धर्म प्रचार के लिए

By: Apr 6th, 2024 12:14 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…
दस फरवरी को स्वामी जी हैदराबाद पहुंचे। वहां पहुंचकर उनका काफी स्वागत किया गया। 17 फरवरी को स्वामी जी हैदराबाद की मित्र मंडली व भक्तगणों से विदा लेकर फिर मद्रास लौट आए। इसी बीच स्वामी जी ने एक सपना देखा कि श्री रामकृष्ण देव दिव्य देह धारण कर समुद्र के किनारे विस्तीर्ण महासागर के ऊपर पैदल चले जा रहे हैं तथा उन्हें पीछे-पीछे आने का हाथ से संकेत कर रहे हैं। इस सपने से मानो सारी दुविधा, संकोच व संदेह दूर हो गए। स्वामी जी अमरीका जाने के लिए तैयार हो गए। किंतु एकाएक खेतड़ी के महाराज के प्राइवेट सेक्रेटरी मुंशी जगमोहन लाल खेतड़ी से आ पहुंचे। उन्होंने स्वामी जी से कहा, स्वामी जी, दो वर्ष पहले आप खेतड़ी पधारे थे और चलते समय महाराज को आपने पुत्र होने का आशीर्वाद दिया था। आपका आशीर्वाद सफल हुआ। राज्य के उत्तराधिकारी का जन्म हुआ है। और आनंदोत्सव में आपको बुलाने के लिए महाराज ने आपकी सेवा में भेजा है। आप चलने की कृपा करें। स्वामी जी बोले, लेकिन मैंने अमरीका जाने का मन बना लिया है, जिसका कुछ भी प्रबंध अभी नहीं हो पाया है। स्वामी जी, चाहे एक दिन के लिए खेतड़ी चलें, नहीं तो महाराज बहुत नाराज होंगे। अमरीका जाने की तैयारी के लिए आपको किसी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, महाराज खुद व्यवस्था कर देंगे। सिर्फ आप मेरे साथ चलें। मजबूर होकर स्वामी जी को खेतड़ी जाना पड़ा। जब वो खेतड़ी पहुंचे तो शाम हो चुकी थी, स्वामी जी के सम्मान में पूरे महल को दीपावली की तरह सजाकर दीपकों से प्रकाशित किया गया था। चारों ओर नाच गान का उत्सव चल रहा था।

महाराज अपने मेहमानों और आसपास के राजाओं के साथ दरबार में बैठे थे, जैसे ही पहरेदारों ने स्वामी जी के आने की खबर दी, सारी सभा उठकर खड़ी हो गई। महाराज ने देखते ही स्वामी जी के चरणों में अपना सिर रख दिया। स्वामी जी ने आशीर्वाद देकर उन्हें उठाया, उसके बाद महाराज ने सभी मेहमानों से स्वामी जी का परिचय करवाया और खुद को पुत्र जन्म का वरदान देने की बात सुनाई और यह भी बताया कि स्वामी जी सनातन धर्म के प्रचार के लिए पश्चिमी देशों में जा रहे हैं। यह सुनकर सभी लोग बड़े खुश हुए। इसके साथ ही महाराज ने बच्चे को लेकर स्वामी जी के चरणों में रख दिया। स्वामी जी ने बच्चे को अनेक आशीर्वाद दिए। खेतड़ी में कुछ दिन ठहरने के बाद स्वामी जी ने महाराज से जाने की इजाजत मांगी। महाराज खुद उन्हें जयपुर तक छोडऩे आए और जगमोहन लाल को स्वामीजी के साथ मुंबई तक जाकर सब प्रबंध ठीक कर देने की आज्ञा दी। इसके बाद उन्होंने सजल नेत्रों से स्वामी जी की चरण वंदना करके विदा ली। स्वामी जी के साथ पंडित जगमोहन लाल मुंबई पहुंचे। मद्रास से उनके परम भक्त आलमसिंह पेरुमल भी आ गए थे। पी एंड ओ कंपनी के ‘पैपिनसुलर’ नाम महाराज के लिए स्वामी विवेकानंद के नाम प्रथम श्रेणी का टिकट खरीदा गया। 31 मई, 1823 को स्वामी जी मुंबई से अमरीका की ओर रवाना हुए। पेरुमल और जगमोहन लाल के नेत्र सजल हो उठे। खुद स्वामी जी की आंखें भी छलक आई थीं। मातृभूमि को छोडऩे का उन्हें भी बेहद दु:ख था। वे दोनों हाथों से अपने हृदय को दबाए हुए थे। जहाज के डेक पर खड़े हुए वो भारत की तट भूमि को निहारते रहे। – क्रमश:


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App