झंडे-पोस्टरों के दिन गए…अब डिजिटल प्रचार

By: May 6th, 2024 12:13 am

राजनीतिक दलों ने बदला प्रचार का तरीका, घर बैठे कार्यकर्ताओं-समर्थकों को हर रोज मिल रही चुनावों की अपडेट
स्टाफ रिपोर्टर-भुंतर
चुनावों में झंडों-पोस्टरों, गांव-गांव यात्रा से प्रचार का जमाना लदने लगा है। डिजिटल दौर का चुनावों पर भी चस्का चढ़ता दिख रहा है। लिहाजा, लोगों को उनके फोन पर ही सोशल साइट््स के जरिए राजनैतिक दलों का हर अपडेट मिल रहा है। लिहाजा, इस बार के आम चुनावों के लिए भी राजनैतिक दलों के आकाओं ने लोगों के बीच जाने के साथ सोशल मीडिया के जरिए भी अपने प्रचार को धार देने का अभियान चलाया है। आम चुनाव-2024 के मतदान के लिए 25 दिनों का समय बचा है और अगले सप्ताह प्रदेश में आम चुनावों के लिए अधिसूचना जारी होने वाली है। इसके साथ ही नामांकन और अन्य प्रक्रिया भी तेज हो जाएगी। इस बार चुनाव का तरीका बदला हुआ नजर आ रहा है। आज से करीब 10 साल से पहले चुनाव से दो माह पहले से ही सभी राजनैतिक दल घर-घर जाकर अपने प्रत्याशियों के संदेश, पार्टियों के संदेश पहुंचाना और इसके पोस्टर लगाना आरंभ कर देते थे लेकिन अब निर्वाचन विभाग की पहल और डिजिटल दौर ने इन तरीकों को बदल दिया है। पहले की तरह न तो चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के पोस्टरों से सजी दिवारें अब दिखती और न ही घरों की छत पर लगने वाले झंडों को लगाने का क्रेज नजर आता है। जानकारों के अनुसार हर राजनैतिक दलों ने बूथ से लेकर लोकसभा क्षेत्र तथा प्रदेश स्तर तक अपने संगठनों के व्हाट्स ऐप समूहों में कार्यकर्ताओं को जोड़ रखा है तो समर्थकों के लिए भी समूह बने हैं।

इन समूहों में रैली में भाग लेने, प्रत्याशियों के हर दिन के कार्यक्रम के बारे में हर प्रकार की जानकारी साझा हो रही है। डिजिटल प्रचार का फायदा कार्यकर्ताओं को भी हो रहा है। घर बैठे अपडेट लेने के साथ अपना कार्य भी करने का समय उन्हे मिल रहा है। हालांकि राजनैतिक विशेषज्ञों की मानें तो इसका एक बड़ा नुकसान भी आम वोटरों को हो रहा है। डिजिटल दौर में भले ही लोगों को हर रोज अपडेट तो मिल रहे हैं लेकिन गांव-गांव के मुद्दे और समस्याएं इसमें गायब हो गई है। जानकारों के अनुसार ऐसे बहुत कम समूह है जिसमें आम वोटरों के मुद्दों पर चर्चा की जाती है। डिजिटल प्रचार में राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अब गांव-गांव जाने के बजाए विशेष स्थानों पर ही जा रहे हैं। नेताओं को छोटे-छोटे गांवों के हालात और इनकी समस्याओं से रू-ब-रू होने मौका नहीं मिल पाता है। घाटी के वोटर कर्म चंद ठाकुर, मनीष कुमार, प्रभात ंिसंह, बेली राम नेगी आदि कहते हैं कि सोशल मीडिया से राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओं तक पहुंच है लेकिन आम वोटरों के मुद्दे प्रत्याशियों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं जबकि पहले प्रत्याशी एक माह पहले से ही गांव-गांव में जाकर लोगों से मिलना आरंभ करते रहे।


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