बुरांस के फूलों से गुलजार हुई शिमला-सिरमौर की वादियां

By: Apr 30th, 2024 12:14 am

सुरेश सूद—चौपाल, नेरवा
जिला शिमला और सिरमौर की वादियां इन दिनों पहाड़ों पर खिले बुरांस के फूलों से गुलजार है। कई स्थानों पर सडक़ों के किनारे खिले ये फूल राह गुजरते लोगों का बरबस ही मन मोह लेते हैं। बुरांस का फूल जितना सुंदर है, उतना ही औषधीय गुणों से भरपूर है। यह आम तौर पर हिमाचल, उत्तराखंड और काश्मीर के पहाड़ों में 1500 से 3500 मीटर की ऊंचाई पर होता है। बुरांस का पौधा सदाबहार प्रजाति का पौधा है तथा यह बारह माह हरा रहता है। पेड़ों पर गुच्छों में लगे बुरांस के फू अत्यंत सुंदर नजर आते हैं। बुरांस जहां पड़ोसी राज्य उत्तराखंड का राज्य पुष्प है वहीँ यह नेपाल का राष्ट्रीय पुष्प है । बुरांस का वानस्पतिक नाम रोडोडेन्ड्रोन अरबोरियम है और अंग्रेजी में इसे रोज ट्री भी कहा जाता है। पहाड़ों में इस पुष्प का दैविक महत्त्व भी है। यह मार्च माह से मई माह तक खिलता है। इसे अप्रैल महीने में बैसाखी वाले दिन कई देवी देवताओं को चढ़ाया जाता है। बैसाखी वाले दिन जिला शिमला के साथ-साथ जिला सिरमौर और पड़ौसी राज्य उत्तराखंड के चूड़धार स्थित आराध्य देवता शिरगुल देवता मंदिर के कपाट खुलने पर सर्वप्रथम देवता का स्नान करवाने के बाद बुरांस के फूलों से श्रृंगार किया जाता है।

इसी प्रकार क्षेत्र के अन्य आराध्य लकड़वीरए महासू एवं जिला सिरमौर की आराध्य देवी मां भंगायणी के मंदिरों में भी बुरांस के फूलों का श्रृंगार किया जाता है। इसके आलावा बुरांस के फूलों की चटनी, जूस और शरबत और स्क्वैश आदि भी बनाया जाता है। कुछ लोग इसके फूलों को सूखा कर रख लेते हैं तथा पूरा साल इनका चटनी में इस्तेमाल करते है। यही नहीं, बुरांस के फूलों का आयुर्वेदा में औषधीय महत्त्व भी बताया गया है । बुरांस के फूल और पत्तियां मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्दय रोग, सिरदर्द, सांसों से जुड़े रोग, दाद खाज और खुजली आदि बीमारियों में औषधि के रूप में कारगर माने गए हैं। पहाड़ों में बुरांस के फूल आजीविका का साधन भी बन चुके है। कुछ लोग जहां मार्च से मई माह तक इन फूलों का शरबत बनाकर आजीविका कमा रहे है, वहीं पंचायत स्तर पर भी इसे आजीविका का साधन बनाया जा रहा है। हालांकि कई पंचायतों में स्वयं सहायता समूहों को बुरांस के फूलों की चटनी और शरबत आदि बनाने का प्रशिक्षण देकर गृहिणियों की आर्थिकी को मजबूत बनाने के प्रयास किया जा रहा है, परंतु यदि जिन क्षेत्रों में बुरांस होता है, उन सभी ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष कर महिलाओं को इस से बनने वाले उत्पादों का प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें प्रेरित किया जाए तो यह लोगों की आजीविका का एक बड़ा साधन बन सकता है। बहरहाल यदि सरकार थोड़ा सा प्रयास करे तो कुदरत द्वारा पहाड़ों को बख्शा गया यह खूबसूरत उपहार महज एक सजावटी वस्तु न रहकर लोगों की आजीविका में मुख्य भूमिका निभा सकता है।


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