ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते प्रचलन से मनोरोग

By: May 4th, 2024 12:14 am

जे.पी. शर्मा, मनोवैज्ञानिक
नीलकंठ, मेन बाजार ऊना मो. 9816168952

अकस्मात मोबाइल पर ऑनलाइन गेमिंग का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। व्यस्क युवाओं से लेकर बड़े बुजुर्ग, गृहस्थी युुवितयां, व्यवसायी, नौकरीपेशा, दुकानदार कोई भी इससे अछूता नहीं रहा है। आधुनिकता व भौतिकता की दौड़ में रातोंरात अमीर बनने की लालसा ने सभी को पैसा कमाने के इस अनूठे जुए में व्यस्त कर दिया है। जिसके मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं और मनोदुष्प्रभाव भी हैं। मोबाइल की हर वर्ग के पास उपलब्धता ने भी इस दुष्कृत्य को बढ़ावा दिया है। नशे, दवाओं के व्यसन तो पहले थे ही, इस मोबाइल के माध्यम से ऑनलाइन गेमिंग के साधन से शीघ्र पैसा कमाने की प्रवृत्ति ने तो बाकी सभी एडिक्शनज को पीछे छोड़ दिया है। विशेषतया जो व्यक्ति निठल्ला बैठा होता है, समय व्यतीत करने के उद्देश्य से दूसरों का अनुसरण करते हुए मात्र चाववश इस शौक की शुरुआत करता है, जो धीरे-धीरे उसकी आदत बन जाती है, जिससे फिर कभी पीछा नहीं छूटता। आज मोबाइल की सुविधा एवं उपलब्धता तो सभी के पास है। स्कूली बच्चों से बुजुर्गों तक, गृहणियों से लेकर कार्यरत औरतों तक, गरीब से अमीर तबके तक, कर्मचारियों एवं व्यावसायियों तक, रिकशा चालक से गाडिय़ों के मालिकों तक, उद्दमियों एवं उद्योगपतियों तक सभी के पास सदैव मोबाइल की सुविधा हर समय जेब में रहती है।

जब भी थोड़ा समय मिला तो गेमिंग अर्थात जुआ शुरू। पैसा कमाने का इससे शीघ्र, सुलभ व त्वारित जरिया कोई और नहीं हो सकता, जिसमें व्यस्तता के चलते अपने मुख्य कार्यक्रम व नियमित आय के स्रोत कुप्रभावित हो रहे हैं। मनमर्जी के परिणाम न मिलने पर निराशा, कुंठा, अवसाद रूपी चिड़चिड़ापन सामान्य व्यवहार की शैली का स्थाई अंग बन जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सौहार्दपूर्ण संबंध असहजता का शिकार हो टूटन के कगार पर पहुंच रहे हैं। इसके अभ्यस्त व्यक्तियों के आचार, व्यवहार, बोलवाणी प्रत्यक्षतया कुप्रभावित दिखाई दे जाती है। गेम में व्यस्त व्यक्ति को बुलाओ तो वह खिन्नतावश, संबंधों की मूलभूत व्यावहारिक आवश्यकताओं से भी लापरवाह होकर रिश्तों एवं शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को बिगाडऩे पर अमादा है। दुख: सुख बांटने व दिल की बात को भी तरस जाता है। मन की व्यथा सुनाने को कोई अपना नहीं रहता।

सभी को तो उसने ऑनलाइन गेमिंग के द्वारा पैसा कमाने की व्यस्तता के चलते पहले ही अपने से दूर कर दिया होता है। स्वास्थ्य विभाग के सर्वे उपरांत इक्टठे किए आंकड़े भी इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि ऑनलाइन गेमिंग के चलन उपरांत मानसिक व शारीरिक रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी हो गई है। जिसमें निराशा, कुंठा, अवसाद, तनावजनत बीमारियां शामिल हैं। इस कुव्यसन की लत लग जाती है तो संचित जमापूंजी भी समाप्त होने लगती है। आखिर निराश होकर आत्महत्या तक करने की सोचरूपी दहलीज पर भी पहुंच सकता है। यानी अपनी मानसिक शांति रूपी मोमबत्ती व्यर्थ की निराशा एवं अवांछित धन खर्च के रास्ते दोनों सिरों से जलाकर शीघ्र समाप्त करने में लगा है, जो नितांत अनावश्यक प्रयास है। यह ऐसी लत है जो व्यक्ति को मानसिक आधात एवं शारीरिक क्षति पहुंचाने के साथ-साथ धन हानि भी करवा रही है। इससे परहेज रखना ही एक मात्र उपाय है।


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