नई सरकार की प्राथमिकता हो सेवा निर्यात

हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, पायथन वर्चुअल रियल्टी, रोबोटिक प्रोसेस, ऑटोमेशन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डाटा एनालिसिस, क्लाउड कम्प्यूटिंग, ब्लॉक चेन और सायबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में युवाओं को कुशल बनाना होगा…

इन दिनों प्रकाशित हो रही विदेश व्यापार संबंधी नई रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि 4 जून के बाद गठित होने वाली भारत की नई सरकार की यह प्राथमिकता होनी चाहिए कि वह भारत की सेवा निर्यात (सर्विस एक्सपोर्ट) में दिखाई दे रही ऊंची संभावनाओं को साकार करके बढ़ते विदेश व्यापार घाटे को कम करने की डगर पर आगे बढ़े। साथ ही सेवा निर्यात बढ़ाकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) सहित नए डिजिटल कौशल से दक्ष देश की नई पीढ़ी के लिए रोजगार के नए मौके भी तेजी से निर्मित करके नई पीढ़ी को नई मुस्कुराहट दे। गौरतलब है कि कल तक पूरी दुनिया में भारत का सेवा निर्यात तेज रफ्तार से बढ़ रहे चमकीले सेक्टर के रूप में रेखांकित होता रहा है, लेकिन अब भारत के इसी प्रभावी सेवा निर्यात ने पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सुस्त रफ्तार दिखाई है। सेवा निर्यात की यह रफ्तार पिछले तीन साल में सबसे कम रही है। हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में भारत से माल एवं सेवाओं का कुल निर्यात 776.68 अरब डॉलर रहा, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 776.40 अरब डॉलर रहा था। ऐसे में गत वित्त वर्ष में सेवा निर्यात 3.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 339.62 अरब डॉलर का रहा, जबकि वस्तु निर्यात 3.11 प्रतिशत की गिरावट के साथ 437.06 अरब डॉलर रहा है। निश्चित रूप से बीते कुछ वर्षों में भारत के निर्यात का एक चमकदार पहलू सेवा निर्यात रहा है। भारत ने डिजिटल माध्यम से मुहैया करायी गयीं सेवाओं के निर्यात में वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है। डिजिटल माध्यम से सेवा निर्यात के तहत कंप्यूटर नेटवर्क का इस्तेमाल कर शिक्षा, मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन, गेमिंग, मनोरंजन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि के लिए दक्ष ऑपरेटर, कुशल प्रोग्रामर और कोडिंग विशेषज्ञ द्वारा दी जाने वाली सेवाएं शामिल हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक के मासिक बुलेटिन में प्रकाशित एक शोध आलेख के पिछले तीस वर्षों में यानी 1993 से 2022 के बीच भारत का सेवा निर्यात 14 फीसदी से अधिक की समेकित सालाना वृद्धि दर से बढ़ा। यह 6.8 फीसदी की वैश्विक सेवा निर्यात वृद्धि की तुलना में बेहतर है। परिणामस्वरूप समान अवधि में सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.5 फीसदी से बढक़र 4.3 फीसदी जा पहुंची। इसी आधार पर भारत दुनिया में सातवां सबसे बड़ा सेवा निर्यातक देश बन गया है, जबकि वर्ष 2001 में सेवा निर्यात के मामले में भारत 24वें स्थान पर था। खास बात यह भी है कि दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवा निर्यात के क्षेत्र में भारत दुनिया में दूसरे और सांस्कृतिक तथा मनोरंजक सेवा निर्यात में छठे स्थान पर है। विश्व व्यापार संगठन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार यदि केवल डिजिटल माध्यम से जुड़ी हुई सेवाओं के निर्यात के आधार पर मूल्यांकन करें तो इस क्षेत्र में भारत जर्मनी और चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में अमेरिका, ब्रिटेन और आयरलैंड के बाद चौथे क्रम पर आ गया है। निश्चित रूप से भारत सेवाओं के निर्यात में वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। नि:संदेह भारत में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) की तेजी से नई स्थापनाओं के कारण भी सेवा निर्यात बढ़ रहा है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि वर्ष 2015-16 से लगातर वर्ष 2022-23 के बीच भारत में जीसीसी की संख्या 60 फीसदी बढक़र 1600 से अधिक हो गई है। जीसीसी भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्थापित विशेष केंद्र हैं जिनका मकसद स्थानीय प्रतिभा का फायदा उठाना, अधिक से अधिक परिचालन दक्षता हासिल करना और नए बाजारों तक पहुंचना है। जीसीसी सूचना प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी), वित्त, मानव संसाधन, ग्राहक सेवा, विश्लेषण और कारोबारी प्रक्रियाओं के संचालन सहित तमाम क्षेत्रों में कार्य करते हैं।

गोल्डमैन सैक्स ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा कि भारत में जीसीसी की आय पिछले 13 वर्षों में 11.4 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक दर (सीएजीआर) से बढ़ी और चार गुना होती हुई वित्त वर्ष 2023 में 46 अरब डॉलर तक पहुंच गई है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि बीते कुछ दशकों से भारतीय अर्थव्यवस्था का अहम पहलू सेवा निर्यात रहा है। इसने न केवल व्यापार घाटे को थामे रखने में मदद की है, बल्कि इनसे देश में रोजगार निर्माण में सहारा दिया है। भारत ने वैश्विक सेवा व्यापार में प्रतिस्पर्धी क्षमता भी प्रदर्शित की है। दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षेत्रों में भारत की लगातार पहचान बढ़ी है। लेकिन अब सेवाओं के निर्यात में कमजोर वृद्धि की मुख्य वजह विकसित अर्थव्यवस्थाओं से मांग नरम रहना है। वित्त वर्ष 2024-25 में भी सेवा निर्यात की हालत कमजोर ही रहने की आशंका है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था और विशेष तौर पर अमेरिका एवं यूरोप में उच्च ब्याज दरों के कारण मांग में नरमी रहेगी तथा युद्धजनित परिस्थितियों से वैश्विक व्यापार में कमी आएगी। निश्चित रूप से जिस तरह से ईरान-इजराइल के बीच टकराव और दुनिया में भूराजनीतिक मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं, उससे कच्चे तेल के दाम के साथ-साथ आपूर्ति संकट बढऩे की चिंताएं मुंहबाए खड़ी हैं। इससे भारत के वैश्विक व्यापार व निर्यात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में भारत को सेवा निर्यात बढ़ाने की नई रणनीति के साथ आगे बढऩा होगा। चूंकि इस समय विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश अपने तट के आसपास के देशों में कारोबार पर जोर दे रहे हैं, यह भारतीय निर्यातकों के लिए भी चुनौती है।

लेकिन यह बात ध्यान में रखी जानी होगी कि अब सेवा निर्यात के क्षेत्र में भी लगातार प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में भारत से डिजिटल सेवा निर्यात में तेजी से वृद्धि के लिए सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, उत्कृष्टता तथा सुरक्षा को लेकर और अधिक प्रयास करना होंगे। भारत को अपने निर्यात में विविधता लाने और अन्य उभरते क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। अब हमें सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करके आउटसोर्सिंग की संभावनाओं वाले अन्य देशों में भी कदम बढ़ाना होंगे। खासतौर से आउटसोर्सिंग की नई संभावनाएं उत्तरी यूरोप, पूर्वी एवं मध्य यूरोप के देशों, कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया और पूर्वी एशियाई देशों, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका जैसे देशों में और बढ़ गई है।

भारत की आईटी सेवा कंपनियों को गैर-अंग्रेजी भाषी देशों में कारोबार में आगे बढऩे के लिए कार्मिकों को जापानी, कोरियाई व अन्य भाषाओं में प्रशिक्षण देने पर व्यय किया जाना होगा ताकि इन देशों के बाजारों तक भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स की पहुंच बनाई जा सके। अब हम उम्मीद करें कि 4 जून के बाद गठित होने वाली देश की नई सरकार देश की नई पीढ़ी को आईटी के नए दौर की शिक्षा देने के लिए समुचित निवेश की व्यवस्था को उच्च प्राथमिकता देते हुए दिखाई देगी। हमें नए दौर की तकनीकी जरूरतों और इंडस्ट्री की अपेक्षाओं के अनुरूप कौशल प्रशिक्षण से नई पीढ़ी को सुसज्जित करना होगा। हमें शोध, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मापदंडों पर आगे बढऩा होगा।

हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, पायथन वर्चुअल रियल्टी, रोबोटिक प्रोसेस, ऑटोमेशन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डाटा एनालिसिस, क्लाउड कम्प्यूटिंग, ब्लॉक चेन और सायबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में युवाओं को कुशल बनाना होगा। निश्चित रूप से ऐसे बहुआयामी प्रयासों से देश में सेवा निर्यात की सुस्त होती हुई रफ्तार को बढ़ाया जा सकेगा और सेवा निर्यात की अधिक आय से विदेश व्यापार के घाटे में कमी लाई जा सकेगी।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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