राजस्थान का पुष्कर तो ऊना का ब्रह्माहूति हैं संसार में सबसे बड़े तीर्थस्थल

By: Apr 12th, 2024 12:55 am

संतोषगढ़ नगर से 15 किलोमीटर दूर इस स्थल की आस्था है अपार, बैसाखी, सोमवती अमावस्या, सूर्यग्रहण, शिवरात्रि पर लगता है भक्तों का तांता

डीआर सैनी-संतोषगढ़
जिसे शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मव्रत क्षेत्र कहा गया है उसके चार द्वार है। जिसके पश्चिमी द्वार पर ब्रह्मवती (ब्रह्मौति) स्थित है। इस दिव्य तीर्थ स्थान में ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण कर धर्म, सदाचार, ज्ञान, तप, वैरागय, पीभगवत भक्ति की प्रेरणा दी। ब्रह्मा जी के द्वारा इस दिव्य स्थल पर चिरकाल तप करने के उपरांत जो तेज पुंज निकला, वही तेज पुंज ज्वाला के रूप में परिवर्तित हो गया, फिर ज्वाला नारी के रूप में प्रकट हो गई। इस स्थल पर ही ब्रहा्, इन्द्र आदि देवताओं ने बड़े दिव्य मंत्रों द्वारा मां का स्तवन किया। भगवान ब्रह्मा जी को सृष्टि के रचयिता के रूप में जाना जाता है। और पौराणिक कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि पूरे संसार में ब्रह्मा जी के दो ही मन्दिर विख्यात है जिनमें से एक मंदिर राजस्थान में पुष्कर राज है, तो दूसरा देवभूमि हिमाचल के जिला ऊना में ब्रह्माहूति तीर्थस्थल के नाम से जाना जाता है। और आस-पास के लोग इस तीर्थ स्थल को ब्रह्मौति के नाम से पुकारते हैं। यह तीर्थ सब तीर्थों का गुरु माना जाता है। सब तीर्थों की यात्रा का फल ब्रह्ममौति पवित्र तीर्थ में दर्शन एंव स्नान से मिलता है। ऐसा लोगों का अटूट विश्वास है। संतोषगढ़ नगर से करीब 15 किलोमीटर दूर इस स्थल की आस्था अपार है। बैसाखी, सोमवती अमावस्या, सूर्यग्रहण, शिवरात्रि आदि दिवसों पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं सच्चे मन से इस स्थान के दर्शन मात्र से ही सभी तीर्थों का फल मिलता है। इस स्थल पर 13 अप्रैल बैसाखी वाले दिन स्नान का विशेष महत्व है और श्रद्वालू देश के कोने -कोने से आ कर यहां स्नान कर अपना जीवन धन्य करते हैं।

मंदिर के मंहत महेश गिरि जी महाराज ने बताया कि ब्रह्मांड के निर्माता भगवान ब्रह्मा जी ने इस स्थान पर तप किया था ओर उनकी पत्नी सरस्वती ने यज्ञ किया था। ब्रह्माजी के मंदिर के पास भगवान शिव जी का मंदिर है। कहा जाता है कि सृष्टि को रचते समय बह्मा जी ने इसी स्थान पर शिंवलिंग को प्रकट किया था। जबकि पांडवों ने अपने अज्ञात वास के दौरान ब्रह्माहूति मंदिर स्थल पर अढ़ाई सोने की सीढिय़ों का निर्माण किया था। बताया जाता है कि पांडव जब अपने अज्ञातवास के दौरान यहां पर पांच सीढिय़ों का निर्माण कर रहे थे तो उस वक्त गांव की बुजुर्ग महिला लस्सी रिडक़ने के लिए उठी तथा उसकी आवाज सुनकर पांडवों ने सोने की अढ़ाई सीढिय़ों को बनाकर ही निर्माण बन्द कर दिया था ओर पांडव यहां से चले गए। बैसाखी, सोमवती अमावस्या, सूर्यग्रहण, शिवरात्रि आदि दिवसों पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं सच्चे मन से इस स्थान के दर्शन मात्र से ही सभी तीर्थों का फल मिलता है। इस स्थल पर 13 अप्रैल बैसाखी वाले दिन स्नान का विशेष महत्व है और श्रद्वालू देश के कोने -कोने से आ कर यहां स्नान कर अपना जीवन धन्य करते हैं। ब्रह्माजी के मंदिर के पास भगवान शिव जी का मंदिर है। -एचडीएम

कई गांवों के लोग विसर्जित करते हैं यहां अस्थियां
अगर सोने की पांच सीढिय़ों का निर्माण इस स्थान पर हो जाता तो यह स्थान हरिद्वार तीर्थ स्थल के नाम से जाना जाता। फिलहाल इस स्थान को मिनी हरिद्वार के नाम से जाना जाता है और कई गांवों के लोग यही अस्थियां छोडऩे आते है ओर यह भी माना जाता है कि इस स्थान पर स्नान मात्र से ही चमड़ी के समस्त रोग दूर हो जाते है। यह भी मान्यता है कि द्रोपदी जिन छोटे-छोटे पत्थरों से यहां खेला करती थी वो इस स्थान से थोड़ी ही दूरी पर विशाल काय पत्थरों का रूप ले चुके हैं। वही इस स्थल पर एक यज्ञशाला भी है। बैसाखी वाले दिन हवन का आयोजन होता है। ब्रह्ममौति मंदिर के परिसर में भगवान राधा-कृष्ण का मंदिर भी विख्यात है। फिलहाल बैसाखी वाले दिन 13 अप्रैल को यहां विशाल मेला लगेगा।


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