सबहि भूमि गोपाल की…

By: May 24th, 2024 12:05 am

अवैध निर्माण तथा अतिक्रमण की परम्परा हमारे यहां अनादि काल से चली आ रही है। आज जो किले, महल तथा बड़े-बड़े पुरातत्व स्थल हम देखते हैं, वे सब इसी श्रेणी में आते हैं। राजा की जितनी इच्छा हुई उतनी ही जमीन पर निर्माण कर दिया तथा बेगार रूप में श्रमिकों का शोषण कर लिया। उसी परम्परा का निर्वहन हमारे देश में इन दिनों बखूबी किया जा रहा है। ‘सबहि भूमि गोपाल की’ की तर्ज पर भारतीय नागरिक भूमि हड़पो अभियान के कुशल खिलाड़ी बनकर निर्माण एवं अतिक्रमण की दिशा में सक्रिय हैं। ‘राम नाम की लूट है’ वाला मुहावरा भी इस समय पूरी तरह चरितार्थ हो रहा है या यह भी कह सकते हैं कि ‘सैंया भये कोतवाल तो अब डर काहे का।’ सभी के बालम पुलिस में भर्ती होंगे तो कानून दम नहीं तोड़ेगा तो क्या अपना डंडा चलाएगा? कानून का डंडा छोटा होता जा रहा है तथा अराजकता का एक सुखद मनभावन वातावरण नए रूप में तैयार हो रहा है, जिससे गोपाल की इस भूमि को महापुरुष हड़प कर रहे हैं। इस मामले में हर नागरिक ‘वसुधैव कुटुंबकम’ विचारधारा का समर्थक हो गया है। भूमि हड़पने का अभियान आम चुनाव के समय बेतहाशा पाया जाता है। पहले लोकसभा चुनाव की आड़ में लोग रातों-रात महल चिनाते रहे तो अब प्रजातंत्र में विधानसभा चुनाव का शोर होने से सारे नियम तोड़ कर लोग जमीनों को पाटने में लगे हैं। रात को सोए थे, तब खाली जगह थी, सुबह उठे तो दीवारें सिर उठाए खड़ी हैं।

कोई दुकान बना रहा है तो कोई मंजिल चढ़ा रहा है। कोई मकान से दुकान निकाल रहा है तो कोई आवास समस्या के स्थायी हल के लिए नगर प्रशासन के नियमों की सरेआम धज्जियां उड़ा रहा है। सरकार मूक बनी सब देखती रहती है क्योंकि उसे अभी जनता का वोट लेना है और वोट के सामने सात खून भी माफ करने का हमारे यहां रिवाज चल रहा है। कोई छज्जा निकाल रहा है तो कोई खिडक़ी खोद रहा है। कोई मंदिर बना रहा है तो कोई मस्जिद। कोई यों ही पत्थर लाल पोतकर धार्मिक भावना के आधार पर भूमि हड़पो की दिशा में पहल करने की चाल चल रहा है। रातों-रात हजारों की संख्या में मकान बन गए हैं। यह नगर भले अपनी रंगत व खासियत खोदे, लेकिन जमीन हड़पो के संचालक पूरे मनोयोग से कंकरीट का जंगल उगाने में लगे हैं। आदमी की महत्त्वाकांक्षाएं इन दिनों पूरे जोर पर हंै। जिसके एक मकान है, वह दूसरा बना रहा है, जिसके दूसरा है, वह तीसरा बना रहा है। मकान क्या, मकबरे बना रहा है। असीम इच्छाएं सिर उठाकर अवैध निर्माण तथा अतिक्रमण को प्रेरित करती हैं और नागरिक चुनाव की आड़ में अपनी कारगुजारियां कर रहे हैं। देखा-देखी ज्यादा हो रही है। पड़ोस में किसी ने एक फुट का अतिक्रमण किया, तो दूसरे ने चार फुट को घेर लिया। अवैध निर्माण जिसने पचास वर्ग गज में किया, उससे जुडऩे की यह परम्परा दिनों-दिन विकसित हो रही है। जब तक आदमी को अपनी माटी से प्रेम नहीं होगा, तब तक राष्ट्रीय भावना का अभ्युदय असंभव है। इस मामले में सारे भूमि हड़पो कार्यकर्ता एक हैं।

अभी एक अवैध निर्माण को गिराइए, पूरी कॉलोनी उस पर टूट पड़ेगी। पिछले दिनों नगर प्रशासन ने तनिक इस मामले में सजगता दिखाई तो कर्मचारी पिट कर लौटे। कर्मचारियों के पिटने का मौसम है तो जनता के पीटने का। ऐसे हालात से निपटने का सबसे सरल तरीका यही है कि आम चुनावों की घोषणा अविलंब हो तथा चुनाव जल्दी सम्पन्न हों। अन्यथा खाली जमीन मकानों के जंगल से पट जाएगी तथा शहर की आवास समस्या बिना आवासन मंडल के सहयोग के ही हल हो जाएगी। फिर बताइए हाऊसिंग सोसाइटियां तथा नगर नियोजन एवं आवासन मंडल और विकास प्राधिकरण विभाग क्या मक्खी मारेंगे? कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ेगी तथा उनके बच्चे भूखो मरेंगे। परंतु दिक्कत यह है कि वोटर भगवान से भी बड़ा होता है। उसके आततायी करतब भी राजनेता शिष्टता रूप में स्वीकार करके चुनाव से पहले तक उसे सिर-आंखों पर बिठाए रखता है।

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक


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