हिमाचली खिलाडिय़ों की राष्ट्रीय स्तर पर चमक

By: May 24th, 2024 12:07 am

इस तरह हर जिले में किसी न किसी खेल के लिए प्ले सुविधा उपलब्ध है। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि अच्छे प्रशिक्षकों व पूर्व खिलाडिय़ों को बुलाकर शिक्षा व खेल विभाग मिलकर खेल अकादमियां खोल दें। प्रदेश के दूरदराज शिक्षा संस्थानों में भी उपलब्ध खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग या अकादमी खुलनी चाहिए…

वरिष्ठ राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल प्रदेश को लंबी दूरी की दौड़ में सुमन रावत ने पहला पदक अस्सी के दशक में दिलाया था। उसके बाद स्वर्गीय कमलेश व अमन सैनी हिमाचल को राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतते रहे थे। तेज गति की दौड़ में पहली बार पुष्पा ठाकुर व भाला प्रक्षेपण में संजो दवी ने पदक जीतकर हिमाचल प्रदेश के धावकों को स्पीड व थ्रो में भी जीत की राह दिखा दी है। इस वर्ष हाल ही में आयोजित राष्ट्रीय फैडरेशन कप में कांगड़ा के अंकेश चौधरी ने 800 मीटर में स्वर्ण पदक जीता है। सेना का यह धावक ऊना खेल छात्रावास में प्रशिक्षक भागीरथ के प्रारंभिक प्रशिक्षण से गुजरा है। सेना से ही जोगिंद्रनगर के सावन बरवाल ने भी इसी प्रतियोगिता की स्पर्धा 5000 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता है। यह धावक तत्कालीन राज्य खेल विभाग के प्रशिक्षक गोपाल ठाकुर के प्रशिक्षण से आगे गया है। 1500 मीटर दौड़ में सिरमौर की नितिका, जो बिलासपुर राज्य खेल छात्रावास में प्रशिक्षक राकेश चौधरी की ट्रेनी रही है, ने इसी मीट में प्रदेश के लिए रजत पदक जीता है। अमेरिका में चल रहे एएफ आई के कैंप में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही साई खेल छात्रावास धर्मशाला में प्रशिक्षक केहर सिंह पटियाल की तत्कालीन ट्रेनी चंबा की सीमा भी 10000 मीटर दौड़ को ओलंपिक क्वालीफाई के नजदीक दौड़ रही है। अगले महीने ओलंपिक के लिए अंतर राज्य एथलेटिक्स चैंपियनशिप फाइनल ट्रायल है। उसमें इन सबसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद रहेगी।

कबड्डी, कुश्ती, मुक्केबाजी व अन्य कई खेलों में हिमाचली खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा कर रहे हैं। हैंडबाल महिला वर्ग में हिमाचल राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बढिय़ा प्रदर्शन कर रहा है। मोरसिंघी हैंडबाल अकादमी पिछले एक दशक से राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल प्रदेश के लिए पदक जीत रही थी, मगर राष्ट्रीय सीनियर महिला वर्ग में स्वर्ण पदक से चूक रही थी। 2021 में बरेली में आयोजित राष्ट्रीय हैंडबाल प्रतियोगिता में हिमाचल प्रदेश की महिला टीम ने पिछले तीन सालों की विजेता रेलवे टीम को फाइनल में चार गोलों के अंतर से हराकर विजेता ट्राफी पर पहली बार कब्जा कर अपनी पिछली तीन वर्षों की हार का बदला चुकता कर दिया था। इसके बाद फिर 2022 में भी हिमाचल प्रदेश महिला हैंडबाल टीम ने हैदराबाद में आयोजित राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता है। अब सिलसिला जारी है। हिमाचल प्रदेश में यह खेल 1982 दिल्ली एशियाड के बाद काफी लोकप्रिय हुआ। बिलासपुर हैंडबाल का शुरू से ही अच्छा केंद्र रहा है। बात चाहे हैंडबाल संघ संचालन की हो या प्रशिक्षण की, बिलासपुर का योगदान सबसे अधिक रहा है। स्नेह व उसके पति सचिन चौधरी के निर्देशन में मोरसिंघी हैंडबाल अकादमी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है। पिछले 2018 व 2021 के एशियाई खेलों में लगभग एक-तिहाई भारत की टीम इसी अकादमी से प्रशिक्षित थी। कनिष्ठ राष्ट्रीय, स्कूली राष्ट्रीय व अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय हैंडबॉल प्रतियोगिताओं में इस अकादमी के बल पर हिमाचल प्रदेश महिला वर्ग में विजेता का ताज पहने है। हिमाचल प्रदेश के खिलाडिय़ों को थोड़ी बहुत मिली खेल सुविधाओं से यह परफॉर्मेंस सामने आई है। इसलिए सरकारी व निजी क्षेत्र में खेल छात्रावासों व अकादमियों की बहुत जरूरत है।

हिमाचल प्रदेश में हाई परफॉर्मेंस अकादमियों की भी बहुत जरूरत है, नहीं तो फिर हिमाचली खिलाडिय़ों का राज्य से पलायन जारी रहेगा। हिमाचल प्रदेश में पहले से चल रहे खेल छात्रावासों के अतिरिक्त और कई जगह खेल छात्रावास खोलने के लिए बहुत अधिक धन व संसाधनों की जरूरत पड़ेगी। हिमाचल प्रदेश में पहाड़ अधिक होने के कारण यहां एक स्थान पर बड़े मैदान खेल के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए कई खेलों के लिए एक जगह खेल छात्रावास बनाना कठिन कार्य है। इसलिए यहां पर सुविधा व प्रतिभा के अनुसार खेल अकादमी या विंग कामयाब हो सकते हैं। प्रतिभा व सुविधा के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में भी सरकार खेल विंग खोलती है, तो भविष्य में हिमाचल के खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के कई महाविद्यालयों के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा तैयार खड़ा यूं ही बेकार हो रहा है। इस कॉलम के माध्यम से पहले भी इस विषय पर बार-बार लिखा जा चुका है, मगर सरकार का रवैया उदासीन रहा है। खेल विंगों के लिए सरकार को न तो खेल ढांचा खड़ा करना पड़ता है और न ही नया छात्रावास बनाना पड़ता है। केवल खेल विशेष का प्रशिक्षक और खिलाडिय़ों के लिए खुराक व रहने का प्रबंध करना होता है, जो आसानी से बहुत कम धन राशि खर्च करके हो सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण निजी प्रयत्नों से स्नेह लता ने कर दिखाया है। हिमाचल प्रदेश सरकार चाहे तो राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर, धर्मशाला व बिलासपुर में एथलेटिक्स के विंग आसानी से चल सकते हैं क्योंकि यहां तीनों जगह सिंथेटिक ट्रैक हैं। स्कूलों में भी यहां पर एथलेटिक्स की नर्सरियां स्थापित हो सकती हैं।

ऊना तथा मंडी में तैराकी के लिए तरणताल उपलब्ध हैं। शिलारू व ऊना में एस्ट्रोटर्फ हाकी के लिए बिछी हुई है। इस तरह हर जिले में किसी न किसी खेल के लिए प्ले सुविधा उपलब्ध है। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि अच्छे प्रशिक्षकों व पूर्व खिलाडिय़ों को बुलाकर शिक्षा व खेल विभाग मिलकर खेल अकादमियां खोल दें। प्रदेश के दूरदराज शिक्षा संस्थानों में भी उपलब्ध खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग या अकादमी खुलनी चाहिए। ऊपर जिन खिलाडिय़ों की चर्चा हुई है, उनमें से सभी किसी न किसी सरकारी या शौकिया प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में अधिक से अधिक खेल अकादमी व विंग खुलते हैं, तो हिमाचल प्रदेश के खिलाडिय़ों का राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन देखने को मिलेगा।

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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