सुजानपुर में सज गया शिव-पार्वती के विवाह का मंडप

By: Apr 12th, 2024 12:55 am

रली विवाह की तैयारियां पूरी, आज बारात लेकर पहुंचेंगे शिव, कल होगा विसर्जन

निजी संवाददाता-सुजानपुर
प्रभु शिव की बारात को लेकर के आयोजक दूल्हा पक्ष ने कमर कस ली है। वही मां गौरी यानी दुल्हन पक्ष ने भी मंडप सजा दिए हैं। गीत-संगीत महिलाओं का रली विवाह में चार चांद लगा रहा है। रली पूजन के नाम से इस पर्व को लेकर एक माह पहले चैत्र संक्रांति से गीत-संगीत शुरू हो जाता है। मिट्टी से बनाई गई गौरी-शिव की मूर्तियों का पूजन चलता है। एक परिवार जहां दुल्हन की रस्म पूरी करता है वहीं दूसरा परिवार दूल्हा की रस्में रिति-रिवाज सेे निभाता है। त्योहारों को लेकर कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि रली पूजन में अविवाहित लड़कियां शिव और पार्वती की पूजा कर उनकी मूर्तियों का विवाह रचाती हैं। यह पूजन चैत्र संक्रांति से शुरू हो जाता है और एक महीने तक जारी रहता है। इसकी एक किंवदंती प्रचलित है कि कांगड़ा जनपद के किसी गांव में एक ब्राह्मण ने अपनी नौजवान कन्या रली का विवाह उससे आयु में बहुत छोटे लडक़े से कर दिया। कन्या ने इस संबंध में विरोध भी किया, लेकिन माता-पिता के सामने उसकी एक न चली। अंतत: उसे मजबूरन विवाह के लिए हां करनी पड़ी। उस समय रिश्ते माता-पिता ही तय करते थे। कन्या रली का विवाह शंकर नामक लडक़े के साथ हो गया। कन्या को घर से विदा कर दिया गया। परंपरानुसार उस कन्या का छोटा भाई जिसका नाम वस्तु था उसे छोडऩे गया।

रास्ते में एक नदी पड़ती थी। जब डोली उस नदी के पास पहुंची, तो रली ने कहारों से डोली रोकने को कहा और भाई को बुलाकर कहा जो भाग्य में लिखा था वो हो ही गया। मैं किसी को इसके लिए दोष नहीं दूंगी। अत: मैं पूरी जिंदगी अपने से आयु में छोटे पति के साथ नहीं गुजार सकती हूं। रली ने कहा आज के उपरांत जो भी कन्या चैत्र मास में शिव-पार्वती की पूजा कर उनका विवाह रचाएंगी वह मनचाहा वर पाएंगी। ऐसा कहने के उपरांत वह कन्या नदी में कूद गई। जब दूल्हे ने उसे नदी में कूदते देखा, तो उसने भी छलांग लगा दी। दोनों नदी की तेज धारा में बह गए। तब से यह त्योहार प्रत्येक गांव में छोटी अविवाहित कन्याओं द्वारा मनाया जाता रहा है, लेकिन आज की स्थिति बदल चुकी है। अब रली पूजन परंपरा बहुत कम मात्रा में मौजूद है, लेकिन सुजानपुर में आज भी कई वर्षों से रोशन लाल चौधरी इस परंपरा को निभाते आए हैं इनका परिवार बड़े शौक से इस परंपरा रीति रिवाज के मुताबिक निभा रहा है। एक माह पहले इन्होंने मां गौरी की मूर्ति का पूजन शुरू कर दिया है तथा दूल्हा पक्ष के रूप में प्रभु शिव की मूर्ति कहीं और रखी है जो कि आज बारात की तरह यहां पहुंचेगी तथा रस्में निभाई जाएंगी। 13 अप्रैल को विसर्जन कर दिया जाएगा। इस मौके पर विवाह-शादियों जैसा आयोजन किया जाता है।


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