सीयू डिग्री में धर्मशाला फेल

By: May 9th, 2024 12:05 am

परिसर की परिकल्पना में शिक्षा के प्राणों का फैसला कर रहा धर्मशाला केंद्रीय विश्वविद्यालय, अंतत: डिग्रियां बांटने तक आ पहुंचा। सातवें दीक्षांत समारोह में 709 डिग्रियों का वृतांत और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आशीर्वाद पाकर कई प्रफुल्लित छात्र मिल जाएंगे, लेकिन इस धूप के सन्नाटे में कहीं जदरांगल का मतव्य उदास है। ‘सीयू तेरी कश्ती कहां-पतवार कहां, तू सियासी मजमे में ख़्वार हो गई।’ पंद्रह साल का विश्वविद्यालय कई चुनावों की चाकरी करता हुआ भी राजनीतिक हिस्सों में अपनी किस्मत पर रो रहा है। तालीम अगर कहीं तकसीम हो सकती है, तो वह यहीं है, यहीं है और केंद्रीय विश्वविद्यालय की सियासत की हर कसौटी में है। मौजूदा चुनाव के धरातल पर देखें, तो केंद्रीय विश्वविद्यालय का जदरांगल परिसर कहीं खून के आंसू पीता हुआ दिखाई देगा। इसकी छाती पर मंूग दलते हुए कई नेता चुपचाप निकल गए और अंतत: इसके बरअक्स देहरा परिसर बता रहा है कि असली माजरा वही है, वही है। ऐसे में धर्मशाला उपचुनाव की मुख्य सुर्खी जदरांगल परिसर को जितना जिंदा रखेगी, उतने ही लाभ की स्थिति में अब भाजपा के हो गए सुधीर शर्मा होंगे। काश! विश्वविद्यालयों के अस्तित्व का सवाल कांगड़ा के शिक्षा इतिहास को अपमानित न करता। आश्चर्य यह कि जिस कांग्रेस ने कभी धूमल सरकार की पैरवी से धर्मशाला के परिसर को छीनकर यहां बसाया था, आज उसी की सरकार सवा साल से इस मुद्दे पर ईमानदार नजर नहीं आती। मसला वन विभाग को तीस करोड़ के हर्जाने का था, लेकिन सरकार ने ढाई सौ करोड़ के परिसर की जुबां बंद कर दी। देहरा में पौंग बांध के प्रवासी पक्षियों और बगल में वनखंडी के प्रस्तावित वन्य प्राणी विहार के साथ इमारतें बुलंद हो रही हैं, लेकिन अत्यंत परीक्षाओं के दौर से गुजर कर भी जदरांगल में केंद्रीय विश्वविद्यालय के अवशेष ढूंढे जा रहे हैं। बिना कारण शिक्षा की मौत की पताका इस स्थान की हकीकत धर्मशाला चुनाव को बता रही है। यही वजह है कि विश्वविद्यालय के मुद्दे को हराने के लिए कांग्रेस बड़े जोर से उम्मीदवार खोज रही है। ऐसा कौनसा राजनीतिक सूरमा कांग्रेस के शिविर से सामने आएगा, जो केंद्रीय विश्वविद्यालय के मुद्दे को परास्त कर देगा।

न कोई कांग्रेसी नेता बोला और न ही इस विषय पर समूची पार्टी बोल पाई, जबकि स्थानीय जनता ने कई बार आंदोलन और अनशन किए। समाजसेवी अतुल भारद्वाज व उनकी टीम ने तब भी संघर्ष किया था जब धूमल सरकार ने पहली बार इससे धर्मशाला को बेदखल किया था और अब भी जब सुक्खू सरकार ने इसके निर्माण को लेकर संदेहास्पद भूमिका निभाई। आश्चर्य यह कि केंद्रीय विश्वविद्यालय राजनीति का जखीरा बनकर यह भूल गया कि उसका वास्तविक लक्ष्य है क्या। विश्वविद्यालय का जदरांगल परिसर अगर शिक्षा की मौत का कुआं है, तो वहां कई मुख्यमंत्री, कई विधायक और कई सांसद दोषी नजर आएंगे, लेकिन उस वकालत को जनता याद करेगी जब धर्मशाला के तत्कालीन विधायक किशन कपूर ने कहा था कि उनके हलके की यह औकात नहीं कि दो गज जमीन भी इसके लिए उपलब्ध हो। वैसे जिस शहर को कभी कांग्रेस सरकार ने हिमाचल की दूसरी राजधानी का दर्जा देते हुए यहां से विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आगाज किया, वहां अब सरकारें उसकी जेब से कभी मेडिकल कालेज, कभी केंद्रीय विश्वविद्यालय और कभी कार्यालयों को छीन रही हैं। राजनीति का वीभत्स चेहरा देखना हो तो धर्मशाला के जदरांगल में प्रस्तावित जमीन के हर खूंटे पर अनेक चेहरे मिल जाएंगे। आश्चर्य यह है कि ज्वालाजी जैसी विधानसभा में तीन डिग्री कालेज खुल सकते हैं या अनेक विधानसभा क्षेत्रों में दो-दो महाविद्यालय चला दिए जाते हैं, लेकिन धर्मशाला में अंग्रेजी हुकूमत से चल रहे महाविद्यालय व चिकित्सालय के महत्त्व को खत्म करके राजनीति जीतना चाहती है। पहले मेडिकल कालेज को छीनकर तसल्ली नहीं हुई, लेकिन अब ऐसा सारा हिसाब केंद्रीय विश्वविद्यालय को छीनने से पूरा होगा।


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