमी होती है और जिनका एकमात्र लक्ष्य जीतना भर होता है। ऐसे नेता महज चुनावी प्रबंधन की बैसाखियों के बलबूते सत्तासुख भोगते हैं और आम जनता ठगी से वहीं की वहीं खड़ी रह जाती है।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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