पैंतीस करोड़ का नौकर
झारखंड की बदकिस्मती है कि प्रकृति ने उसे खूब संसाधन दिए हैं, बेशकीमती खनिज दिए हैं, लेकिन फिर भी वह गरीब और भ्रष्ट है। दरअसल झारखंड का राजनीतिक नेतृत्व फितरत से ही भ्रष्ट रहा है। बेशक वह शिबू सोरेन हों, नरसिंह राव सरकार बचाने वाले सांसद हों, मुख्यमंत्री रहे मधु कौड़ा और कुछ माह पूर्व तक मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन हों, सभी दागदार और भ्रष्ट रहे हैं। जेल में भी रहे हैं। हेमंत सोरेन अब भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मामलों में न्यायिक हिरासत में हैं। कोई पर्यटन करने तो जेल में नहीं जाता! राजनेताओं के अलावा, आईएएस या अन्य शीर्ष अधिकारियों के घरों से भी करोड़ों की नकदी बरामद की गई है। उनके पास अकूत संपत्तियां भी मिली हैं, लिहाजा उन्हें जब्त किया गया है। कई ऐसे सफेदपोश चेहरे जेल की सलाखों के पीछे हैं। झारखंड में धीरज साहू जैसे कांग्रेसी और ओबीसी सांसद भी हैं, जिनके घर और अन्य ठिकानों से 350 करोड़ रुपए से अधिक के नकदी नोट बरामद किए गए। घर के कमरों में नोट ऐसे सजाए गए थे मानो नकदी का कोई शोरूम हो! काली कमाई के ये पहाड़ कैसे संजो लिए जाते हैं, आम आदमी के लिए यह आश्चर्य की मीनारें हैं। साहू जी आज भी सांसद हैं। ईडी ने क्या कार्रवाई की, सब कुछ रहस्य है, क्योंकि हमने ऐसे काले धन्नासेठ को जेल जाते हुए भी नहीं देखा। देश में काले, भ्रष्ट नकदी पहाड़ों के गोदाम भरे हुए हैं, प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन कड़वा सच लगता है। देश के कई हिस्सों में ऐसे गोदामों को दबोचा गया है, अदालत में भी केस हैं, लेकिन आम आदमी न्याय का मारा है।
बहरहाल ताजातरीन मामला झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम से परोक्ष रूप से जुड़ा है। उनके निजी सचिव के घरेलू नौकर के घर से 35 करोड़ रुपए से अधिक की ‘काली कमाई’ बरामद हुई है। आठवां आश्चर्य!!! एक नौकर स्तर का व्यक्ति कितना भी भ्रष्टाचार करे, लेकिन उसके घर बैगों में भरे करोड़ों के नोट बरामद नहीं किए जा सकते। यकीनन इस संदर्भ में उसे ‘बलि का बकरा’ बनाया गया है। तो फिर सवाल है कि काली कमाई के नोट किसके हैं? क्या नौकर का घर ‘कलेक्शन सेंटर’ बना था? ईडी के अफसरों को मंत्री के निजी सचिव पर तो शक था, लिहाजा नौकर का पीछा भी किया गया। अक्सर उसके हाथ में एक बैग होता था, लेकिन घर से बाहर आते हुए उसके हाथ खाली होते थे। अंतत: ईडी ने छापेमारी की, तो नोटों से भरे बैग मिले और उसी के साथ भ्रष्टाचार का एक रहस्य खुला। सवाल मंत्री के कारनामों पर भी है, क्योंकि ईडी ने जिन इंजीनियरों और अन्य कर्मचारियों की धरपकड़ की है, उनमें से कइयों ने मंत्री की संलिप्तता का भी खुलासा किया है। दलाली का एक खेल उस विभाग में खेला जा रहा था। ठेका देने के बदले 3 फीसदी की दलाली ली जाती थी। मंत्री और निजी सचिव की ‘कटमनी’ ज्यादा और अलग थी। अफसरों की पोस्टिंग और ट्रांसफर की बोलियां अलग से लगती थीं। यह जांच एजेंसियों का दुरुपयोग नहीं, बल्कि आम आदमी से भ्रष्ट जमात ने जो भी लूटा है, उसकी पाई-पाई वापस वसूली जानी चाहिए।
हम मानते हैं कि ईडी मंत्री पर साक्ष्यों और गवाहों के बिना हाथ नहीं डालेगा, लेकिन यह भ्रष्टाचार देश के कोने-कोने में कब तक जारी रहेगा। घूस और दलाली तो व्यवहार बन गए हैं। प्रधानमंत्री प्रतिबद्ध दिखते हैं कि वह ऐसी एक भी पाई खाने नहीं देंगे। ऐसी चोरी बंद करके रहेंगे। भ्रष्ट लोगों की कमाई और लूट बंद करके रहेंगे, बेशक भ्रष्टाचारी उन्हें गालियां देते रहें। झारखंड पर 1.30 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। राज्य के नागरिक की औसत कमाई 7000 रुपए माहवार है। देश के राज्यों में विकास के मद्देनजर झारखंड का स्थान 30वां है। आलमगीर आलम कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं। गठबंधन सरकार में कांग्रेस नेतृत्व ने उनका नाम सबसे पहले संस्तुत किया था। वह राज्य विधानसभा के स्पीकर भी रहे हैं। सवाल है कि एक साईकिल चलाने वाले नौकर के पास 35 करोड़ रुपए से अधिक का धन कहां से आया?
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