क्या महाशक्ति-सा जीवन स्तर?

By: Apr 9th, 2024 12:05 am

चूंकि आम चुनाव का मौसम उफान पर है, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी देश को जो गारंटी दे रहे हैं, वह यह है कि उनके तीसरे कार्यकाल के दौरान भारत विश्व की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनेगा। प्रधानमंत्री देश को आश्वस्त कर रहे हैं कि 2047 में ‘विकसित भारत’ का संकल्प पूरा करने को वह 24 घंटे, सातों दिन काम में जुटे रहते हैं। फिलहाल भारत अमरीका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अमरीका की अर्थव्यवस्था 25 ट्रिलियन डॉलर से अधिक और चीन की 19 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की अर्थव्यवस्था है। भारत का जीडीपी 3.8 ट्रिलियन डॉलर के करीब है, जबकि जापान और जर्मनी का जीडीपी 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का है। भारतीय जीडीपी की आर्थिक विकास दर जिस गति से आगे बढ़ रही है, उसके मद्देनजर 2028 तक वह जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ कर तीसरे स्थान की आर्थिक महाशक्ति बन सकता है। भारत यूपीए सरकार के दौरान विश्व की 10वीं अर्थव्यवस्था था। वहां से छलांग लगाकर वह 5वीं महाशक्ति बना है, यह एक महान उपलब्धि है। भारत के नागरिकों और उद्योगों ने ही यह खूबसूरत, गौरवपूर्ण स्थान हासिल किया है। 2014-15 में हमारी औसत विकास दर 5.9 फीसदी रही थी, जबकि 2023-24 के दौरान यह 6.8 फीसदी से भी कम रही है। हम विभिन्न सरकारों के कार्यकालों में विकास दर की तुलना नहीं करना चाहते।

यह परिस्थितिजन्य भी होता है कि विकास दर कम-ज्यादा होती रहती है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के दौरान हमारी आर्थिक विकास दर डूब कर नकारात्मक हो गई थी। भारत उन परिस्थितियों से भी बाहर निकल कर 5वीं महाशक्ति पर अडिग रहा है। यदि जापान और जर्मनी की विकास दरें मौजूदा स्तर के करीब ही रहीं, तो भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का स्थान जल्दी भी हासिल कर सकता है, लेकिन अर्थव्यवस्था के विस्तार की तरह यह मुद्दा भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि भारत का औसत जीवन-स्तर कैसा है? क्या औसत भारतीय का जीवन-स्तर एक महाशक्ति जैसा है? भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2500 डॉलर है, जो चीन की 13,000 डॉलर से बहुत कम है। 1990 के हालात और संदर्भों का आकलन करें, तो भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 369 डॉलर थी, जबकि चीन 348 डॉलर के साथ हमारी तुलना में पीछे था। आज चीन की अर्थव्यवस्था इतनी आगे है कि भारत उसे छूने की कल्पना भी नहीं कर सकता। आखिर तीन दशकों के दौरान चीन हमसे इतनी आगे कैसे निकल गया, यह एक बेहद विचारणीय सवाल है। सिर्फ ‘विकसित भारत’ के नारे उछालने से ही लक्ष्य हासिल नहीं होगा। 2047 में कौन-सा प्रधानमंत्री देश के प्रति जवाबदेह होगा? क्या वह मौजूदा प्रधानमंत्री की वैचारिक लकीर को ही आगे बढ़ाएगा? यदि भिन्न राजनीतिक दलों का प्रतिनिधि हुआ, तो कोई जरूरी नहीं कि ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को मान्यता दे। कई सवाल हैं। आज इस नारे पर चुनाव जीता जा सकता है, लेकिन यह देश के मूल विकास का प्रश्न है।

यदि आने वाले दो दशकों के दौरान भारत को ‘विकसित राष्ट्र’ बनना है और ये दशक वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज से भारत के ही दशक होने चाहिए, तो भारत को आज की ही कीमतों के मुताबिक प्रति व्यक्ति जीडीपी 10,000 डॉलर का लक्ष्य हासिल करना होगा। ये कमोबेश अपेक्षाएं हैं। विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार, भारत फिलहाल ‘निम्न मध्य आय’ वाला देश है, जबकि चीन ‘उच्च मध्य आय’ वाला देश है। चीन लगभग ‘विकसित राष्ट्र’ के कगार पर है। संभव है कि 2047 में भारत का जीडीपी 25-30 ट्रिलियन डॉलर हो और प्रति व्यक्ति आय भी काफी ज्यादा हो जाए, लेकिन जीवन-स्तर के मानक बिल्कुल भिन्न हैं। जीवन प्रत्याशा क्या है और स्वास्थ्य पर कितना खर्च हो रहा है? बहरहाल अभी तो मंजिल बहुत दूर है।


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