नई शक्ल-सूरत की कांग्रेस

By: May 2nd, 2024 12:05 am

हिमाचल में कांग्रेस बदल रही है और यह कोशिश आलाकमान का सजदा कर रही है। चुनावी परिदृश्य में कांग्रेस खुद से संघर्ष करती हुई यह बताना चाहती है कि उसे बाह्य स्थिति से कहीं अधिक आंतरिक सत्ता की जरूरत है। जरूरत आलाकमान के फरमान को मोहरों पर खेल रही है और जहां मकसद जीत-हार से कहीं आगे नए स्थापत्य में खुद के गुमशुदा हालात में खोजने कहीं अधिक है। इसलिए जिन्हें आश्चर्य है कि अचानक पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा अचानक कहां से कांगड़ा के उजड़े चमन में नई बहारों के लिए उतार दिए गए, वे गलत सोच रहे हैं। दरअसल यह नए लफ्जों, नए वादों और नई शक्ल-सूरत में प्रदेश की पुरानी कांग्रेस को संबोधित करने का प्रयास है। जिस पार्टी को छह विधायकों के रुखसत होने पर भी आत्मविश्लेषण की जरूरत नहीं, वह अब चमत्कार पर विश्वास कर सकती है। इसलिए जिस सर्वेक्षण का जिक्र खुद में अद्भुत है, वहां चुनावी उम्मीदवारों के चमत्कार तो पूजे जाएंगे। बहरहाल, कांग्रेस की खाल से चस्पां रहस्य किसी तरह उखड़ गया और अनुराग ठाकुर के सामने सतपाल रायजादा और कांगड़ा से आनंद शर्मा सामने आ गए। इससे पूर्व मंडी से सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह और शिमला से विनोद सुल्तानपुरी अपनी दोहरी भूमिकाओं में संसद की लड़ाई में पुश्तैनी वजूद तलाश रहे हैं। हालांकि कांगड़ा और हमीरपुर में भी कांग्रेस की गुजारिश अपने ही विधायकों से थी, लेकिन न तो उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने लोकसभा चुनाव का दामन थामा और न ही नगरोटा बगवां के विधायक आरएस बाली ने दिल्ली के संपर्कों में स्थायी भूमिका तराशी।

ऐसे में अगर कांग्रेस के चयन पर जनता की मोहर लग जाए, तो पूरी पार्टी बदल जाएगी, लेकिन जीत-हार के फासले कुछ शक्तियों को क्षीण भी कर सकते हैं। बतौर सांसद व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के झंडे बुलंद इसलिए भी लगते हैं, क्योंकि वहां उपलब्धियों, संपर्कों और निरंतरता की बुलंदी है। वह एकमात्र ऐसे हिमाचली नेता बन गए हैं, जिसके लिए चुनावी फील्ड पहले से तय है। कुछ इसी तरह का आभास मंडी में विक्रमादित्य की साख और विरासत से जुड़ता है, लिहाजा वहां वीरभद्र सिंह की कांग्रेस का प्रभाव बरकरार है। हिमाचल में नई कांग्रेस की जीत-हार का सारा दारोमदार अब आनंद शर्मा की उम्मीदवारी पर है। इस चयन में कई चयन व इतिहास हैं। हिमाचल से आनंद शर्मा के रिश्ते व उनके अनुराग में प्रदेश में केंद्र के उपकार देखे जाएंगे। भले ही शिमला में क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय व नादौन में प्रस्तावित स्पाइस पार्क की चर्चाओं में यह नेता कुछ काम करता हुआ दिखाई देता है, लेकिन जिस दौर में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का औद्योगिक पैकेज रद्द हुआ था, तब मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में आनंद शर्मा वाणिज्य मंत्री थे।

जाहिर है उनके मंत्री पद की तारीफों में हिमाचल ने जो सपने देखे थे, वे चुनावी यथार्थ में अब मुद्दे पैदा करेंगे। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दावों का दम कांगड़ा में जिस शिद्दत से आनंद शर्मा को उतार रहा है, उससे यह तो पता चल जाता है कि हाल फिलहाल पार्टी को सत्ता में पहुंचाने वाला यह जिला अपने स्थानीय नेताओं का प्रभाव व प्रभुत्व हार रहा है। जिस कद पर आनंद शर्मा का अवतरण कांगड़ा में हो रहा है, वहां कांगड़ा-चंबा के कई स्थानीय नेता फिसड्डी ही साबित हो रहे हैं। बहरहाल अब भाजपा के लिए अपने नए उम्मीदवार राजीव भारद्वाज के सामने चुनाव की रोचकता परवान चढ़ती हुई प्रतीत हो रही है। उम्मीदवारों के चयन में कांगड़ा को पिछलग्गू बनाकर कांग्रेस कौनसा मंतव्य जीतना चाहती है, यह इस चुनाव का निष्कर्ष होगा।


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