प्रभु का सिमरन

By: May 25th, 2024 12:22 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

बाजार में कई प्रकार की खाने की वस्तुएं हैं। अब एक अठन्नी की क्या वस्तु आती। कोई जलेबी नहीं देता, पेड़ा नहीं देता, पकौड़े नहीं देता। मेले में घूमता रहा, आखिर थक गया और सोचने लगा कि इस अठन्नी का क्या लूं। आखिर उसने एक रेहड़ी वाले को अठन्नी दी और कहा आठ आने की गाजर दे दे। रेहड़ी वाले से गाजर लेकर मेले में एक पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगा और परमात्मा से शिकायत करने लगा, हे प्रभु तुमने मुझे दुनिया में पैदा ही क्यों किया? यदि पैदा किया है तो थोड़ा-बहुत धन भी दे देता। मुझे गरीब क्यों बनाया। मेरे पास इतने पैसे भी नहीं कि अपनी मनपसंद कोई वस्तु लेकर खा पाऊं। मैं भी मेले का आनंद ले पाऊं, नाच गाना देखूं। झूला झूलूं, मिठाइयां खाऊं। आंखों से आंसू बह रहे हैं। प्रभु को शिकायत किए जा रहा है और गाजर खाए जा रहा है। मैं क्यों गरीब हूं, मुझे गाजरें ही मिली हैं खाने को। अचानक खाते-खाते उसका ध्यान अपने पीछे जाता है और देखकर हैरान हो जाता है कि गाजर खाकर जो उसके पीछे का हिस्सा उसने पीछे फेंका है वो टुकड़ा उठाकर कोई दूसरा व्यक्ति खा रहा है। उस व्यक्ति के पास तो गाजरें भी नहीं हैं। वह इससे भी ज्यादा भूखा था।

उसके पास शायद एक पैसा भी नहीं था। इसलिए इसके बचे हुए गाजर के टुकड़े उठा-उठा कर खा रहा है। यह देखकर उस व्यक्ति ने परमात्मा का लाख-लाख शुक्र किया कि हे प्रभु! तेरा धन्यवाद तूने मुझे खाने को गाजर तो दी है। एक ये आदमी है जिस बेचारे के पास ये भी नहीं है। यह तो मेरे से भी गरीब है। उसने हंसते हुए बची हुई सारी गाजरें दूसरे व्यक्ति को दे दी। कहने का भाव यह है कि प्रभु की रजा में खुश रहें। जितना प्रभु ने दिया है उसमें संतोष करें। दुनिया को देखकर अपने मन को व्याकुल न करें कि ऐसी गाड़ी, बंगला, दुकान, मकान हमारा क्यों नहीं। यदि कोई अमीर है, करोड़पति है, परंतु उसे अंदर शांति नहीं, खुशी नहीं, प्रसन्नता नहीं तो उसके अमीर होने का उसे क्या लाभ। जो खुशी के गीत नहीं गाता, जो प्रभु के गुण नहीं गाता, जो प्रभु का शुक्र नहीं मनाता, वो धनवान नहीं है क्योंकि वो संतोष धन से खाली है।

प्रसन्नता दो तरह की होती है। आंतरिक प्रसन्नता व बाहरी प्रसन्नता। बाहरी प्रसन्नता के भी दो भेद हैं। सामाजिक और पारिवारिक। यदि शरीर स्वस्थ न हो तो किसी की भी कोई बात अच्छी नहीं लगती, चाहे ऊपर से सबका मन रखने को ठीक व्यवहार करते हों। शरीर की बीमारी व कमजोरी पूर्ण प्रसन्नता में रुकावट बनती है। मानसिक तनाव हो तो भी बाहरी खुशी वास्तविक खुशी नहीं लगती। जो मन से परेशान है उसे चाहे शादी में ले जाओ, बाहर से भले ही वह नाचने लगे परंतु अंदर से मन खुश नहीं है। कुछ अच्छा नहीं लगता। बिना बात के क्रोध आ जाता है, व्याकुलता छाई है। तन का स्वस्थ होना प्रसन्नता से संबंध रखता है। लेकिन कुछ मनुष्य फिर भी खुश रहते और मुस्कराते रहते हैं। हंसते व मुस्कराते रहने से दुख भी आधा रह जाता है। क्योंकि वातावरण का मन पर काफी प्रभाव पड़ता है।

आप सत्संग में जाते हैं तो मन की वृत्ति बदल जाती है, तनाव कम हो जाता है। यदि आप दृढ़ता से ठान लें कि मैं हर हाल में खुश रहूंगा। कोई कैसा भी हो, मुझे परेशान नहीं कर सकता। मैं विचलित नहीं हो सकता। मैंने अपने आपको शांत रखना है। कोई बात हो भी जाए तो प्रभु का सिमरन आपको शक्ति देगा।

 


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