मेला मुरारी देवी

By: May 25th, 2024 12:20 am

मुरारी देवी मंदिर का इतिहास पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा है। अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय से स्थापित की गई हैं…

हिमाचल प्रदेश को अपनी देव संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां पर सैकड़ों ऐसे मंदिर है, जिन्हें धार्मिक पर्यटन के नजरिए से संवारने की जरूरत है। आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं छोटी काशी मंडी की बल्ह घाटी में बसे मुरारी देवी मंदिर की। मुरारी देवी मंदिर का इतिहास पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा है। अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय से स्थापित की गई हैं। इस मंदिर का इतिहास दैत्य मूर के वध से जुड़ा है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर दैत्य मूर को घोर तपस्या करने पर ब्रह्मा ने वरदान दिया कि तुम्हारा वध कोई भी देवता, मानव या जानवर नहीं करेगा, बल्कि एक कन्या के हाथों से होगा। घमंडी मूर दैत्य अपने आप को अमर सोच कर सृष्टि पर अत्याचार करने लगा। सभी प्राणियों के भगवान विष्णु से मदद मांगने पर दैत्य मूर और भगवान विष्णु के बीच युद्ध हुआ, जो लंबे समय तक चलता रहा।

मूर दैत्य को मिला वरदान याद आने पर भगवान विष्णु हिमालय में स्थित सिकंदरा धार पहाड़ी पर एक गुफा में जाकर लेट गए। मूर उनको ढूंढता हुआ वहां पहुंचा। उसने भगवान के नींद में होने पर हथियार से वार करने का सोचा। ऐसा सोचने पर भगवान के शरीर की इंद्रियों से एक कन्या पैदा हुई, जिसने मूर दैत्य को मार डाला। मूर का वध करने के कारण भगवान विष्णु ने उस दिव्या कन्या को मुरारी देवी के नाम से संबोधित किया। एक अन्य मत के अनुसार भगवान विष्णु को मुरारी भी कहा जाता है, उनसे उत्पन्न होने के कारण ये देवी माता मुरारी के नाम से प्रसिद्ध हुईं और उसी पहाड़ी पर दो पिंडियों के रूप में स्थापित हो गईं, जिनमें से एक पिंडी को शांतकन्या और दूसरी को कालरात्री का स्वरूप माना गया है। मां मुरारी के कारण ये पहाड़ी मुरारी धार के नाम से प्रसिद्ध हुई। ऐसा कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय से स्थापित की गई है। यहां हर साल मई महीने में मेला लगता है। हर साल की तरह इस साल भी प्राचीन मेला तीन दिन के लिए मनाया जाएगा जो 25 मई से शुरू होकर 27 मई तक चलेगा। इस बार 25 मई को सुबह 9 बजे से ही सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे, जबकि 26 मई को भक्ति संगीत व जगरात होगा। 27 मई को सबसे बड़ा आकर्षण कुश्तियों का होगा, जो दोपहर 1 बजे से शुरू होकर शाम 6 बजे तक चलेंगी।


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