सात फेरों के बिना हिंदू विवाह वैध नहीं: सुप्रीम कोर्ट

By: May 2nd, 2024 12:08 am

याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनाया अहम फैसला; कहा, मैरिज सर्टिफिकेट ही पर्याप्त नहीं

दिव्य हिमाचल ब्यूरो — नई दिल्ली

हिंदू विवाह एक ‘संस्कार’ है। इसे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तब तक मान्यता नहीं दी जा सकती जब तक कि इसे उचित रीति रिवाज और समारोहों के साथ नहीं किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत वैध शादी के लिए मैरिज सर्टिफिकेट ही पर्याप्त नहीं है। ये एक संस्कार है, जिसे भारतीय समाज में प्रमुख रूप से दर्जा दिया गया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 19 अप्रैल को इस संबंध में अहम आदेश सुनाया। पीठ ने युवा पुरुष और महिलाओं से आग्रह किया कि वे शादी से पहले ही इस विवाह संस्कार के बारे में गहराई से सोचें और यह भी कि भारतीय समाज में ये संस्कार कितने पवित्र हैं। शीर्ष अदालत ने याद दिलाया कि हिंदू विवाह नाच-गाने और खाने-पीने या दहेज और गिफ्ट मांगने जैसे अनुचित दबाव डालने का मौका नहीं होता है। ऐसी किसी भी शिकायत के बाद आपराधिक कार्यवाही शुरू होने की संभावना है। पीठ ने कहा कि विवाह का मतलब कोई व्यावसायिक लेन-देन नहीं है। यह एक पवित्र समारोह है, जिसे एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए आयोजित किया जाता है।

इसमें युवक-युवती भविष्य में एक परिवार के लिए पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं, जो भारतीय समाज की एक बेसिक यूनिट हैं। कोर्ट ने कहा कि धारा 7 की उपधारा (2) में कहा गया है ऐसे संस्कारों और समारोहों में सप्तपदी शामिल है। यानी, पवित्र अग्नि के समक्ष वर और वधू के संयुक्त रूप से सात फेरे लेना जरूरी होता है। इस दौरान सातवां कदम उठाए जाने के बाद विवाह पूर्ण हो जाता है। ऐसे में हिंदू विवाह के अनुष्ठान में अपेक्षित समारोह लागू रीति-रिवाजों के अनुसार होने चाहिए, जिसमें शादी कर रहे युवा जोड़े सप्तपदी को अपनाएं। वो सात फेरे लें। सुप्रीम कोर्ट एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। ये तलाक की याचिका है, जिसे बिहार के मुजफ्फरपुर की एक अदालत से झारखंड के रांची की एक अदालत में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी। याचिका के लंबित रहने के दौरान, महिला ने और उनके पूर्व साथी ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत एक संयुक्त आवेदन दायर करके इस विवाद को सुलझाने का फैसला किया। दोनों ही ट्रेंड कमर्शियल पायलट हैं।

इस जोड़े की सगाई सात मार्च, 2021 को होने वाली थी, और उन्होंने दावा किया कि सात जुलाई, 2021 को उनकी शादी संपन्न हो गई। उन्होंने वैदिक जनकल्याण समिति से एक मैरिज सर्टिफिकेट भी प्राप्त किया। इस प्रमाण पत्र के आधार पर उन्होंने उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत मैरिज सर्टिफिकेट हासिल किया। उनके परिवारों ने हिंदू संस्कार और रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह समारोह की तारीख 25 अक्तूबर, 2022 तय की। इस बीच, वे अलग-अलग रहते थे लेकिन उनके बीच मतभेद पैदा हो गए और मामला कोर्ट तक पहुंच गया।

विवाह पवित्र रिश्ता

पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह संतानोत्पत्ति को सुगम बनाता है, परिवार की यूनिट को मजबूत करता है। ये विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारे की भावना को मजबूत करता है। ये विवाह पवित्र है, क्योंकि यह दो व्यक्तियों के बीच आजीवन, गरिमापूर्ण, समान, सहमतिपूर्ण और स्वस्थ मिलन प्रदान करता है। इसे एक ऐसी घटना माना जाता है जो व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करती है, खासकर जब संस्कार और समारोह आयोजित किए जाते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों पर विचार करते हुए कि पीठ ने कहा कि जब तक शादी उचित समारोहों और रीति-रिवाज में नहीं किया जाता, तब तक इसे एक्ट की धारा 7(1) के अनुसार संस्कारित नहीं कहा जा सकता है।


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