अब हिंदू-मुस्लिम आबादी

By: May 10th, 2024 7:21 pm

आज भारत की जनसंख्या 144 करोड़ से अधिक है, जो विश्व में सर्वाधिक है। हालांकि 2021 में जनगणना नहीं की जा सकी, क्योंकि वह कोरोना वैश्विक महामारी का दौर था। जनगणना 2011 में की गई थी, उसके बाद 13 लंबे साल गुजर चुके हैं, लेकिन कोई अधिकृत जनगणना नहीं हुई है। 2011 में हिंदू आबादी 79.80 फीसदी थी, जबकि मुस्लिम आबादी 14.20 फीसदी थी। मुसलमानों की बढ़ोतरी दर करीब 25 फीसदी थी, जबकि हिंदुओं की बढ़ोतरी दर करीब 17 फीसदी थी। यानी हिंदुओं की तुलना में मुसलमान बढ़ रहे थे। आजादी के बाद 1951 में देश में करीब 3.5 करोड़ मुसलमान थे, जिनकी आबादी 2023 में बढ़ कर 20 करोड़ के पार हो गई। अब तो यह आंकड़ा भी बदल चुका होगा! गौरतलब तथ्य यह है कि 1951 से आज तक मुसलमानों की आबादी एक बार भी नहीं घटी, लगातार बढ़ती रही है। अब प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रपट के जरिए चौंकाने वाले आंकड़े और रुझान सामने आए हैं। रपट में 1950 से 2015 तक जनसंख्या के रुझान के आंकड़े दिए गए हैं। ये इस कालखंड में जनगणना के दौरान भी सामने आए होंगे! तो फिर आर्थिक सलाहकार परिषद की ऐसी रपट तब क्यों सार्वजनिक की गई, जब आम चुनाव, 2024 के तीन चरण के मतदान सम्पन्न हो चुके हैं? लोकसभा की 282 सीटों, करीब 52 फीसदी, पर जनादेश ईवीएम में दर्ज हो चुका है। रपट के मुताबिक, 1950 से 2015 तक की 65 साल की अवधि में बहुसंख्यक हिंदू आबादी 84.68 फीसदी से घट कर 78.6 फीसदी हो गई है, जबकि मुस्लिम आबादी 9.84 से बढ़ कर 14.09 फीसदी हो गई है। हिंदू करीब 8 फीसदी घटे हैं और मुसलमानों की बढ़ोतरी 43.15 फीसदी हुई है। आबादी का यह असंतुलन चुनौतीपूर्ण, खतरनाक, चिंताजनक और विस्फोटक हो सकता है! भारत इंडोनेशिया, मलेशिया, सूडान, सर्बिया आदि देशों में आबादी के असंतुलन के कारण विभाजन देख चुका है। देश दोफाड़ हुए हैं और नए देश बने हैं। इंडोनेशिया कभी हिंदू, बौद्ध बहुल देश था, लेकिन आज दुनिया के सबसे अधिक मुसलमान इंडोनेशिया में ही रहते हैं और बौद्ध अल्पसंख्यक हो गए हैं। भारत में मुसलमान आबादी में वे शामिल नहीं हैं, जो जनगणना जैसे अभियानों का बहिष्कार करते रहे हैं। 65 साल की मुस्लिम आबादी में रोहिंग्या भी शामिल नहीं हैं।

इस लिहाज से मुस्लिम आबादी की बढ़ोतरी अधिक हो सकती है। रपट के मुताबिक, हिंदुओं के साथ-साथ जैन और पारसी की आबादी भी घटी है। मुसलमानों के अलावा सिख, बौद्ध, ईसाई की आबादी बढ़ी है। जैन, पारसी, ईसाई, बौद्ध, सिख समुदाय भी अल्पसंख्यक वर्ग में आते हैं। देश में पारसियों की आबादी तो करीब 57000 बताई जाती है, लेकिन उन्होंने अपने अधिकारों के लिए कभी भी जन-आंदोलन नहीं छेड़े। मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ती रही है, इसके बुनियादी कारण बांग्लादेश से घुसपैठ, धर्मान्तरण, मुस्लिम सांसदों, नेताओं द्वारा ज्यादा बच्चे पैदा करने के आह्वान, ‘पालन-पोषण तो अल्लाह करेंगे’ जैसी सोच, 2011 तक ज्यादा प्रजनन दर, अशिक्षा, अज्ञानता आदि हैं। यह बढ़ोतरी देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती है। देश के संसाधन कम पड़ सकते हैं। पहले घुसपैठ बांग्लादेश से अधिक हुई, क्योंकि 1971 में पाकिस्तान विभाजन के साथ युद्ध भी हुआ। लोग बांग्लादेश से भाग कर भारत में आए। संघ-भाजपा 2 करोड़ से अधिक ऐसे घुसपैठिए मानते रहे हैं। जब म्यांमार से पलायन शुरू हुआ, तो रोहिंग्या मुसलमानों ने भारत में घुसपैठ की। म्यांमार के बाद भारत में हिंदुओं की आबादी में सर्वाधिक गिरावट हुई है। रपट बताती है कि दुनिया में बहुसंख्यकों की हिस्सेदारी 22 फीसदी घटी है। प्रजनन दर की बात बेहद महत्वपूर्ण है। दशकों तक मुसलमानों की औसत प्रजनन-दर 4-6 फीसदी रही, लेकिन अब 2021 वाले दौर में यह घटकर 2.36 फीसदी हो गई है। यह प्रजनन-दर हिंदुओं में औसतन 1.94 फीसदी है। बहरहाल हमारा निष्कर्ष फिलहाल यह नहीं है कि भारत इस्लामीकरण की ओर बढ़ रहा है, लेकिन आबादी का यह असंतुलन इसी गति से जारी रहा, तो कई संकट उभर सकते हैं। सबसे चिंतित पहलू तो यह है कि देश का लोकतंत्र संकट में पड़ सकता है, क्योंकि मुसलमानों की फितरत लोकतांत्रिक नहीं है।


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