कुछ जलवे, कुछ शिकार

By: Apr 4th, 2024 12:03 am

हिमाचल में लोकसभा चुनाव के साथ नत्थी विधानसभा उपचुनाव की तासीर में या तो जलवे करेंगे कमाल या अति महत्त्वाकांक्षा हो जाएगी शिकार। पहले जलवों का जिक्र करें, तो भाजपा की रणनीति में केंद्रीय ताकत का एहसास, आत्मविश्वास और अपनी संगठनात्मक मशीनरी का प्रदर्शन है। पार्टी कांग्रेस से कहीं आगे संगठन के साथ साज बजा रही है। उसके अधिकांश उम्मीदवार मैदान में उतर चुके हैं। कांग्रेस से आए पूर्व विधायक अपने साथ जो सामान लाए हैं, उसका प्रदर्शन परिचय दे रहा है। धर्मशाला में सुधीर शर्मा का परिचय सम्मेलन अपनी धाक में कांग्रेस की खोपड़ी में प्रश्र पैदा जरूर कर रहा है, क्योंकि पार्टी की हर तह में अब कोई न कोई उम्मीदवार टर्रा रहा है। सदमें में भाजपा के भी कई तीर हैं, लेकिन चुनावी योजना में यह पार्टी जलवों का शृंगार करने में माहिर है। हम इसी आधार पर राजेंद्र राणा के मार्फत सुजानपुर के दुर्ग में हलचल देख सकते हैं। यह दीगर है कि भाजपा के कई गवाह अब कांग्रेस में गोटियां फिट कर रहे, तो यह भी देखा जाएगा कि किस क्षेत्र में कौन अपने जलवे का हल जोत रहा है। बहरहाल जलवे से उम्मीदवारों का चयन संभव है, तो मंडी से भाजपा की उम्मीदवार कंगना रनौत में यह खासियत राष्ट्रीय चर्चा का विषय है। उम्मीदवार घोषित होने से पहले ही कंगना के बयान-कंगना के विवाद, इतने अधीर तो रहे ही हैं कि भाजपा के नाम पर कहीं भी पत्थरबाजी हो जाए। शायद इसलिए बयानों-विवादों का एक मुकाबला उनके और सुक्खू सरकार के लोकनिर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के बीच शुरू हो चुका है। जलवा इसी लोकसभा क्षेत्र में वीरभद्र सिंह के परिवार का भी रहा है, लेकिन अब यहां धीरे-धीरे कंगना बनाम प्रतिभा सिंह के बीच पार्टियों के संघर्ष से कहीं अधिक दोनों नेत्रियों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आकर टिकेगा, तो सारी परिपार्टियां फिर से लिखी जाएंगी। कंगना का बड़बोलापन और हाजिरजवाबी पर मतदाता फिदा होता है या वीरभद्र सिंह के परिवार की गरिमा चुनाव के सिर पर सवार रहती है, यह देखना रोचक होगा।

कांगड़ा से लोकसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने पत्ते नहीं खोले, लेकिन भाजपा की ओर से डा. राजीव भारद्वाज की पेशकश में वयोवृद्ध नेता शांता कुमार का जलवा जरूर देखा जा रहा है। यह दीगर है कि अब तक जलवा दिखा चुके त्रिलोक कपूर की दावेदारी पर विराम लगाकर, उनके सदा नजदीक रहे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा नए अवतरण में हैं। प्रदेश के सामथ्र्य में राजनीतिक जलवे का स्वाभाविक पुरुषार्थ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से आशावान है और अगर वह इन चुनावों में पचास फीसदी भी सफलता हासिल कर पाते हैं, तो कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति में भविष्य की अगवाई करते हुए देखे जाएंगे। इन चुनावों में हिमाचल के असली शिकारी का भी पता चलेगा। विधायकों के इस्तीफों के माध्यम से कौन किसका शिकार कर गया, इसका पता भी चुनाव की सारी कसरतें बताएंगी। शिकार की टोह में हिमाचल की राजनीति आज भी जहां खड़ी है, वहां कई चाबुक व तलवार लटके हैं। बात सिर्फ सरकार को वापस पटरी पर लाने की नहीं, बल्कि ऐसी किलेबंदी की जरूरत है जो आगे चलकर समूची राजनीति को सबक हो सकती है। ऐसे में हिमाचल के कुछ नेताओं को सूचीबद्ध करके हम या तो जलवा देख पाएंगे या उन्हें शिकार होते भी देख सकते हैं। जनता की निगाहों में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर, उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्रिहोत्री, कंगना रनौत, अनुराग ठाकुर, प्रेम कुमार धूमल, शांता कुमार, राजेंद्र राणा व सुधीर शर्मा से जुड़े कई ऐसे विषय हैं, जो उनके जलवों की आशा रखते हैं, लेकिन ये चुनाव कातिल शिकारी के नाम कहीं अधिक दर्ज होंगे। यह पहला चुनाव है जहां विकास बनाम विकास पुरुषों की शिनाख्त होगी। सुक्खू के व्यवस्था परिवर्तन के सामने पुन: जयराम ठाकुर की डबल इंजन सरकार का भेद टकराएगा, तो राष्ट्रीय राजनीति के नए अलंकार भी मैदान को समतल नहीं रहने देंगे। ये फुर्सत के चुनाव हैं और जून तक के सफर में लिखे जाएंगे।


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