हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा : 54

By: May 4th, 2024 7:52 pm

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-54

हिमाचल का कहानी संसार

विमर्श के बिंदु

1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष

लेखक का परिचय

नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता। पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।

डा. हेमराज कौशिक
अतिथि संपादक
मो.-9418010646

-(पिछले अंक का शेष भाग)
‘अंतिम किरण’ में कहानीकार ने यह चित्रित किया है कि जाति, संप्रदाय, वर्ग भेद, गांव की राजनीति में प्रवेश करने के कारण विद्वेष की आग इस सीमा तक पहुंच गई है कि समाज को एक सूत्र में बांधकर समाज सुधार के लिए कृतसंकल्प लोगों के विरुद्ध प्रतिगामी सोच वाले व्यक्ति षड्यंत्रों और दुर्भिसंधियों से उन्हें अपने मार्ग से हटाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ‘सपना टूट गया’ में गांव के संबंध में यह धारणा कि भारत की आत्मा गांव में निवास करती है, उसका खंडन किया गया है। नगर बोध के फलस्वरूप गांव में भी विद्वेष, ईष्र्या, जातिवाद, स्वार्थ और मिथ्या अहंकार की दूषित प्रवृत्तियां उत्पन्न हो गई हैं। ‘गंगा गए हाड्ड’ कहानी में यह चित्रित किया है कि व्यक्ति जिन लोगों की सहायता करता है, उनकी स्वार्थी दृष्टि कई बार सहायता करने वाले को मुसीबत में डाल देती है। ‘कितने पतझड़’ भी मार्मिक कहानी है। इसमें नारी की नियति और दशा का चित्रण करने के साथ माता-पिता के प्रति संतान के निर्मम व्यवहार का चित्रण है। कहानीकार ने यह सवाल उठाया है कि क्या मां इसी दिन के लिए अपने बच्चों को जन्म देती है, वे बुढ़ापे में कसाइयों की तरह उसकी पिटाई करें। ‘वरसी भोज’ में कहानीकार ने मृत व्यक्ति के प्रति लोगों के विविध दृष्टिकोणों का चित्रण किया है। जयप्रकाश की बरसी पर आयोजित भोज में सिमरन उनके उपकार को मानते हुए भी उनके निजी जीवन के रहस्यों को उद्घाटित करता है। ‘मुखाग्नि’ रोमेंटिक बोध की मार्मिक कहानी है जिसमें बाल्यकालीन प्रेम के किशोरावस्था तक स्वाभाविक रूप में बढऩे और फिर उसके समाप्त होने का चित्रण है। गोपी और भागों का निश्छल प्रेम नैसर्गिक रूप में गांव में साथ रहने से उत्पन्न होता है, वह इस प्रेम को हृदय से अनुभव करते हैं, परंतु उसे परिभाषित नहीं कर पाते। कहानीकार ने इस कहानी में यह प्रतिपादित किया है कि वय:संधि काल का प्रेम जिसमें भावी जीवन के सपने थे, वे बलात्कार की दुर्घटना और मां-बाप के गलत निर्णय से ध्वस्त ही नहीं होते, अपितु उनके जीवन को भी दारुण परिस्थितियों में डालकर ध्वस्त करते हैं।
भगवान देव चैतन्य की कहानियों से ज्ञात होता है कि जीवन की छोटी-छोटी घटनाएं, बातें और अनुभव हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। लेखक ने रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाले दुखों, तकलीफों, समस्याओं, व्यवस्था की विसंगतियों और संबंधों की रिक्तता को लेकर कहानियों का तंतु विन्यास निर्मित किया है। उनकी कहानियों में कृत्रिमता, प्रतीकों की जटिलता और प्रदर्शनप्रियता नहीं है, अपितु सहजता और कलागत ईमानदारी है।

विवेच्य अवधि में बद्री सिंह भाटिया के सात कहानी संग्रह डीएनए (2011), लोगों को पता होता है (2012), आवाज (2015), प्रेत संवाद (2015), धूप की ओर (2016), पाज्जे के फूल (2018), बडिय़ां डालती औरतें और शुभांगी कथा (2019) प्रकाशित हैं। बद्री सिंह भाटिया ने कहानियों में इक्कीसवीं सदी की समकालीन समस्याओं को रचना का विषय बनाया है। उनकी कहानियों में किसी विमर्श का आग्रह नहीं है। हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण परिवेश और पृष्ठभूमि में उन्होंने समाज में व्याप्त विसंगतियों, विडंबनाओं को मूर्तिमान किया है। भारतीय समाज में व्याप्त जाति विधान, सामाजिक वैषम्य, सामाजिक अंधविश्वासों और रूढिय़ों को केंद्र में रखकर उन्होंने बहुत सी कहानियों का सृजन किया है। सामाजिक जीवन के विविध पक्षों के साथ राजनीतिक जीवन की विद्रूपताओं को भी कहानियों का प्रतिपाद्य बनाया है। ‘डीएनए’ शीर्षक कहानी संग्रह में उनकी बारह कहानियां- मानसिंह का चिमटा, यहां कोई नहीं रहता, डीएनए, कंपनी के नौकर, नंबर टू सिंड्रोम, लाजवंती, वक्त बदल गया है, रोबोट, बालतोड़, भले घर की लडक़ी, ताजा हवा और घुग्घू संग्रहीत हैं। ‘मानसिंह का चिमटा’ में आज की पुलिस व्यवस्था और राजनीति की दुरभिसंधियों का चित्रण है। ‘यहां कोई नहीं रहता’ में गांव से शहर की ओर पलायन से ग्रामीण जीवन में व्याप्त नैराश्य का अंकन है। ‘डीएनए’ संग्रह की शीर्षक कहानी में भारतीय समाज में व्याप्त जाति विधान और पुरातन प्रतिगामी परंपराओं और रूढिय़ों का प्रतिकार है। ‘कंपनी का नौकर’ व ‘रोबोट’ आदि कहानियों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से ग्रामीण जीवन की समस्याओं का, विशेष रूप से किसानों की कठिनाइयों का चित्रण है। ‘रोबोट’ में मशीनीकरण, भूमंडलीकरण और बाजारवाद की सर्वग्रासी स्थितियों का निरूपण है।

‘लोगों को पता होता है’ शीर्षक कहानी संग्रह में तेरह कहानियां- रास्ता कटने के नाम पर, वह मेरे भीतर है, उसका रोना, खारिश, लोगों को पता होता है, ब्रह्मफांस, कितने दिन, लकड़बग्घा, गलत पते की चि_ी, क्रशर, विदाई, अवांछित और सुंदर का सपना संगृहीत हैं। बद्री सिंह भाटिया की इस संग्रह की सुंदर सपने, कितने दिन, लकड़बग्घा, गलत पते की चि_ी, क्रशर आदि कहानियां सीमेंट उद्योग की स्थापना के लिए उद्योगपतियों द्वारा ग्रामीण कृषकों की भूमि का अधिग्रहण करने, निर्धनता के कारण किसानों द्वारा पैसे के लालच में जमीन बेचना, भूस्वामियों की मानसिकता, कंपनी अधिकारियों और भूमि बेचने के लिए विवश करने वाले बिचौलियों की कूटनीतियां और अवसर पाकर दोनों ओर धनार्जन करना आदि अनेक स्थितियां इन कहानियों में रेखांकित की गई हैं। लेखक ने निकट अनुभवों से उन सभी स्थितियों का सूक्ष्मता से अंकन किया है जिनकी वजह से भूस्वामी मजदूर बनने के कगार पर पहुंचा है। ‘वह मेरे भीतर है’ व ‘खारिश’ आदि कहानियां ग्रामीण जीवन में व्याप्त अंधविश्वासों, सांस्कृतिक त्योहारों के प्रति उत्साह और विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपरागत विश्वासों को अनावृत करती हैं। ‘अवांछित’ और ‘विदाई’ जैसी कहानियां सेवानिवृत्ति के अनंतर वर्षों बाद गांव लौटने पर अवांछित और उपेक्षणीय स्थिति को निरूपित करती हैं। ‘ब्रह्मफांस’ मानवीय दुर्बलताओं, दांपत्य संबंधों की परस्पर टकराहट और झीने जुड़ाव को व्यंजित करती है। समाज में लोग किन्हीं अनचीन्हे सूत्रों के कारण बिखर करके भी परस्पर संबद्ध रहते हैं। कभी ऐसी स्थिति के कारण हास्य के पात्र बनते हैं तो कभी प्रेम का धागा कहीं न कहीं जुड़ा रहता है। ‘उसका रोना’ शीर्षक कहानी भी दांपत्य संबंधों के तनाव, टकराहट, विघटन और अंतर्विरोधों की कहानी है जिसमें पति घर छोडक़र किसी अन्य स्थान पर स्थित अपनी जमीन पर अलग रहता है। परिवार के रहते हुए भी जीवनपर्यंत एकाकी जीवनयापन करता है। जीवनपर्यंत पृथक रहने पर उसकी मृत्यु अकेले ही होती है। मृत्यु के अनंतर उसका शव कई दिनों तक एकाकी घर में सड़ता रहता है। जब ज्ञात होता है तो उसका परिवार उपस्थित होता है। उसकी मृत्यु पर उसकी पत्नी दहाड़ मार कर रोती है। कहानीकार ने प्रश्न उठाया कि पत्नी का इस प्रकार का रोना-धोना पति वियोग की पीड़ा को लेकर है अथवा समाज को दिखाने का नाटक है। कहानीकार को ग्रामीण जीवन और परिवेश की गहरी पकड़ है। ग्रामीण जीवन के तीज त्योहारों, संस्कारों, अंधविश्वासों और रूढिय़ों को उन्होंने जीवंतता और सूक्ष्मता से उभारा है। ‘आवाज’ में बद्री सिंह भाटिया की तेरह कहानियां- हूक, लौटा दो मेरा मान, छलांग, पितृ दोष, वचनबद्ध, मिस कॉल, सियाराम की जै, पक्का घर, नया हलबाह, घाट वालों की बहू, एक यात्रा डरी सी और आवाज संगृहीत हैं। प्रस्तुत संग्रह की कहानियों में पर्वतीय जीवन की विषमताएं, विकट परिस्थितियां और दुश्वारियां कहानीकार ने नितांत प्रामाणिक अनुभवों के साथ उभारी हैं। इन कहानियों में सामाजिकार्थिक परिवेश, सामाजिक विषमताएं और मानवीय संबंधों का यथार्थ उभर कर सामने आया है। बद्री सिंह भाटिया की इन कहानियों में कथा रस, कथा की प्रस्तुति में वर्णनात्मकता और संवाद कौशल अनूठा है।

‘प्रेत संवाद’ कहानीकार भाटिया की पूर्व प्रकाशित चर्चित कहानियों का चयनित कहानी संग्रह है। इसमें चौदह कहानियां- सालगिरह, पीतल का फूटा, प्रेत संवाद, और वह गीत हो गई, लोग फूलों को प्यार नहीं करते, कंपनी के नौकर, डीएनए, उसका रोना, मुश्तरका जमीन, छोटा पड़ता आसमान, अंतराल, लकड़बग्घा, लोगों को पता होता है और पितर दोष संगृहीत हैं जिनमें उनकी कहानी कला के विविध रंगों को देखा जा सकता है। ‘धूप की ओर’ शीर्षक कहानी संग्रह में ग्यारह कहानियां- बची हुई आदमीयत के, धूप की ओर, बलि, कर्म जली, चुड़ैल बावड़ी, सुबह होने वाली है, आग, बैल बनी बेटियां, शायद, आंखें और उल्टे रास्ते संगृहीत हैं। प्रस्तुत संग्रह की कहानियां समकालीन जनजीवन, सामाजिक-राजनीतिक परिवेश और परिस्थितियों का यथार्थ विविध छवियों के साथ प्रस्तुत करती हैं। आधुनिक जीवन की विसंगतियां, ग्रामीण समाज की पीड़ा, नारी नियति से संबद्ध कथा सूत्र और उनका कलात्मक रूपांतरण, भाषा की सहज स्वाभाविकता, जीवन और आंचलिक जीवन तथा भाषा की खनक पाठक को रससिक्त करने में सहायक है। खंड-खंड अनुभव उनकी कहानियों के विषय बनकर निजी शिल्पगत विशिष्टताओं के साथ उभर कर सामने आए हैं। ‘बची हुई आदमीयत’ शीर्षक कहानी में कहानीकार ने वर्तमान परिवेश में मानवता के क्षरण को पुलिस की संवेदनशून्यता और ग्रामीण समाज तथा निकट संबंधियों की भी संवेदनशून्यता एक युवती से हुए बलात्कार और हत्या के संदर्भ में उद्घाटित की है। हत्या की शिकार पुत्री के पिता को पोस्टमार्टम के लिए मृत बेटी को अकेला ही यातायात की असुविधाओं के अभाव में गांव से दूर अस्पताल में ले जाना पड़ता है। उसके साथ कोई नहीं जाता है। उस समय किसी की संवेदनशीलता जागृत नहीं होती। परंतु राह में कोई ऐसा भी अनजान व्यक्ति मददगार बनकर आता है। ऐसे असंवेदनशील समय में इनसानियत कहीं न कहीं अभी जिंदा है, यह कहानीकार दिखाना चाहते हैं।

भाटिया की कहानियों के कैनवस अपना स्वरूप निर्मित करते हुए लंबे होते जाते हैं और कहानियों का आकार ग्रहण करती चलती है। कई कहानियों की कथा भूमि सीमित परिधि में भी अपने प्रयोजन की अभिव्यंजना में सक्षम रही है। भाटिया की कुछ कहानियों में मानवीय संवेदना की विवेचना के लिए कहन शैली के प्राचीन बेताल कथा प्रसंग की प्रविधि अपनाई गई है। ‘पाज्जे के फूल’ में बद्री सिंह भाटिया की तेरह कहानियां-गोरखू चाचा, पावर ऑफ अटॉर्नी, शुचिता के सवाल, ऋण मुक्ति, पाज्जे के फूल, लोग सच कहां बोलते हैं, इस महाकाल में, एक लेखक की व्यथा-कथा, दायरों के भीतर, वह रात बहुत लंबी थी, फिर किसी और जगह, डेपुटेशन और एक बार फिर संगृहीत हैं।

-(शेष भाग अगले अंक में)

पत्रिका/पुस्तक समीक्षा

बाणेश्वरी का खूबसूरत गुलदस्ता

साहित्य और संस्कृति को समर्पित पत्रिका ‘बाणेश्वरी’ का जनवरी-मार्च 2024 अंक ऋतुराज बसंत विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ है। यह अंक कहानियों, कविताओं, साहित्यिक व ऐतिहासिक चर्चाओं से भरपूर गुलदस्ता बन गया है। हिमाचल कला, संस्कृति व भाषा अकादमी की अनुदान योजना के तहत इस विशेषांक का प्रकाशन हुआ है। पत्रिका के मुख्य संपादक डा. गौतम शर्मा ‘व्यथित’ हैं, जो हिमाचल के प्रसिद्ध साहित्यकार भी हैं। ‘भाषा संवाद का सौंदर्य’ नामक संपादकीय में कहा गया है, ‘हम चकित होते हैं, निरक्षर महिलाओं या विशेष वर्ग के ऐसे संवाद सुनकर जिनमें सादृश्य विधान के विलक्षण उदाहरण होते हैं। अत: आवश्यकता है हम इस भाषा धरोहर को भी संजोने के प्रयास करें। रचनाधर्मिता के निर्वाह में इनको जगह दें। अपनी भाषा धरोहर का स्वयं भी संरक्षण करें और वर्तमान पीढ़ी को भी प्रेरित करें। ऐसे साझा प्रयोग करें। भाषा-संवाद सौंदर्य का संरक्षण करें।’ इस अंक में पहाड़ी व हिंदी कविताएं तथा इन दोनों भाषाओं में अनेक $ग•ालें भी विशेषांक की शोभा बढ़ा रही हैं। प्रभात शर्मा, अनीता शर्मा, पीपी सिंह, नवीन शर्मा, अशोक दर्द, ललित मोहन शर्मा, सुरेश भारद्वाज निराश, युगल डोगरा, सुमन बाला, जग्गू नौरिया, प्रताप जरियाल, द्विजेंद्र द्विज, चंद्ररेखा ढडवाल, कुशल कटोच, गोपाल शर्मा, दुर्गेश नंदन, रमेश चंद्र मस्ताना, काव्य वर्षा, कश्मीर सिंह, पंकज दर्शी, कमलेश सूद, डा. प्रत्यूष गुलेरी, पवनेंद्र पवन, शक्ति चंद राणा, सुनैनी शर्मा, लोकेश नंदन, स्वर्ण कांता प्रेम, राजीव त्रिगर्ती, कंवर करतार, मोनिका शर्मा सारथी, अदिति गुलेरी, रवींद्र कुमार ठाकुर, नीलम शर्मा, कुलभूषण उपमन्यु, नवीन शर्मा नवीन, नलिनी विभा नाजली, हरिकृष्ण मुरारी, आशा शैली और नवनीत शर्मा की रचनाओं ने पाठकों को आह्लादित करने की कोशिश की है। वल्लभ डोभाल पर एक पुस्तक की गौतम शर्मा व्यथित ने रोचक समीक्षा की है। पहाड़ी उपन्यास जौंडा का विश्लेषण संतोष कुमारी ने किया है। प्रोफेसर चंद्रवर्कर राजा संसार चंद का इतिहास बता रहे हैं। रंगमंच को समर्पित रहे कमल हमीरपुरी पर एक आलेख भी पाठकों का ध्यान आकर्षित करता है। पहाड़ी कवि संसार चंद प्रभाकर पर भी कलम कुछ लिख रही है। मोनिका शर्मा की भीखू कहानी भी पाठकों का मनोरंजन करेगी। मीनाक्षी दत्ता ने अपनी साहित्यिक चर्चा से पाठकों का दिल जीतने की कोशिश की है। इसके अलावा भी पत्रिका में बहुत कुछ रोचक है। -फीचर डेस्क

विश्लेषणात्मक ग्रंथ है ‘उपन्यासकार : डा. धर्मपाल साहिल’

लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार पद्मश्री प्रो. (डा.) हरमहेंदर सिंह बेदी, जो आजकल सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी हिमाचल प्रदेश में कुलपति के पद पर आसीन हैं, उन्होंने जहां पंजाब के हिंदी साहित्य को राष्ट्रीय पटल पर सम्मान योग्य स्थान और पहचान स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है, वहीं पंजाब के कई हिंदी साहित्यकारों की रचनाधर्मिता को प्रोत्साहित करने और पहचान दिलाने में भी श्लाघा योग्य कार्य किया है।
इसी संद  में डा. बेदी ने, पंजाब में उपन्यास विधा को नया आयाम और पहचान देने में जुटे डा. धर्मपाल साहिल के 11 उपन्यासों को आधार बना कर ‘उपन्यासकार : डा. धर्मपाल साहिल’ नामक ग्रंथ का संपादन किया है। इस वृहद आकार पुस्तक में डा. साहिल के 11 चर्चित उपन्यासों पर हिंदी के नामचीन 76 विद्वानों के विवेचनात्मक लेखों का संकलन किया गया है। पुस्तक के आरंभ में डा. बेदी का ‘पूर्व कथन’ तथा डा. कैलाश नाथ भारद्वाज का आलेख डा. साहिल के सभी उपन्यासों पर विश्लेषणात्मक विहंगम दृष्टिपात करते हैं। अन्य 76 विद्वानों ने साहिल के डांडी, कोहकनी, मचान, सोलमेट, बाईस्कोप, समझौता एक्सप्रेस, बेटी हूं ना, खिलने से पहले, ककून, आर्तनाद आदि 11 उपन्यासों का विषयगत और शिल्पगत विश्लेषण किया है।  उन्होंने पंजाब के नीम पहाड़ी कंडी क्षेत्र की संस्कृति, सभ्याचार, ऐतिहासिक एवं भौगोलिक मान्यताओं, आर्थिकता, धार्मिकता, अनपढ़ता, अंधविश्वास जैसी स्थानीय समस्याओं को अपने उपन्यासों में स्थान देकर राष्ट्र की मुख्य साहित्य धारा से जोडऩे का प्रयास किया है। पंजाब का कंडी क्षेत्र साहित्यक दृष्टि से अछूता रहा है। इसे डा. साहिल ने ही अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से अभिव्यक्ति दी है। इसीलिए डा. बेदी सहित अन्य विद्वानों ने भी आंचलिक उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु, उपेन्द्र नाथ अश्क, जगदीश चंद्र आदि के बाद डा. धर्मपाल साहिल को आंचलिक उपन्यासकार माना है, जिन्होंने पंजाब में लिखे जा रहे हिंदी उपन्यास को साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी है।

कंडी की उपबोली पर सशक्त मुहारत, वहां की संस्कृति का सूक्ष्म ज्ञान तथा कंडी वासियों के मनोविज्ञान की गहरी समझ के साथ-साथ कथन शैली में विभिन्नता ने डा. साहिल के उपन्यास लेखन को अलग पहचान दी है। पुस्तक में हिंदी साहित्य के नामवर हस्ताक्षरों ने साहिल के सभी उपन्यासों का गहन अध्ययन करने के उपरांत अपने समीक्षात्मक लेखों में विचाराधीन नावलों के अलग-अलग पहलुओं पर रोशनी डाली है, जिनमें कुछ प्रमुख नाम डा. हेमराज कौशिक, डा. पान सिंह, डां. मंजू दलाल, राजेंद्र राजन, डा. रश्मि खुराना, डा. मनोज कुमार प्रीत, डा. सुरेश नायक, डॉ. मनमोहन सहगल, डॉ. महेश गौतम, डॉ. तरसेम गुजराल, डॉ. कमल कुमार, रत्न चांद रत्नेश, डॉ. शरद सिंह, डॉ. प्रभा किरण, डॉ. शशि प्रभा, डॉ. रूप देवगुण, डॉ. जवाहर धीर, प्रिंसिपल सुरेश सेठ, प्रियम्वदा, डॉ. गीता डोगरा, डॉ. शोभा पराशर, प्रो. कंवलजीत कौर, डॉ. प्रधुमन भल्ला, प्रो. राज कुमार, कुलदीप शर्मा, डॉ. विभा कुमरिया शर्मा, डॉ. वनीता चोपड़ा, डॉ. कृष्णा सैनी, डॉ. रेणु शाह, डॉ. अजय षडंगी राजाराम, डॉ. किरण वालिया आदि प्रमुख साहित्यकार व आलोचक शामिल हुए हैं।इन विद्वान लेखकों ने डॉ.  साहिल के उपन्यासों का शायद ही कोई ऐसा पक्ष छोड़ा हो, जिस पर उन्होंने रोशनी न डाली हो। डॉ. हरमहेंदर सिंह बेदी के कुशल संपादन में छपी यह पुस्तक आम पाठकों से लेकर विशेषकर शोधार्थियों हेतु एक महत्वपूर्ण दस्तवेज सिद्ध होगी। यह पुस्तक नई पीढ़ी के लेखकों के लिए मार्गदर्शन का कार्य भी करेगी। खूबसूरत आवरण, प्रिंटिंग और सुव्यवस्थित प्रस्तुतिकरण ने पुस्तक को संग्रहणीय बना दिया है। गत तीन दशकों से निरंतर साहित्य साधनालीन और हिंदी साहित्य को समर्पित डॉ. साहिल के रचनात्मक कार्यों को समाज के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु डॉ. हरमहेंदर सिंह बेदी बधाई के हकदार हैं।                                                                                                    -रमा शर्मा

पुस्तक : उपन्यासकार डा. धर्मपाल साहिल (आलोचना)
संपादक : डा. हरमहेंद्र सिंह बेदी
प्रकाशक : समृद्ध पब्लिकेशन, दिल्ली
पृष्ठ : 345, मूल्य : 865 रुपए


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