भारत में अरबपति राज व बढ़ती गरीबी

By: May 9th, 2024 12:05 am

सेंटर ऑफ इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च का भी मानना है कि 2030 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। ऐसे में भारत में गरीबी की बढ़ती खाई को पाटने की तत्काल जरूरत है। भारत में जनसंख्या नियंत्रण एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, स्वच्छता और रोजगार जैसे क्षेत्रों में तेजी से सुधार और लोगों के जीवनस्तर में उत्थान द्वारा ही सामाजिक असमानता पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए सरकारों को निरंतर आर्थिक विकास के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करना और लागू करना होगा…

18वीं लोकसभा चुनावों में इस बार भी गरीबी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ भारत के सबसे अमीर एक फीसदी लोगों की कमाई एवं संपत्ति और आर्थिक असमानता अपने ऐतिहासिक उच्चतम स्तर पर है। वल्र्ड इनइक्वलिटी लैब ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। थॉमस पिकेटी, लुकास चांसल और नितिन कुमार भारती द्वारा लिखी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का करीब 40.1 फीसदी हिस्सा है। वहीं देश की कुल आय में उनकी हिस्सेदारी करीब 22.6 प्रतिशत है। यह अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। यहां तक कि इसने अमरीका जैसे विकसित देशों के अमीरों को भी पीछे छोड़ दिया है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अमीर लोगों ने सांठगांठ वाले पूंजीवाद और विरासत के जरिए बनाई गई संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा हड़प लिया है और वे बहुत तेज गति से अमीर हो रहे हैं। पिछले तीन दशकों से भारत में आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ी है। इसी बीच केंद्र सरकार का ऋण भी बढ़ा है, लेकिन गरीबी अपनी जगह बरकरार है। वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी के अनुसार 31 मार्च 2014 को केंद्र सरकार का कर्ज 58.6 लाख करोड़ (जीडीपी का 52.2 प्रतिशत) रुपए था, जो 31 मार्च 2023 को बढक़र 155.6 लाख करोड़ रुपए (जीडीपी का 57.1 प्रतिशत) हो गया है। वहीं 2014-15 से शुरू होने वाले पिछले नौ वित्तीय वर्षों में भारतीय बैंकों ने 14.56 लाख करोड़ रुपए के बुरे ऋण माफ किए हैं। कुल 1456226 करोड़ रुपए में से बड़े उद्योगों और सेवाओं के बट्टे खाते में डाले गए ऋण 740968 करोड़ रुपए थे।

जाहिर है इसका फायदा भी बड़े उद्योगपतियों को ही मिला है। वे बहुत तेज गति से अमीर हो रहे हैं, जबकि गरीब अभी भी न्यूनतम वेतन अर्जित करने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने इकोनॉमी को बूस्ट देने के नाम पर 2019 में कार्पोरेट टैक्स को घटाने का ऐलान किया था। इस ऐलान के बाद घरेलू कंपनियों को जो कार्पोरेट टैक्स पहले 30 फीसदी की दर से देना होता था वो घटकर 22 फीसदी हो गया है। जाहिर है इस तरीके से भी उद्योगपतियों को ही लाभ हुआ है। कोरोना संकट के तुरंत बाद लोगों को न केवल अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा था बल्कि बड़ी संख्या में कामगारों और मजदूरों का पलायन भी हुआ था। ऊपर से 2020 में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी सीमित मात्रा में रिक्रूटमेंट की थी। इससे हमारे युवाओं को भारी निराशा का सामना करना पड़ा था। सीएमआईई के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर मार्च 2024 में 7.4 प्रतिशत से बढक़र अप्रैल 2024 में 8.1 प्रतिशत हो गई है। महंगाई एवं बेरोजगारी आज भी भारतीय नागरिकों के लिए बड़े मुद्दे बने हुए हैं।

यद्यपि भारत में लोगों ने शिक्षा और रोजगार के महत्व को समझा है, तथापि गरीबी के आंकड़े बयां करते हैं कि भारत में पिछले कुछ दशकों में अमीरी-गरीबी के बीच खाई और चौड़ी हुई है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा 2015-16 में जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 36.40 करोड़ लोग गरीब थे, वहीं नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गरीबी दर 2013-14 में 29.17 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत रह गई है। यानी कि पिछले 9 सालों में 17.89 प्रतिशत की कमी आई। फिर यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि यदि नीति आयोग के आंकड़ों के अनुसार गरीबी घटी है तो 80 करोड़ लोगों में पांच किलोग्राम राशन मुफ्त किसलिए बांटा जा रहा है? आज आवश्यकता इस बात की ज्यादा है कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय और आयकर विभाग सर्वाधिक अमीरों से ज्यादा टैक्स वसूलने और उन व्यापारियों पर नकेल कसें जो गलत ब्यौरा देकर अथवा अपनी वास्तविक आय को छुपाकर बेनामी संपत्ति बना रहे हैं। आज बड़े कस्बों और शहरों में ऐसे लाखों कारोबारी और व्यापारी मिलेंगे जो एमआरपी के नाम पर मोटी कमाई कर अकूत दौलत इक_ी कर रहे हैं। लेकिन सरकार को मामूली टैक्स देकर अंगूठा दिखा रहे हैं। ऐसे लोगों की परिसंपत्तियों की जांच होनी चाहिए और उन पर जुर्माना लगाकर उनको भी टैक्स पेयर्स के दायरे में लाया जाना चाहिए। वहीं सरकारी एवं निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को राहत पहुंचाने की भी जरूरत है जो ईमानदारी से अपना इनकम टैक्स चुका कर राष्ट्र सेवा कर रहे हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का दावा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19 संकट के दबाव से बाहर निकल चुकी है।

सेंटर ऑफ इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च का भी मानना है कि 2030 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। ऐसे में भारत में गरीबी की बढ़ती खाई को पाटने की तत्काल जरूरत है। भारत में जनसंख्या नियंत्रण एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, स्वच्छता और रोजगार जैसे क्षेत्रों में तेजी से सुधार और लोगों के जीवनस्तर में उत्थान द्वारा ही सामाजिक असमानता पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए सरकारों को निरंतर आर्थिक विकास के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करना और लागू करना होगा। कहते हैं रात भले ही कितनी भी काली क्यों न हो लेकिन सूर्य की किरणें अपनी रोशनी से चहुं ओर उजाला फैला ही देती हैं। बकौल कवि गोपाल दास नीरज, ‘मेरे देश उदास न हो फिर दीप जलेगा तिमिर ढलेगा।’ आशा है कि 18वीं लोकसभा के चुनावों के बाद आने वाली केंद्र सरकार भारत की अवाम के लिए खुशियों का पिटारा लेकर आएगी और गरीबी के कलंक से मुक्ति मिलेगी।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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