विरासत कर पर बवंडर

By: Apr 26th, 2024 12:05 am

कांग्रेस में छोटे-छोटे टाइम बम होते है। वे जब भी फटते हैं, तो कांग्रेस का बड़ा नुकसान होता है। अमरीका में बसे सत्य नारायण गंगा राम पित्रोदा (सैम पित्रोदा) ऐसे ही बम हैं। वह कई संवेदनशील और राष्ट्रीय घटनाओं पर अनाप-शनाप बोलते रहे हैं। वह ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस’ के अध्यक्ष हैं। जब भी केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की सरकार बनी है, उसमें उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। मनमोहन सरकार में ही वह ‘राष्ट्रीय ज्ञान आयोग’ के अध्यक्ष थे। वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सलाहकार थे और भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार में उनका योगदान अहम रहा है। वह पार्टी का चुनाव घोषणा-पत्र लिखने वालों में एक रहे हैं। आजकल सैम पित्रोदा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के सलाहकार और रणनीतिकार हैं। यदि ऐसा शख्स, भारत के संदर्भ में, कोई बयान या परामर्श देता है, तो वह उसका ‘निजी’ कैसे हो सकता है? कांग्रेस अपना पल्ला कैसे झाड़ सकती है? सैम ने अमरीका के 6 राज्यों में लागू ‘इंहेरिटेंस टैक्स’ (विरासत कर) का उल्लेख किया है कि अमरीकी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी संपत्ति का 45 फीसदी हिस्सा बच्चों, परिजनों को मिलता है। शेष 55 फीसदी सरकार ले लेती है। यह कानून एक निश्चित आय के वर्ग पर ही लागू होता है। अमरीका के अलावा जर्मनी, स्पेन, फ्रांस, जापान और दक्षिण कोरिया आदि देशों में भी विरासत-कर की व्यवस्था है। वे देश जनता और समाज के प्रति व्यक्ति का दायित्व मानते हैं, लिहाजा उसकी संपत्ति में सामाजिक-सार्वजनिक हिस्सेदारी भी मानी जाती है।

भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, लिहाजा सैम पित्रोदा का सुझाव था कि भारत में भी इस विषय पर बहस और चर्चा होनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा-एनडीए ने तुरंत इस मुद्दे को भी लपक लिया। प्रधानमंत्री ने यहां तक टिप्पणी की कि कांग्रेस की लूट, जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी। निजी संपत्तियों को छीन कर उन्हें एक समुदाय विशेष में बांटने का मुद्दा बेहद उग्र हो रहा था, ‘विरासत-कर’ पर भी बवंडर छिड़ गया है। अब चुनाव की दिशा और लहर ही बदल गई हैं। भारत में 1953 से 1985 तक एक कानून लागू था-‘एस्टेट ड्यूटी एक्ट।’ उसके तहत 20 लाख रुपए या अधिक की संपत्ति पर 85 फीसदी तक टैक्स देना पड़ता था। वह विरासत-कर का ही एक रूप था। 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस कर को निरस्त किया, लेकिन कांग्रेस और भाजपा के वित्त मंत्री इस कर की पैरवी करते रहे। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेतली ने 2018 में कहा था कि विरासत-कर से विदेशों में अस्पतालों, विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थानों को वित्तीय अनुदान मिलते रहे हैं, लिहाजा इस कर पर विमर्श किया जाना चाहिए। मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बजट के दौरान ‘इंहेरिटेंस टैक्स’ का उल्लेख किया था। फिलहाल भारत में इस कर-व्यवस्था के प्रावधान नहीं हैं। किसी पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र में भी यह एजेंडा घोषित नहीं किया गया है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस के मंसूबों पर सवाल करते हुए कहा है कि कांग्रेस सरकार आई, तो ‘विरासत-कर’ लगाएगी। आपके मकान-दुकान, खेत, जमीन और धन, सब कुछ छीन लिया जाएगा। आपके बच्चों और परिजनों का ‘पैतृक संपत्ति’ में हिस्सा आंशिक रह जाएगा।

क्या आप ऐसा होने देंगे? हालांकि लोगों की संपत्ति के सर्वे वाले बयान पर राहुल गांधी ने अब यह कहा है कि वह जानना चाहते हैं कि देश में कितना अन्याय है। उन्होंने सफाई दी है कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा कि वह ‘वेल्थ सर्वे’ कराएंगे। कानूनन यह संभव नहीं है। उद्योगपतियों पर ‘वेल्थ टैक्स’ 2015 के बजट में ही हटा लिया गया था। उसके स्थान पर ‘सुपर रिच’ नामक अधिभार उन लोगों पर लगाया गया, जिनकी सालाना आमदनी एक करोड़ रुपए से ज्यादा है। दरअसल भारत अमरीका नहीं हो सकता। यदि एक नागरिक जीवन-भर करों का भुगतान करता है और फिर जीवन के अंत तक कुछ अर्जित कर पाता है, तो वह उसके अपने परिवार के लिए होना चाहिए। समाज और देश को तो उसने जीवन-भर दिया ही है।


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