नाबालिग हत्यारा भी मासूम!

By: May 23rd, 2024 12:05 am

पुणे में एक बेहद त्रासद हादसा हुआ है, जिसने समाज, कानून और मान्यताओं को बेनकाब कर दिया है। बड़े बाप की औलाद होना पाप नहीं है, लेकिन बिगड़ैल और हत्यारा तक होना आपराधिक है। पुणे में एक 17 वर्षीय नाबालिग, बिगड़ैल किशोर ने दो होनहार साफ्टवेयर इंजीनियरों को 2 करोड़ रुपए की कार से कुचल कर मार डाला। करीब 25 वर्षीय जिंदगियों पर एकदम विराम लग गया। दो घरों के चिराग बुझ गए, लिहाजा उनके दुख और सदमे को महसूस ही किया जा सकता है, लेकिन समाज, जेल, कानून उस नाबालिग को ‘मासूम’ ही मान रहे हैं, क्योंकि वह 18 साल का नहीं था। जेल में उस ‘हत्यारे नाबालिग’ से सडक़ दुर्घटना पर 300 शब्दों का निबंध लिखवाया जाता है और करीब 15 घंटे में अदालत से उसकी जमानत भी हो जाती है! संविधान के किस पन्ने पर और किस अनुच्छेद में यह लिखा है कि कोई किसी की जान लेने का जघन्य अपराध करे, लेकिन निबंध लिखवा कर ही उसे जमानत दे दी जाए? कानून वाकई अंधा होता है, क्योंकि वह सिर्फ सबूत देखता है, हकीकत को नहीं जानता! नबालिग हत्यारे के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, कार का पंजीकरण नहीं था, लेकिन वह एक बेशकीमती कार दनदनाते हुए चला रहा था, क्योंकि वह 600 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक, बिल्डर का बेटा था! क्या कानून के सामने ये साक्ष्य नहीं थे? क्या अमीर, बिल्डर बाप बराबर का दोषी नहीं है, जिसने 2 करोड़ रुपए की कार नाबालिग बेटे को खरीद कर दी? उस उच्छृंखल बालक ने सार्वजनिक सडक़ को ‘बंगले का आंगन’ समझ लिया और दो युवाओं को कुचल कर मार दिया। नाबालिग आरोपित को हिरासत में पिज्जा, बर्गर और बिरयानी आदि भोज परोसे गए, तो वह खातिरदारी भी ‘बड़े बाप की औलाद’ होने के कारण की गई। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि नाबालिग अपराधी ने कार से दो युवा इंजीनियरों को कुचलने से पहले पब, बार में करीब दो घंटे तक, दोस्तों के साथ, खूब शराब पी, जिसका बिल 48,000 रुपए आया और भुगतान भी नाबालिग के क्रेडिट कार्ड से किया गया।

क्या बैंक नाबालिगों के क्रेडिट कार्ड भी बनाते हैं? गंभीर सवाल तो यह है कि मेडिकल परीक्षण में शराब पीने का सच क्यों नहीं सामने आया? क्या डॉक्टर भी बड़े बाप के सामने ‘बिक’ गए? उस त्रासद हादसे के बाद यह तथ्य सामने आया है कि उस नाबालिग ड्राइवर ने शराब पी रखी थी, लिहाजा दोस्तों और पब वालों को भी हिरासत में लिया गया है। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के न्याय पर तरस आता है कि उसने हत्या की सजा निबंध लिखना ही तय की! क्यों न इसे भी संविधान में जोड़ लिया जाए? यही कारण है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को हस्तक्षेप कर पुलिस आयुक्त को निर्देश देने पड़े। अब उच्च न्यायालय में नाबालिग पर केस बालिग मान कर ही चलाया जाएगा। हमें भी अदालत के आदर्श न्याय का इंतजार रहेगा। यह कोई इकलौता मामला नहीं है। एक मामले में बीएमडब्ल्यू कार से तीन पुलिसकर्मी मार दिए गए थे। अपराधी की अमीरी ने चश्मदीदों को 5-5 करोड़ रुपए की घूस देकर उनकी सच्चाई ही खरीद ली थी, लेकिन बाद में किसी परम शक्ति ने ही सारे भेद खोल दिए और उन ऐयाश अमीरों को सजा हुई। राजधानी दिल्ली में नशेडिय़ों ने कार फुटपाथ पर सोए ‘बेचारों’ पर ही चढ़ा कर उन्हें कुचल दिया। अदालत में ये दलीलें भी दी गईं कि क्या फुटपाथ सोने के लिए होता है? बहरहाल देश में लाखों सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं और लाखों ही जिंदगी गंवाते हैं, लेकिन ऐसे मामले बेशुमार दौलत, नव अमीरी और गरीबों को कीड़े-मकौड़े समझने की संस्कृति की देन ही हैं। जब तक देश में आर्थिक असमानता, विलासिता मौजूद रहेंगे और कानूनों में संशोधन नहीं किया जाएगा, तब तक घरवालों को अचानक दुखद समाचार सुनने को विवश होते रहना पड़ेगा। होनहार भी ऐयाश लापरवाहियों के शिकार होते रहेंगे। इस मामले में कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि समाज को एक सख्त संदेश जाए, अन्यथा इस तरह की घटनाओं को रोकना मुश्किल हो जाएगा। लापरवाही पर सजा होनी चाहिए।


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