विपक्षी गठबंधन और कांग्रेस की प्रासंगिकता

वायनाड ने सब गड़बड़ कर दिया। कम्युनिस्टों ने राहुल गांधी से पूछा कि आप तो पिछले दस साल से चिल्ला रहे हो कि आप की लड़ाई भाजपा वालों से है, लेकिन आप केरल में तो हमसे ही लड़ रहे हो। हम दिल्ली में आप के साथ एक मंच पर बैठ कर लम्बे-लम्बे भाषण देते हैं। मिल कर भाजपा के साथ लडऩे की हुंकार लगाते हैं, लेकिन उस सबके बावजूद आप केरल में हमसे ही लड़ रहे हैं…

भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए विपक्षी पार्टियों में जो सर्वाधिक व्याकुल प्राणी थे, उनमें से चार शिखर पर थे। नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, सोनिया गांधी और कम्युनिस्ट। प्रश्न पूछा जा सकता है कि मैंने अन्य दलों का नाम न लिख कर, उन दलों के प्रमुख व्यक्ति का नाम लिखा है, लेकिन कम्युनिस्टों के मामले में व्यक्ति का नाम न लिख कर केवल कम्युनिस्ट शब्द का प्रयोग क्यों किया है। उसका कारण है। हमारे भारत में कम्युनिस्ट सदा किसी शरीर की तलाश में रहते हैं। जब कम्युनिस्ट अपने शरीर में प्रकट होते हैं तो भारत के लोग उन्हें तुरंत पहचान लेते हैं और नकार देते हैं। इसलिए वे निरंतर किसी दूसरे शरीर, जिंदा या मुर्दा, की तलाश में रहते हैं और अपनी सुविधानुसार उसे पा भी लेते हैं। उनकी ऐसी पृष्ठभूमि में उनके किसी शीर्ष पुरुष का नाम पहचान पाना या तलाश करना बहुत मुश्किल है। उनके शीर्ष पुरुष आपस में इतने मिलेजुले हैं कि किसी को पहचान पाना ही मुश्किल है। इसलिए मैंने किसी व्यक्ति विशेष का नाम न लिख कर नंगा चिट्टा कम्युनिस्ट शब्द का प्रयोग ही किया है। अब आगे बढ़ा जाए। लेकिन हमारे आगे बढऩे से पहले ही नीतीश कुमार इंडी मोहल्ला छोड़ कर वापस अपने घर लौट गए हैं। ममता बनर्जी हैं अभी भी इंडी मोहल्ला में ही, लेकिन उस मोहल्ला के बाकी लोगों से उन्होंने बोलचाल बंद कर दी है।

उनकी पार्टी ने पश्चिम बंगाल की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं। लेकिन वैसे वे बराबर कह रही हैं कि वे इंडी के साथ मजबूती से खड़ी हैं और बंगाल को छोड़ कर बाकी सभी जगह उसका समर्थन कर रही हैं। लेकिन सोनिया गांधी इतना तो जानती हैं कि उनकी पार्टी को यदि ममता बनर्जी की जरूरत थी तो केवल बंगाल में थी। शेष भारत में, सोनिया गांधी तो क्या, ममता बनर्जी खुद भी जानती हैं कि उनकी हैसियत ही नहीं है। एक दूसरी पार्टी है जो इंडी गठबंधन में सर्वत्र विद्यमान है, लेकिन दिखाई नहीं देती। यह पार्टी अब भारत में ‘अशरीरी’ हो गई है। उसका नाम मुस्लिम लीग है। यह कांग्रेस के पैदा होने के कुछ साल बाद 1905 में पैदा हुई थी। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने इस पार्टी को पैदा करने के लिए ही बंगाल का विभाजन किया था। मुस्लिम लीग को पैदा करने के बाद बंगाल विभाजन को भी खत्म कर दिया था। 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अंग्रेजों से भारत के मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन मंडल की मांग की थी। बाद में संबंध बनते बिगड़ते गए, लेकिन कांग्रेस ने 1947 में अपनी कार्यसमिति की अंतिम बैठक में मुस्लिम लीग की भारत विभाजन की मांग का समर्थन करने के लिए ‘भारत विभाजन’ का प्रस्ताव पारित किया था। भारत विभाजन के बाद जब बचे-खुचे भारत में मुस्लिम लीग के लिए रहना मुश्किल हो गया, तो उसने अपनी शक्ल में प्लास्टिक सर्जरी करवा कर रूप बदल लिया था। उससे चेहरा तो बदल गया था, लेकिन भारत के लोग उनकी आवाज अच्छी तरह पहचानते ही हैं।

इसलिए वे बराबर चिल्ला रहे हैं। यह बदल रहे चेहरे से घूम रही वही मुस्लिम लीग है जिसने भारत का विभाजन करवाया था। लेकिन सोनिया जी का कहना है कि यह पुराने वाली मुस्लिम लीग नहीं है। यह नई ताजा मुस्लिम लीग है जिसका पुरानी मुस्लिम लीग से कोई ताल्लुक नहीं है। पता चला है कि कुछ पुराने कांग्रेसियों ने कान में बताया भी कि मैडम, आपको पुरानी वाली का पता नहीं है, क्योंकि आपकी पृष्ठभूमि इटली की है। यह मुस्लिम लीग शत प्रतिशत पुराने वाली मुस्लिम लीग ही है। लेकिन सोनिया गांधी नहीं मानी। वह उसी को सच मानती हैं जो राहुल-प्रियंका-राबर्ट वाड्रा बताते हैं। अब यह नई वाली मुस्लिम इंडी का हिस्सा है। उसका परिणाम भी सामने आने लगा है। सोनिया जी की पार्टी ने अपना जो चुनाव घोषणा पत्र जारी किया है, यदि उसको ध्यान से पढ़ा जाए, जिससे अंग्रेजी वाले ‘टू रीड बिटवीन दी लाईन्ज’ कहते हैं, तो वह काफी हद तक 1947 से पहले का मुस्लिम लीग के चुनाव घोषणा पत्र का नया संस्करण लग रहा है। अब तवलीन सिंह का कहना है कि आधा हिस्सा कम्युनिस्ट पार्टी का ही है। सोनिया गांधी जी की एक दूसरी समस्या भी है। वह मुस्लिम लीग का समर्थन तो लेना चाहती हैं, लेकिन यह नहीं चाहती कि लोग इसको जान लें। वैसे पूछा जा सकता है कि ‘गुड़ तो खाएं, लेकिन गुलगुलों से परहेज’ की इस नीति का कारण क्या है। जब अपने चुनाव घोषणा पत्र में मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र समेट लिया, अयोध्या में राम मंदिर में आने के निमंत्रण को सार्वजनिक रूप से ठुकरा दिया और मुस्लिम लीग को मंच पर भी बिठा लिया तो अब बचा क्या है? फिर यह हिचकिचाहट कैसी? यह संकट केरल के वायनाड में आया। राहुल गांधी अब उत्तर प्रदेश को छोड़ कर केरल चले गए हैं। केरल में भी मुस्लिम बहुल क्षेत्र वायनाड को उन्होंने अपने लिए चुना है। सारे देश में उन्हें लोकसभा में जाने के लिए अपनी पार्टी की विचारधारा और उसके अनुरूप मित्रों के कारण वायनाड ही सुरक्षित लगता है। यह पांच साल पहले ही स्पष्ट हो गया था जब राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश की जनता ने अमेठी में ठुकरा दिया था और वायनाड ने उन्हें संकट के उस काल में सुरक्षा चक्र प्रदान किया था। तब बहुत से राजनीतिक विश्लेषक मानने लगे थे कि राहुल गांधी अब पांच साल मेहनत करके उत्तर प्रदेश के लोगों का विश्वास जीतेंगे।

लेकिन शायद सोनिया परिवार ने यह लंबा रास्ता अख्तियार करने की बजाय वायनाड का सुरक्षा चक्र लेना ही उचित समझा। लेकिन इस बार एक झंझट हो गया। राहुल गांधी दिल्ली से वायनाड तक की लंबी दूरी तय करके लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने वायनाड पहुंचे, तो स्वाभाविक ही मन में आया होगा कि शक्ति प्रदर्शन के लिए रोड शो भी कर लिया जाए। कांग्रेस पार्टी के झंडे बड़ी संख्या में तैयार कर लिए गए। स्वाभाविक है जो मुस्लिम लीग उनको सुरक्षा चक्र प्रदान करती है, उन्होंने शर्त लगा दी कि रोड शो में उनके झंडे भी बराबर लगेंगे। यह राहुल गांधी को स्वीकार नहीं था।

यदि रोड शो हुआ तो मुस्लिम लीग के झंडों के साथ ही। तब कांग्रेस ने इटली के मैकियावली को याद किया होगा। मध्य मार्ग। झंडा न कांग्रेस का लगेगा और न ही मुस्लिम लीग का। देश में शायद कांग्रेस का पहला रोड शो था जिसमें कांग्रेस के झंडों को ही मुस्लिम लीग को प्रसन्न करने के लिए, कांग्रेस के लिए ही हानिकारक मान लिया गया। लेकिन कांग्रेस की समस्याओं का हल केवल मुस्लिम लीग को प्रसन्न कर ही तो होने वाला नहीं लगता। मुस्लिम लीग खुश हुई, तो कम्युनिस्ट बोले। जैसा कि पहले ही मैंने लिखा है कम्युनिस्ट दो रूपों में हैं। पहला रूप वह जो कांग्रेस के शरीर के बीच ही घुस कर बैठा है। दूसरा रूप वह है जो शरीर से बाहर विद्यमान है। कई बार बाहर वाला शरीर प्रश्न करता है और अंदर वाला जवाब देता है। यह जवाब वही होता है जो बाहर वाले कम्युनिस्ट की हित साधना करता है। लेकिन वायनाड ने सब गड़बड़ कर दिया। कम्युनिस्टों ने राहुल गांधी से पूछा कि आप तो पिछले दस साल से चिल्ला रहे हो कि आप की लड़ाई भाजपा वालों से है, लेकिन आप केरल में तो हम से ही लड़ रहे हो। हम दिल्ली में आप के साथ एक मंच पर बैठ कर लम्बे लम्बे भाषण देते हैं। मिल कर भाजपा के साथ लडऩे की हुंकार लगाते हैं, लेकिन उस सबके बावजूद आप केरल में हमसे ही लड़ रहे हैं। सोनिया गांधी जी इसका क्या उत्तर दें? बहरहाल, कांग्रेस को पुन: अपना धरातल तलाशना चाहिए, अपनी उपयोगिता स्थापित करनी चाहिए। तभी उसका कल्याण होगा।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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