क्यों बदल गए प्रधानमंत्री

By: Apr 25th, 2024 12:05 am

यह लोकसभा का चुनाव है, न कि किसी धार्मिक संस्थान के लिए चुनाव कराया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी को सांप्रदायिक बयान देने को बाध्य होना पड़ा, उसकी उलट प्रतिक्रिया में करीब 2000 शिकायतें चुनाव आयोग को भेजी गई हैं। कांग्रेस ने जो 17 शिकायतें की हैं, वे इनसे भिन्न हैं। प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर आयोग क्या निर्णय लेता है, उससे उसकी निष्पक्षता और विश्वसनीयता जुड़ी है। 2019 के आम चुनाव के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ 6 शिकायतें दर्ज की गई थीं, लेकिन चुनाव आयोग ने उन्हें ‘क्लीन चिट’ दे दी। इस पर चुनाव आयोग की तीखी आलोचना की गई थी। हालांकि मतदान और मतदाता से जुड़े ‘भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951’ में ऐसी धाराएं भी हैं, जिनके तहत ऐसी शिकायतों पर दंडनीय कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन हमारी व्यवस्था ‘दंतहीन’ है। आज एक बार फिर मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन की याद आ रही है, जिन्होंने साबित कर दिया था कि चुनाव आयोग के पास हथियार, अधिकार और पैने दांत भी हैं। वह सत्ता-पक्ष का ‘पायदान’ नहीं है। बहरहाल इन शिकायतों के निपटारे से अहम देश के प्रधानमंत्री का व्यक्तित्व है। वह समूचे राष्ट्र के हैं, तो सभी धर्मों, संप्रदायों, नस्लों, मतों, लिंगों और भाषाओं के भी हैं। बेशक उनका निजी धर्म और आस्था हिंदुत्व से जुड़ा है, लेकिन जब वह देश को संबोधित कर रहे होंगे या आह्वान कर रहे होंगे, तो वह पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष होंगे। प्रधानमंत्री किसी एक धर्म के प्रचारक या समर्थक नहीं हो सकते। दरअसल प्रथम चरण के कम मतदान के बाद प्रधानमंत्री मोदी की जुबां, भाषा, आह्वान और तेवर बदल गए हैं। आजकल प्रधानमंत्री राम मंदिर, काशी और ब्रज, रामनवमी, हनुमान चालीसा, मंगलसूत्र और हिंदू बनाम मुसलमान के मुद्दों पर वोट मांग रहे हैं।

अलबत्ता प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 10-साला कार्यकाल के दौरान अधिकतर विकास, 5वीं से तीसरी वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतत: 2047 तक ‘विकसित भारत’ की बात कही है। दुनिया में भारत की हैसियत की व्याख्याएं की हैं। इस बार 2024 का जनादेश वह ‘विकसित भारत’ का संकल्प हासिल करने की रूपरेखा तैयार करने के लिए मांग रहे हैं। अचानक यह बदलाव क्यों आया कि देश के प्रधानमंत्री राम नाम, श्रीकृष्ण जन्मभूमि और हनुमान चालीसा की चिंता करने लगे हैं और देश की करीब 15 फीसदी मुस्लिम आबादी को ‘घुसपैठिया’ करार देने लगे हैं। क्या प्रधानमंत्री भाजपा के कट्टर और सनातन मतदाता के समर्थन के लिए बदल रहे हैं? प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था, विकास दर, विश्व की आर्थिक महाशक्ति, विश्व का सबसे विशाल मैन्यूफैक्चरिंग हब, सेमीकंडक्टर चिप्स का निर्माता, विमान और हेलीकॉप्टर निर्माण में आत्मनिर्भरता, जी-20, जी-7, सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता आदि महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों को या तो भूल गए हैं अथवा नेपथ्य में डाल दिया है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला गैस, नल में जल, शौचालय, जन-धन खाते, बिजली, चमकदार राजमार्गों, विश्वकर्मा योजना, कौशल विकास, 220 करोड़ मुफ्त कोरोना टीकों आदि का जिक्र भी बहुत कम करते हैं। ऐसा लगता है मानो किसी ने ‘दहशत का बटन’ दबा दिया है और प्रधानमंत्री को हिंदुत्व पर ज्यादा आक्रामक होना पड़ा है।

शायद प्रधानमंत्री को एहसास हो गया है कि विकास और बढ़ोतरी के मुद्दे पर वोट कम मिलेंगे तथा आक्रामक धार्मिकता से धु्रवीकरण होगा और बहुसंख्यकों के बहुमत के वोट भाजपा-एनडीए के पक्ष में आएंगे! प्रथम चरण के मतदान के ठोस संकेत, अपने-अपने माध्यमों से, मिल चुके हैं। भाजपा अब भी दौड़ में सबसे आगे है। कई सीटों पर मुकाबले बेहद कांटेदार हैं। अलबत्ता भाजपा के चेहरे से 400 पार की खुशी कुछ गायब लग रही है। मोदी-विरोधी लहर की खुशी विपक्ष के चेहरों पर भी मद्धिम पड़ गई है। मतदान अब भी कम हो सकता है, क्योंकि दूसरे चरण की जिन 89 सीटों पर 26 अप्रैल को मतदान होना है, उसमें कमोबेश 30 सीटों पर गरम लू का मौसम होगा। क्या अब प्रधानमंत्री अपनी बदली जुबां और विषय के साथ ही मतदाताओं से वोट की अपील करते रहेंगे?


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