राष्ट्रपति प्रणाली पर नया प्रकाश

By: May 27th, 2024 3:04 pm

पुस्तक समीक्षा

कई बार खुद को अचूक साबित करने के अवसर पाने के बावजूद भारत की शासन प्रणाली की बहुस्तरीय विफलता पर देश में निरंतर चिंता भरी आवाजें उठ रही हैं। इन आवाजों को शब्द दे रहे हैं देश के कुछ ऐसे लेखक, जो भारत की शासन प्रणाली की तुलना अन्य राष्ट्रों की प्रणालियों से करने के बाद तर्क सहित विकल्प सुझा रहे हैं। इन्हीं लेखकों में एक हैं जशवंत बी. मेहता, जिनकी पुस्तक ‘रिअप्रेजिंग इंडियन डेमोके्रसी (1947-2023) पार्लियामेंट्री टू प्रेजिडेंशियल,’ आजकल खूब चर्चा में है। पुस्तक का शीर्षक ही इसकी विषयवस्तु की पूर्ण व्याख्या करने में सक्षम है, परंतु यह मात्र आरंभ है अंत नहीं, और यही गुण इसे एक सामान्य पाठन सामग्री की श्रेणी से हटाकर एक संग्रहणीय दस्तावेज के समकक्ष ला खड़ा करता है।

भारत की वर्तमान संसदीय शासन प्रणाली के कई दोषों के कारण देश के लोगों में इसके प्रति निराशा और असंतोष निरंतर बढ़ रहा है, जिसके फलस्वरूप इसके प्रभाव और शुचिता पर प्रश्रचिन्ह खड़े हो रहे हैं। इस स्थिति के उदाहरणों सहित समक्ष रखते हुए लेखक जशवंत मेहता हमारी संसदीय प्रणाली में नेताओं के निरंतर बढ़ते मनमाने दखल को कठघरे में खड़ा करते हुए कहते हैं कि लोकतंत्र की एक विख्यात परिभाषा के उलट हमारे देश में इसकी ”नेताओं का, नेताओं के लिए और नेताओं के द्वारा” के रूप में भी व्याख्या की जा सकती है। लेखक पुस्तक में प्रकाश डालते हैं कि हमारे यहां चुनावों की संदिग्ध फंडिंग, राजनीति का अपराधीकरण, नौकरशाहों और नेताओं में व्याप्त भ्रष्टाचार, विधायिका सदस्यों के विधायी कार्यों पर मेहनत करने के अंतर्निहित प्रावधान का अभाव, मंत्रालयों में मनमाना बदलाव, राज्यों और केंद्र में अस्थायी सरकारें, लोगों का विश्वास जीतने में सक्षम राजनेताओं को सामने लाने की व्यवस्था का अभाव और सभी प्रमुख पार्टियों द्वारा पार्टी हाईकमान की इच्छा अनुरूप उम्मीदवारों का चयन आदि कई कारण हैं, जिनके फलस्वरूप वर्तमान शासन प्रणाली के प्रति जनता का विश्वास डगमगाया है।

ऐसा नहीं है कि लेखक ने मात्र संसदीय शासन प्रणाली की असफलताएं इंगित की हैं, अपितु उन्होंने प्रस्तुक में विकल्प भी विस्तार से तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और जापान, आदि का उदाहरण देते हुए यह साबित करने का प्रयास किया है कि इनकी शासन प्रणालियों से सीखते हुए और उनमें कुछ आवश्यक फेरबदल कर भारत में वर्तमान संसदीय शासन प्रणाली के स्थान पर राष्ट्रपति प्रणाली अपनाई जाए, तो यह बेहतर शासन स्थापित करने में काफी अधिक सहायक होगी। राष्ट्रपति प्रणाली की विभिन्न विशेषताएं भी लेखक ने सामने रखी हैं। इनमें स्थायित्व, उच्च कोटि के पेशेवरों की कैबिनेट में सीधी तैनाती, विधायिका से कार्यपालिका का पृथ्थकरण और पार्टी सिस्टम पर कम ध्यान, विधानपालिका सदस्यों को अधिक स्वतंत्रता और विधायी मसलों पर पार्टी व्हिप का अभाव आदि गुण शामिल हैं। इसके साथ ही जशवंत मेहता बताते हैं कि राष्ट्रपति प्रणाली में किस प्रकार हर पदाधिकारी के निर्वाचन में जनता की प्रत्यक्ष भूमिका होती है। चाहे शहर का मेयर तय करना हो, राज्य का गवर्नर या फिर राष्ट्रपति के रूप में देश का सर्वोच्च कार्यकारी सबके निर्वाचन में वोट के रूप में मतदाता की राय सम्मिलित होती है।

उन्होंने राष्ट्रपति प्रणाली में किसी चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवार तय करने संबंधी प्रक्रिया पर भी बखूबी प्रकाश डाला है, जिसके तहत पार्टी आका के बजाय पार्टी के सदस्य यह तय करते हैं कि चाहवानों के बीच में से कौन सबसे उचित प्रत्याशी होगा। इसके उलट, लेखक ने भारतीय व्यवस्था पर भी खुलकर तर्कपूर्ण विमर्श प्रस्तुत किया है। और यह भी कि संसदीय प्रणाली में स्पष्ट बहुमत के अभाव में कैसे एक ईमानदार प्रधानमंत्री असहाय हो जाता है। साथ ही पूर्ण बहुमत के बूते अमरीका के राष्ट्रपति से भी अधिक शक्तियां पाकर भारत के प्रधानमंत्री किस प्रकार मनमाना शासन करते हैं, यह बताने से भी लेखक चूके नहीं हैं।

केडब्ल्यू पब्लिशर्ज प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली की ओर से प्रकाशित जशवंत बी. मेहता की यह पुस्तक लगभग तीन सौ पन्नों में समाहित है। विषय वस्तु, शोध आधारित तथ्यों, लेखन शैली और छपाई आदि के आधार पर यह एक संग्रहणीय किताब है, जो मात्र पांच सौ पिचानवे रुपए में पेपर बैक प्रारूप में खरीदी जा सकती है।

-अनिल अग्निहोत्री

पुस्तक: रिअप्रेजिंग इंडियन डेमोक्रेसी (1947-2023) पार्लियामेंट्री टू प्रेजिडेंशियल
लेखक : जशवंत बी. मेहता
प्रकाशक: केडब्ल्यू पब्लिशर्ज प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली
मूल्य: 595/ – (पेपर बैक)


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