चक्की में काम सुस्त… कैसे टे्रन में सफर करेगा कांगड़ा

By: Apr 19th, 2024 12:14 am

कांगड़ा घाटी में रेगुलर रेलगाडिय़ां चलाने में रेल विभाग हुआ नाकाम, रेलवे स्टेशनों पर बनी इमारतें ढहने की कगार पर

राकेश सूद-पालमपुर
भारतीय रेलवे कांगड़ा घाटी रेल लाइन पर नियमित ट्रेन सेवाएं शुरू करने में विफल रहा है। बताते चलें कि जोगिंद्रनगर- पठानकोट रेलवे ट्रैक पर रेलगाड़ी की सेवाएं दो साल पहले तब निलंबित कर दी गई थी जब मानसून के दौरान पठानकोट के निकट चक्की पुल ढह गया था। हालांकि चक्की खड्ड पर पुल निर्माणाधीन है, लेकिन काम कछुआ गति से चल रहा है और इसे पूरा होने में दो साल और लग सकते हैं। इससे पहले रेलवे विभाग ने नूरपुर और पपरोला के बीच ट्रेन सेवाएं शुरू की थीं, लेकिन कुछ समय बाद इन्हें भी बंद कर दिया गया। वर्तमान में मात्र दो ट्रेन सेवाएं कोपर लाहड़ से पपरोला-बैजनाथ रेलवे स्टेशन तक दिन में अप डाउन करती हैं। गौरतलब है कि भारतीय रेलवे ने पिछले 94 वर्षों में इस ट्रैक पर एक ईंट भी नहीं जोड़ी है। इस नैरोगेज लाइन को ब्रॉड गेज लाइन में बदलने के लिए बनाई गई कई योजनाएं फाइलों तक ही सीमित होकर रह गई हैं। कांगड़ा घाटी में पिछले कई वर्षों में जनसंख्या और पर्यटक यातायात में कई गुना वृद्धि देखी गई हैए लेकिन रेलवे विभाग स्थानीय लोगों और पर्यटकों की उम्मीदों पर खरा उतरने में विफल रहा है।

बताते चलें कि दो साल पहले जोगिंद्रनगर-पठानकोट रूट पर हर दिन सात ट्रेनें चलती थीं। उचित मरम्मत और रखरखाव के अभाव में रेलवे स्टेशनों पर बनी इमारतें और आवासीय क्वार्टर ढहने के कगार पर हैं। पिछले कुछ वर्षों में रेल पटरियों की हालत भी बद से बदतर हो गई हैए इसलिए इस ट्रैक पर कोई हाई स्पीड या एक्सप्रेस ट्रेनें शुरू नहीं की गई हैं। ट्रेनों के डिब्बों की बात करें तो ज्यादातर कोचों में पंखे और लाइटें खराब हैं। कांगड़ा घाटी में नैरोगेज रेलवे लाइन इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन इन दिनों यह रेलवे लाइन खराब स्थिति में है, जिसका मुख्य कारण भारतीय रेलवे विभाग की उदासीनता है। संबंधित विभाग ने जोगिंद्रनगर से पठानकोट के इस 164 किलोमीटर लंबे ट्रैक को ब्रॉड गेज में बदलने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है। अंग्रेजों द्वारा 1927 में इस रेल मार्ग का कार्य शुरू किया था तथा 1929 मे दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ केवल मैनपॉवर के चलते इस कार्य को पूरा कर लिया गया था। शुरू में इस रेल सेवा को चलाने के लिए स्टीम इंजन का प्रयोग होता था। लेकिन 1972 में डीजल इंजन का प्रचलन शुरू हो गया था। -एचडीएम

दो साल पहले ट्रेक पर दौड़ती थी सात ट्रेनें
ऐसा कहा जाता है कि इस ट्रैक को बिछाने का मुख्य उद्देश्य जोगिंद्रनगर में उत्तर भारत के पहले जलविद्युत बिजलीघर की स्थापना के लिए भारी उपकरण ले जाना था। दो साल पहले, इस मार्ग पर हर दिन सात ट्रेनें चलती थीं, जो नूरपुर, जवाली, ज्वालामुखी रोड, कांगडा़, नगरोटा बगवां, चामुंडा, पालमपुर, बैजनाथ और जोगिंद्रनगर जैसे शहरों से गुजरने वाले 33 स्टेशनों को कवर करती थीं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App